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नया उपकरण बताएगा आँतों में कैसे काम करते हैं सूक्ष्मजीव

नया उपकरण बताएगा आँतों में कैसे काम करते हैं सूक्ष्मजीव

सूक्ष्मजीवों का मनुष्य के जीवन से गहरा संबंध है। रोगजनक सूक्ष्मजीव हमें बीमार करने के लिए जाने जाते हैं, तो दूसरी ओर बहुत से सूक्ष्मजीव बेहतर स्वास्थ्य की एक महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं। सूक्ष्मजीवों का यह समुदाय माइक्रोबायोम कहलाता है, जो चयापचय और रोगों से बचाव में अपनी भूमिका निभाते हैं।

मानव आँत माइक्रोबायोम की एक हजार से अधिक प्रजातियों से मिलकर बना है, जिनमें 33 लाख से अधिक विशिष्ट जीन्स हैं। आँतों में सूक्ष्मजीव भोजन को संसाधित करने के लिए एंजाइमों का स्राव करते हैं और शरीर को विभिन्न मेटाबोलाइट प्रदान करते हैं, जो शरीर की आंतरिक कार्यप्रणाली के सुचारु संचालन के लिए आवश्यक हैं।

भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) भोपाल के शोधकर्ताओं ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित एक नया उपकरण विकसित किया है, जिसकी सहायता से यह पता लगाया जा सकेगा कि सूक्ष्मजीव हमारी आँतों में विभिन्न प्रकार के भोजन और दवाओं का चयापचय कैसे करते हैं।

‘गटबग’ नामक यह उपकरण मानव आँत द्वारा पाचन और पोषक तत्वों के अवशोषण की प्रक्रिया में शामिल विशिष्ट जीवाणु एंजाइमों, प्रतिक्रियाओं, और बैक्टीरिया के बारे में जानकारी प्रदान करता है। मौखिक रूप से ग्रहण की गई दवाओं और भोजन अणुओं के चयापचय में भूमिका निभाने वाले सूक्ष्मजीवों की पहचान में यह उपकरण उपयोगी है।

माइक्रोबायोम की विशालता और अलग-अलग व्यक्तियों में भिन्न बैक्टीरिया संग्रह को देखते हुए जटिल मेजबान-माइक्रोबियल संबंधों का अध्ययन चुनौतीपूर्ण होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ‘गटबग’ ऐसे संभावित जीवाणु एंजाइमों एवं जीवाणु उपभेदों की पहचान करने में मदद करता है, जो आहार अणुओं के साथ-साथ मौखिक रूप से ली गई दवाओं के चयापचय को अंजाम दे सकते हैं।  

शोधकर्ताओं का कहना है कि आँत में जीवाणु कोशिकाओं की संख्या मानव शरीर में कोशिकाओं की संख्या से अधिक है। आँत के जीवाणु समुदायों में जीवाणु कोशिकाओं और विविधता की विशाल संख्या अतिरिक्त चयापचय क्षमता प्रदान करती है, जो दवाओं और अपचित भोजन का चयापचय कर सकती हैं। मौखिक रूप से ली गई दवाओं या न्यूट्रास्यूटिकल्स का जीवाणु चयापचय उनकी प्रभावकारिता और विषाक्तता को प्रभावित करता है, जो शरीर को नुकसान पहुँचा सकता है।

मशीन लर्निंग जैसे कम्प्यूटेशनल तरीकों का उपयोग करके, इस बात की गहन जानकारी प्राप्त कर सकते हैं कि आँत में पाये जाने वाली विशिष्ट बैक्टीरिया प्रजातियां कैसे काम करती हैं। इससे यह समझने में भी मदद मिल सकती हैं कि यह अंतःक्रिया मानव शरीर में मेजबान सूक्ष्मजीवों को सकारात्मक या नकारात्मक रूप से कैसे प्रभावित कर सकती है।

