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उल्टा पड़ा दुष्प्रचार अभियान हृदयनारायण दीक्षित

भारत का मन क्षुब्ध और आहत है। निहित स्वार्थी कुछ विदेशी मीडिया घराने देश के विधि निर्वाचित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारत के विरुद्ध लगातार झूठ फैला रहे हैं। उन्हें भारत की लगातार बढ़ती विश्व प्रतिष्ठा से चिढ है। अभियान में देश के कथित वामपंथी उदारवादी भी शामिल हैं। वे प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में विकसित आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी भारत की प्रतिष्ठा गिराने में संलग्न हैं। अमेरिकी अखबार दि न्यूयॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट, खाड़ी देश कतर के अल जजीरा आदि मीडिया घराने भारत और प्रधानमंत्री के विरुद्ध सक्रिय हैं। हाल ही में दि न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे एक लेख में पत्रकारों को पुलिस द्वारा परेशान करने, कश्मीर को सूचना शून्य बनाने, आतंकवाद और अलगाववाद जैसे आरोपों की धमकी देने के आरोप लगाए गए हैं। सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने बीते शुक्रवार को कहा कि ‘‘दि न्यूयॉर्क टाइम्स ने प्रधानमंत्री व भारत के विरुद्ध झूठे आरोप लगाए हैं। ठाकुर ने दि न्यूयॉर्क टाइम्स सहित कुछ अन्य विदेशी मीडिया घरानों को भी इस साजिश का भाग बताया और कहा कि ‘‘दि न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत के विरुद्ध लिखने से पहले तटस्थता जैसी पत्रकारीय मर्यादा का पालन नहीं किया। उन्होंने लेख को झूठ का पुलिंदा बताया।‘‘ ‘कश्मीर टाइम्स‘ की संपादक अनुराधा भसीन द्वारा लिखित यह आलेख दि न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित हुआ है। उन्होंने ‘भारत की प्रेस स्वतंत्रता पर मोदी का अंतिम हमला शुरू‘ शीर्षक से भारतीय लोकतंत्र को अपमानित करने वाला लेख लिखा है। लेख के अनुसार ‘मोदी सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले मीडिया घरानों को निशाना बनाया जा रहा है। कश्मीर टाइम्स भी मोदी से नहीं बच सका। पीएम चाहते हैं कि मीडिया घराने सरकारी मुखपत्र की तरह काम करें।‘‘ अनुराधा पर श्रीनगर में पांच सरकारी फ्लैटों पर अवैध कब्जे का आरोप है। प्रशासन ने फ्लैट वापस ले लिए हैं।
प्रधानमंत्री और भारत विरोधी इस अभियान में ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन भी शामिल है। बीबीसी द्वारा बनाई गई प्रधानमंत्री विरोधी डाक्यूमेंट्री फिल्म चर्चा में है। यह 2002 के गुजरात दंगों पर आधारित है। मूलभूत प्रश्न है कि 21 साल बाद भारत के एक प्रतिष्ठित राज्य के दंगों पर ऐसी मनगढंत फिल्म बनाने का औचित्य क्या है? भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के मध्य विरोध स्वाभाविक है। विचार आधारित होने के कारण भाजपा पं० नेहरू, श्रीमती इंदिरा गाँधी और उनके परिजनों की सरकारों के विरुद्ध तथ्यगत आरोप लगाती है। श्रीमती इंदिरा गाँधी की आपातकालीन (1975) तानाशाही की याद कराती है। तब कथित उदारवादी मीडिया द्वारा कहा जाता है कि सन् 2023 में नेहरू, इंदिरा आदि के विषय उठाने का तुक क्या है? लेकिन वे सावरकर की 1921 की घटनाओं का उल्लेख करते हैं। मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री होने के समय की घटनाएं दोहराते हैं। मोदी की लोकप्रियता से ऐसे सभी तत्वों को चिढ है। इसका मुख्य कारण है कि तमाम आरोपों और झूठे हमलों के बावजूद मोदी जीत जाते हैं। उन पर कथित उदारवादी तत्वों व निहित स्वार्थी मीडिया घरानों की कारगुजारियों का कोई असर नहीं होता। 