Shadow

प्रो कुसुमलता केडिया जी महिला दिवस पर कस्तूरी संस्था में बोलते हुए:-

कथित रेनेसां और enlightenment के बाद भी यूरोप में स्त्रियों पर भीषण अत्याचार जारी रहे थे क्योंकि चर्च के मनोरोगी पादरियों ने स्त्री को eve और evil प्रचारित कर दिया था।चर्च के नियंत्रण में ईसाई स्त्रियों को तरह तरह के झूठे अभियोग लगाकर भयंकर रूप से उत्पीड़ित किया जाता था:- जिंदा जला देना, खौलते कढ़ाह में उबालना, घोड़े की पूंछ में बांधकर पथरीली कटीली सड़कों में दौड़ाना ताकि वह लहूलुहान हो जाए, कांटेदार कुर्सी में बैठा कर मारना ,योनि में एक पीड़ादायक यंत्र डालकर उसे  इस प्रकार चौड़ा करते जाना कि भीषण पीड़ा हो और खून निकलने लगे,या  गले में कांटेदार यंत्र फंसा कर मुंह खोलना जिससे गला फट जाए और मरने की स्थिति आ जाए, ऐसे बर्बर पैशाचिक उपाय पादरियों  के द्वारा अपने अपने राज्यों की सहमति से किए जाते थे और जिन्हें यह दण्ड  दिया जाता था ,उनके ही परिवार से दंड देने का खर्चा वसूला जाता था
स्त्री को eve मान लिया गया था जिसके कारण कि वह ईश्वर कीसृष्टि की मूल योजना में शामिल नहींअपितु बाद में पुरुष के मनोरंजन के लिए पैदा की गई हैअतः उसके आत्मा नहीं होती, केवल शरीर  होता है,यह पादरी रूपी मनोरोगियों ने फैलाया था।बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक विशेषकर 1928 तक स्त्री को कोई” व्यक्ति’ नहीं माना जाता था । स्त्रियों में आत्मा है,यह बात नहीं मानी जाती। आज जो लोग चर्च के शिकंजे से मुक्त हैं, वे ही स्त्री को भी आत्मा से संपन्न मानते हैं परंतु संभवतः आज भी चर्च यह नहीं मानता ।
बीसवीं  शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक चर्च यह मानकर चलता था कि स्त्रियों के आत्मा नहीं होती।
इस प्रकार का भयंकर उत्पीड़न करने वाले चर्च में विज्ञान की उन्नति के बाद और क्वांटम भौतिकी के वैज्ञानिक तथ्यों के सामने आने के बाद तथा प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में युद्ध के उद्योग तथा अन्य उद्योग में व्यवस्था में स्त्रियों को कार्य के अवसर दिए जाने के बाद और गर्भनिरोध के उपाय सामने आने पर अनिवार्य रूप से प्रजनन की विवशता से उनके मुक्त होने के बाद जब स्त्रियों में चेतना जगी है और स्वयं यूरोप के भले पुरुषों ने ऐसी स्त्रियों की सहायता की है तथा वैज्ञानिकों ने, पर्यावरणविदों ने उनका पक्ष लिया है।तब से स्त्री आन्दोलन यूरोप में उभरा है।
विश्व की श्रेष्ठ सभ्यताओं के संपर्क में आए यूरोपी पुरुषों ने श्रेष्ठ स्त्रियों की सहायता की है और एक विराट स्त्री शक्ति जगी है ।
तब उसे एप्रोप्रियेट करने के लिए चर्च ने षडयंत्र पूर्वक पुरुष को ही स्त्री विरोधी प्रचारित कर डाला और स्वयं बच निकला।चर्च को इस विरोध में स्त्री का सहायक प्रचारित करने का बहुत बड़ा छल रचा गया है।
यद्यपि  छल इतना स्पष्ट है कि यूरोप में वह चल नहीं पाता ।
परंतु बाहर इस का निर्यात किया जाता है ।
अभी भी भारत की अधिकांश स्त्रियां इन पाप पूर्ण विकृतियों से मुक्त है ।
परंतु जो स्त्रियां इन दुष्टों और नीचों के संपर्क में आ गई हैं ,उनकी ही सबसे अधिक दुर्गति होती है ।
क्योंकि स्त्री को आत्मा विहीन या सेक्स मात्र का साधन मानने वाले लोग सबसे ज्यादा स्त्री पर ही अत्याचार करते हैं और वे ईसाई स्त्री पर अत्याचार करते रहे हैं।

कथित स्त्री मुक्ति आंदोलन की वाचाल स्त्रियां उनके संपर्क में ज्यादा आकर अंत में स्वयं उत्पीड़ित होती हैं।
जहां तक इस्लाम की बात है उसमें तो स्त्री का पर्याय कोई शब्द ही नहीं है ।वहां तो उसे” औरात’ कहा गया है और औरात केवल योनि का वाचक शब्द है।
उनके लिए स्त्री मात्र योनि होती है जिसमें कि पुरुष  संबंधित अंग को बलपूर्वक प्रविष्ट करा कर आनंद लेता है ,बस यही स्त्री की उपयोगिता है ।वे खेत हैं जिनमे जब चाहे खेतों में जा सकते हैं।
ईसाई चर्च ने अपने स्त्री को आत्मा और व्यक्तित्वसे रहित प्रचार किया। इस्लाम वालों ने स्त्री व्यक्तित्व का कभी कोई संज्ञान नहीं लिया ,उसे केवल योनि के रूप में देखा ।औरात शब्द का अर्थ यही है।
अब जो लोग क्रिश्चियन religion या इस्लाम मज़हब को धर्म कहते हैं, उन से ज्यादा अज्ञानी इस संसार में और कौन होगा ?
विश्व में अज्ञानी सदा रहेंगे और भारत में भी दुष्ट और मूर्ख पुरुष और स्त्रियों की कोई कमी नहीं है जैसे कि विश्व में है ।
परंतु सौभाग्य से भारत में अभी भी यह लोग हाशिए पर पड़े हुए हैं ।
इसलिए इस कथित स्त्री मुक्ति आंदोलन को दया और उपहास की वस्तु ही  कहा जा सकता है और इसी रूप में देखा जाना चाहिए तथा स्त्री मुक्ति की बात करने वालों पर तरस खाना चाहिए क्योंकि वे सत्य से दूर, काल्पनिक नारेबाजी रचकर अंत में स्वयं ही दुखी होते हैं।।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *