हाल ही में सम्पन्न विधान सभा चुनाव कांग्रेस के लिए संकेत हैं कि वह कुछ नया करे।इन चुनाव परिणामों के आने के बाद ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, लालू यादव, स्टालिन, अखिलेश यादव इत्यादि सभी ने इंड़ी की बैठक में आने से इंकार कर दिया तो कांग्रेस को इंडी की यह बैठक ही स्थगित करनी पड़ी।मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलांगना और मिजोरम समेत पांचों राज्यों की विधानसभाओं के लिए हुए चुनावों के नतीजे माह के प्रथम सप्ताह में आ गए थे। कुछ महीने बाद ही 2024 में देश की लोकसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं। इसलिए देश की राजनीति में इनकी महत्ता ही नहीं बढ़ गई थी, बल्कि सभी राजनीतिक दलों का पारा भी जरूरत से ज्यादा चढ़ गया था। जहां तक इन चुनावों के नतीजों का सवाल है, भाजपा ने तीनों हिन्दी प्रदेशों यानी मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जीत हासिल कर ली है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में उसने कांग्रेस से सरकार छीनी है और मध्य प्रदेश में अपनी सरकार बरकरार रखी है।
मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों में से भाजपा ने 163 पर जीत हासिल की। कांग्रेस के हिस्से केवल 66 सीटें आईं। राजस्थान विधानसभा की कुल 200 सीटों में से भाजपा ने 115 पर जीत हासिल की और कांग्रेस को 69 सीटें ही मिलीं। छत्तीसगढ़ विधानसभा की 90 सीटों में से भाजपा को 54 और कांग्रेस को 35 सीटें मिलीं। तेलंगाना विधानसभा में कुल 119 सीटें हैं। वहां अभी तक भारत राष्ट्र समिति की सरकार थी। कांग्रेस ने वह सरकार उससे छीन ली है। भाजपा ने 8 सीटें जीती हैं। ओवैसी का हैदराबाद और उसके आसपास थोड़ा असर लम्बे अरसे से है। उसने 7 सीटें जीती हैं। वैसे वह लम्बे अरसे से सात सीटें ही जीतता रहा है।
भाजपा के लिए तो यहां इससे भी बड़ा सवाल था। क्या भाजपा की यह दक्षिण यात्रा जारी रहेगी या फिर तेलंगाना इसको रोक देगा? 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा यहां केवल एक सीट जीत पाई थी। उसके बाद हुए दो उपचुनावों में भाजपा ने दो सीटें और जीत लीं। पिछले साल ही मीडिया में यह चर्चा भी होने लगी थी कि भाजपा तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति को पराजित करने की हालत में पहुंच गई है।यह शायद अतिशयोक्ति ही थी। भाजपा ने आठ सीटें और चौदह प्रतिशत वोट लेकर स्थापित कर दिया है कि उसने दक्षिण के इस राज्य में भी हाशिए से बाहर निकल कर स्वयं को प्रदेश की राजनीति के केन्द्र में स्थापित कर लिया है। कांग्रेस की सबसे बड़ी चिन्ता यही है कि पूर्व, पश्चिम और उत्तर के बाद अब भाजपा ने दक्षिण की ओर भी बढऩा शुरू कर दिया है।
बात मिजोरम की । मिजोरम ईसाई प्रदेश है। इसकी जनसंख्या मात्र ग्यारह लाख है जिसमें से चार लाख लोग इसकी राजधानी आईजोल में ही रहते हैं। मिजोरम की विधानसभा में चालीस सीटें हैं। इनमें से चौदह सीटें आईजोल में ही हैं। पिछले लम्बे अरसे से वहां मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) नाम के क्षेत्रीय दल की सरकार थी। लेकिन इस बार जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जैडपीएम) नाम के दल ने उससे सत्ता छीन ली है। एमएनएफ को दस सीटें मिलीं जबकि जैडपीएम 27 सीटें ले गया। भाजपा को दो और कांग्रेस को एक सीट मिली। मिजोरम विधानसभा की दो सीटें ऐसी हैं जहां चकमा ही जीतते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पास पांच सीटें थीं और भाजपा के पास एक सीट थी। मिजो समुदाय और कूकी समुदाय को एक ही माना जाता है। इसलिए मणिपुर की स्थिति के कारण ऐसा माना जा रहा था कि मिजोरम में इस बार भाजपा को लोग नजदीक नहीं फटकने देंगे, बल्कि कांग्रेस जीत जाएगी।
लगभग तीस ज्ञात-अज्ञात पार्टियों से मिल कर जो इंडी एलायंस बनाया था, जिसमें कांग्रेस ने स्वयं ही अपने आपको इंडी एलायंस की धुरी मान कर व्यवहार करना शुरू कर दिया था, उसकी हवा इन चुनाव परिणामों ने निकाल दी है। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने इंडी एलायंस के सभी घटकों की बैठक छह दिसम्बर को बुलाई थी, लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, लालू यादव, स्टालिन, अखिलेश यादव इत्यादि सभी ने इस बैठक में आने से इंकार कर दिया तो कांग्रेस को अपनी इंडी की यह बैठक ही स्थगित करनी पड़ी। इस तरह ये चुनाव कांग्रेस के लिए संकेत हैं कि वह कुछ नया करे।