नई दिल्ली, 27 जनवरी (इंडिया साइंस वायर): कपड़ा उद्योग से उत्सर्जित कृत्रिम रंगों की
विस्तृत श्रृंखला मानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकती है। इसीलिए,
कपड़ा उद्योग से निकले अपशिष्ट जल के शोधन के लिए नवीन उपचार तकनीकों की
आवश्यकता है, जिससे अपशिष्ट जल में डाई अणुओं को पूरी तरह नष्ट किया जा सके।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर के शोधकर्ताओं ने अपशिष्ट जल-शोधन
की दो-चरणीय नई पद्धति विकसित की है, जिससे कपड़ा उद्योग से निकले रंगीन अपशिष्ट
जल का शोधन कर सकते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरह उपचारित जल का अन्य
उद्देश्यों के लिए पुन: उपयोग किया जा सकता है।
अपशिष्ट जल-शोधन के पहले चरण में दूषित जल का इलेक्ट्रोकेमिकल पद्धति से प्रसंस्करण
किया जाता है। जल-शोधन के दूसरे चरण में कार्बन नैनोफाइबर पर नये ZnO कैटरपिलर के
उपयोग से वास्तविक समय में फोटोकैटलिटिक निम्नीकरण किया जाता है। आईआईटी
जोधपुर के अध्ययन में यह पद्धति प्रदूषकों का पूर्ण रूप से क्षरण करने में सक्षम पायी गई है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि अपशिष्ट जल को दो चरणों में उपचारित करने से प्रक्रिया की
जटिलताएं कम हो जाती हैं, और कोई द्वितीयक प्रदूषण नहीं होता।
आईआईटी जोधपुर के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ता डॉ अंकुर गुप्ता ने अपने
शोध छात्र गुलशन वर्मा एवं प्रिंस कुमार राय के साथ-साथ कार्लज़ूए इंस्टीट्यूट ऑफ
टेक्नोलॉजी, जर्मनी के प्रोफेसर जॉन गेरिट कोरविंक तथा डॉ मोंसुर इस्लाम के सहयोग से यह
अध्ययन किया है। उन्होंने कपड़ा उद्योग से निकले अपशिष्ट जल को प्राकृतिक जल निकायों
में छोड़ने से पहले उपचार के लिए इस दो-चरणीय प्रक्रिया का पता लगाया है। उनके द्वारा
किया गया यह अध्ययन शोध-पत्रिका मैटेरियल साइंस ऐंड इंजीनियरिंग में प्रकाशित किया
गया है।
डॉ अंकुर गुप्ता ने कहते हैं, “दूषित जल से जुड़ी समस्या को दूर करने की आवश्यकता बढ़ रही
है, जो मुख्य रूप से स्टील और कपड़ा उद्योगों से होने वाले उत्सर्जन का परिणाम है। वस्त्र
उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट में पाये जाने वाले दूषित पदार्थों में अपघटनीय जैविक
तत्व, भारी धातुएं, रंजक, रासायनिक एजेंट और पीएच-नियंत्रित रसायन शामिल रहते हैं।
मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर अपशिष्ट जल के दुष्प्रभावों को देखते हुए, हमें इसको
पुनर्चक्रित करने; और जहाँ तक संभव हो परिशोधित जल के पुन: उपयोग को सुनिश्चित
करने की आवश्यकता है।”
कपड़ा उद्योग, जल संसाधनों के प्रमुख उपभोक्ताओं में से एक है, जो विषाक्त यौगिकों,
मैलेपन, रंगों की प्रचुरता, अकार्बनिक एवं कार्बनिक तत्वों से युक्त अपशिष्ट जल का उत्पादन
करते हैं। कपड़ा उद्योगों से निकले अपशिष्ट जल की संरचना में व्यापक भिन्नता के कारण
अधिकांश पारंपरिक प्रक्रियाएं (वर्षा, आयन एक्सचेंज, झिल्ली फ़िल्टरिंग आदि) अप्रभावी
साबित हो रही हैं। इसलिए, इस समस्या से निजात पाने के लिए वैकल्पिक समाधान की
जरूरत है।
नई एकीकृत प्रक्रिया वास्तविक वस्त्र नमूनों में मौजूद कठोर रंगों के प्रभावी निम्नीकरण के
साथ-साथ उच्च कार्बनिक पदार्थों को हटाने की दक्षता प्रदान करती है। कुशल निर्माण प्रक्रिया
के उपयोग से ZnO कैटरपिलर पैदा किया जाता है, जो वाष्प-तरल-ठोस विधि से सिलिकॉन
सब्सट्रेट पर कार्बन नैनोफाइबर पर विकसित होते हैं। आईओटी तकनीक से वस्त्र उद्योग के
अपशिष्ट जल निम्नीकरण की रियल टाइम निगरानी की जाती है। एक नोड एमसीयू माइक्रो-
कंट्रोलर बोर्ड और पीएच सेंसर को एकीकृत करके इस प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है।
फोटो-कैटेलिटिक डिकलराइजेशन की प्रक्रिया से हरापन लिए पीले रंग को रंगहीन (99
प्रतिशत) करने में लगभग 240 मिनट लगते हैं। इसके अतिरिक्त, वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट
जल से काफी मात्रा में टीएसएस (लगभग 75 प्रतिशत) और टीडीएस (लगभग 80 प्रतिशत)
भी निकाल दिए जाते हैं। इसके लिए इलेक्ट्रोकेमिकल और फोटोकैटलिटिक डिग्रेडेशन
प्रक्रिया का एकीकरण किया गया है।