सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी के बाद केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के मतदाताओं के लिए अपनी चुनी हुई सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। इस केंद्र शासित प्रदेश में परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। हालांकि, इन याचिकाओं को खारिज करने के फैसले का राज्य में वर्ष 2019 में केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर कोई प्रभाव नहीं होगा। लेकिन इस फैसले के बाद विधानसभा चुनाव में किसी देरी को तार्किक ठहराना अब केंद्र सरकार के लिये मुश्किल होगा।
उल्लेखनीय है कि केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा की सीटों के पुनर्निर्धारण का आधार 2011 की जनगणना को बनाये जाने को लेकर अकसर सवाल उठाये जा रहे थे। दलील दी जा रही थी कि परिसीमन प्रक्रिया 2026 में की जानी थी। इस पर केंद्र सरकार की तरफ से दलील दी गई थी कि केंद्र शासित प्रदेश में जनता को अपनी चुनी हुई सरकार देने की प्रक्रिया में अब और विलंब नहीं किया जा सकता है। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो दलील दी जायेगी कि केंद्र प्रदेश में वक्त पर चुनाव करवाने से वायदे से मुकर रहा है। यहां उल्लेखनीय है कि केंद्र शासित प्रदेश में लोकसभा व विधान सभा सीटों का परिसीमन करने वाले आयोग ने पिछले वर्ष मई में अंतिम रिपोर्ट में चुनावी नक्शे को फिर से तैयार किया था। इस नये परिसीमन के बाद इस केंद्र शासित प्रदेश में अब जम्मू के लिये छह और कश्मीर के लिये एक अतिरिक्त निर्वाचन क्षेत्र की अनुशंसा की गई थी। परिसीमन आयोग ने जो नया चुनावी प्रारूप तैयार किया है उसमें इस प्रदेश के लिये कुल विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो गई है। उल्लेखनीय है कि पाक अधिकृत कश्मीर वाले क्षेत्र की 24 सीटों को प्रतीकात्मक रूप से इसमें शामिल नहीं किया गया है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 में पीडीपी तथा भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन टूटने के बाद राज्य में राज्यपाल शासन लग गया था। जिसके चलते यहां चुनाव की प्रक्रिया सिरे न चढ़ सकी। कालांतर अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म करने के बाद राजनीतिक अस्थिरता के चलते लोकतांत्रिक प्रक्रिया में ठहराव आ गया। अब एक बार फिर इस केंद्र शासित प्रदेश में राजनीतिक गतिविधियां जोर पकड़ने लगी हैं। अब चुनाव की तिथियों को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। हालांकि, विगत में चुनाव करवाने को लेकर की गई तमाम भविष्यवाणियां सच की कसौटी पर खरी नहीं उतरी थीं। वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार बार-बार कहती रही है कि जब भी इस प्रदेश में सामान्य स्थिति और शांति बहाल होगी, निर्धारित अवधि के बीच स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव करवाना संभव हो सकेगा।
निस्संदेह, एक परिपक्व लोकतंत्र के लिये स्वतंत्र-निष्पक्ष चुनाव कराना अपरिहार्य ही है। इस बात में दो राय नहीं हो सकती कि लोगों को अपने प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार है। यदि कोई सरकार ऐसा करती है तो वह किसी पर अहसान नहीं कर रही होती है।
अब केंद्र सरकार को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सामान्य स्थिति लाने के लिये तत्काल प्रभाव से काम करना चाहिए। केंद्र को प्रदेश में विश्वास बहाली के लिये अतिरिक्त प्रयास करने चाहिए। जम्मू-कश्मीर के लोगों को मतदान करने का अधिकार यथाशीघ्र देना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो यह प्रदेश की जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करने जैसा होगा। निस्संदेह, अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बावजूद अनुमानों के अनुरूप प्रदेश में आतंकवाद का पूरी तरह सफाया नहीं हो सकता है। हां, उसकी आवृत्ति में कमी जरूर आई है।
यह देखना होगा कि केंद्र व सेना की आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति किसी हद तक कामयाब हुई है। छुटपुट घटनाओं को अंजाम देने के अलावा चरमपंथी कोई बड़ा हमला करने में नाकामयाब रहे हैं। निस्संदेह, घाटी में फैले पाक पोषित आतंकवादी अपने आकाओं के इशारे पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पटरी से उतराने की कुत्सित कोशिशों को अंजाम देने का प्रयास करेंगे। ऐसे में केंद्र सरकार और सुरक्षाबलों की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जायेगी।