आईआईएसईआर भोपाल के शोधकर्ता डॉ विनीत शर्मा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “नये ‘गटबग’ उपकरण में मशीन लर्निंग, न्यूरल नेटवर्क और केमोइंफॉर्मेटिक तरीकों के संयोजन का उपयोग किया गया है। एआई मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए मानव आँतों के लगभग 700 जीवाणु उपभेदों के 363,872 एंजाइमों के क्यूरेटेड डेटाबेस और 3,457 एंजाइमों वाले एक सब्सट्रेट डेटाबेस का उपयोग किया गया है।”

इस उपकरण का परीक्षण 27 विभिन्न अणुओं पर किया गया है, जिसमें जटिल कार्बोहाइड्रेट, फ्लेवोनोइड्स और ड्रग्स शामिल थे। परीक्षण में उपकरण को 0.78 से 0.97 तक सफलता दर के साथ सटीक पाया गया है।

डॉ शर्मा कहते हैं, “गटबग हमें यह बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकता है कि हम जो भोजन करते हैं, या जो दवाएं मौखिक रूप से लेते हैं, वे हमारे पेट के बैक्टीरिया द्वारा कैसे संसाधित होते हैं, और यह हमारे स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है। इस तरह की समझ आहार डिजाइन, नये प्रीबायोटिक्स के विकास, न्यूट्रास्युटिकल उत्पाद बनाने और दवाओं में सुधार करने में उपयोगी हो सकती है। डॉ विनीत शर्मा के अलावा इस अध्ययन के शोधकर्ताओं में आदित्य एस. मालवे और गोपाल एन. श्रीवास्तव शामिल हैं। यह अध्ययन शोध पत्रिका जर्नल ऑफ मॉलिक्यूलर बायोलॉजी में प्रकाशित किया गया है।

प्रजातियां कैसे काम करती हैं। इससे यह समझने में भी मदद मिल सकती हैं कि यह
अंतःक्रिया मानव शरीर में मेजबान सूक्ष्मजीवों को सकारात्मक या नकारात्मक रूप से
कैसे प्रभावित कर सकती है।
आईआईएसईआर भोपाल के शोधकर्ता डॉ विनीत शर्मा ने इंडिया साइंस वायर को
बताया कि “नये ‘गटबग’ उपकरण में मशीन लर्निंग, न्यूरल नेटवर्क और
केमोइंफॉर्मेटिक तरीकों के संयोजन का उपयोग किया गया है। एआई मॉडल को
प्रशिक्षित करने के लिए मानव आँतों के लगभग 700 जीवाणु उपभेदों के 363,872
एंजाइमों के क्यूरेटेड डेटाबेस और 3,457 एंजाइमों वाले एक सब्सट्रेट डेटाबेस का
उपयोग किया गया है।”
इस उपकरण का परीक्षण 27 विभिन्न अणुओं पर किया गया है, जिसमें जटिल
कार्बोहाइड्रेट, फ्लेवोनोइड्स और ड्रग्स शामिल थे। परीक्षण में उपकरण को 0.78 से
0.97 तक सफलता दर के साथ सटीक पाया गया है।
डॉ शर्मा कहते हैं, “गटबग हमें यह बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकता है कि
हम जो भोजन करते हैं, या जो दवाएं मौखिक रूप से लेते हैं, वे हमारे पेट के
बैक्टीरिया द्वारा कैसे संसाधित होते हैं, और यह हमारे स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित
करता है। इस तरह की समझ आहार डिजाइन, नये प्रीबायोटिक्स के विकास,
न्यूट्रास्युटिकल उत्पाद बनाने और दवाओं में सुधार करने में उपयोगी हो सकती है।
डॉ विनीत शर्मा के अलावा इस अध्ययन के शोधकर्ताओं में आदित्य एस. मालवे और
गोपाल एन. श्रीवास्तव शामिल हैं। यह अध्ययन शोध पत्रिका जर्नल ऑफ
मॉलिक्यूलर बायोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)

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