2024 में आम चुनाव हैं। विदेशी मीडिया का मोदी विरोधी हिस्सा 2024 में मोदी की पराजय चाहता है। इसी लक्ष्य के लिए बीबीसी की डाक्यूमेंट्री फिल्म है। इसी लक्ष्य के लिए जम्मू कश्मीर में कथित रूप में पत्रकारों को उत्पीड़ित करने वाली घटनाओं का दुष्प्रचार है। इसी के लिए योजनाबद्ध ढंग से मोदी विरोधी अभियान जारी है। मोदी राष्ट्रजीवन के सभी क्षेत्रों में कामयाबी के झंडे गाड़ रहे हैं। विदेशी मीडिया उनकी छवि को ध्वस्त करना चाहता है। लेकिन प्रधानमंत्री की छवि पर ऐसी साजिशों का प्रभाव नहीं पड़ता। बीबीसी सहित उनके विरुद्ध साजिश रचने वाले घराने मोदी के साथ भारत पर भी हमलावर हैं। लेकिन मोदी प्रत्येक आरोप के बाद और लोकप्रिय होकर उभरते हैं।
सत्य कभी पराजित नहीं होता। भारतीय राष्ट्रराज्य के प्रतीक चिह्न अशोक चक्र के नीचे ‘सत्यमेव जयते‘ अंकित है। बीबीसी की डाक्यूमेंट्री बड़ा झूठ है। गुजरात के सांप्रदायिक दंगों से जुड़े वास्तविक तथ्य देश जानता है। 27 फरवरी 2002 के दिन 59 कारसेवक अयोध्या से साबरमती एक्सप्रेस से घर लौट रहे थे। गोधरा रेलवे स्टेशन पर कोच में आग लगा दी गई। दूसरे दिन सांप्रदायिक हिंसा फैल गई। 6 मार्च 2002 के दिन मोदी सरकार ने तत्काल जांच आयोग अधिनियम के अधीन आयोग का गठन किया। 9 अक्टूबर 2003 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में निष्पक्ष विवेचना के लिए याचिका दी। 8 जून 2006 के दिन जाकिया जाफरी ने मोदी और अन्य के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई। 26 मार्च 2008 को सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई निदेशक आर०के० राघवन के नेतृत्व में एसआईटी गठित की। सर्वोच्च न्यायालय ने अभियोजन पक्ष को अद्यतन रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए। 6 मई 2010 के दिन सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिए कि अग्रिम आदेशों तक अंतिम निर्णय न घोषित किया जाए। 11 सितम्बर 2011 के दिन सर्वोच्च न्यायालय ने एसआईटी के चेयरमैन को सभी साक्ष्यों सहित अंतिम रिपोर्ट देने को कहा। एसआईटी ने 8 फरवरी 2012 को अंतिम रिपोर्ट दी। मोदी सहित 63 अन्य लोगों को निर्दोष पाया। जकिया जाफरी ने क्लीन चिट देने के विरुद्ध स्थानीय न्यायालय में मुकदमा किया। स्थानीय न्यायालय ने जाफरी का अनुरोध 26 दिसंबर 2013 को खारिज कर दिया। जाकिया सुप्रीम कोर्ट गईं। 26 अक्टूबर 2021 के दिन सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई शुरू की। 24 जून 2022 के दिन सुप्रीम कोर्ट ने जाकिया के पक्ष को निरस्त कर दिया। मोदी को क्लीन चिट देने का निर्णय बहाल रहा। सालों चली सुनवाई में मोदी निर्दोष पाए गए। बीबीसी क्या नई बात बताना चाहती है? सत्य की विजय हुई। झूठ हार गया।
भारत विरोधी सभी तत्व मोदी के विरुद्ध लगातार अभियान चला रहे हैं। मोदी सरकार ने 9 वर्ष में देश विदेश में आश्चर्यजनक सफलता पाई है। इस अवधि में भी भारत विरोधी मोदी विरोधी अभियान जारी रहे। मोदी सरकार के नेतृत्व में असहिष्णुता बढ़ने का नारा भी दिया गया था। भारतीय समाज को असहिष्णु बताना राष्ट्र का अपमान था। इन्हीं दिनों कथित उदारवादी तत्वों ने पुरस्कार वापसी का अभियान चलाया। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर हिंसक प्रदर्शन हुए। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत यात्रा पर थे। भारत विरोधी तत्वों ने दंगों के लिए यही समय उपयुक्त पाया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की बदनामी उनका मकसद था। विदेश की अनेक फर्जी संस्थाएं भारत की सहिष्णुता, लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं की गुणवत्ता पर फर्जी सर्वेक्षण प्रकाशित करती हैं। लोकतंत्र समाप्ति का नारा देती हैं। सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं को ध्वस्त करने के आरोप लगाती हैं। वे संवैधानिक लोकतंत्र को कमजोर करने का अपराध कर रहे हैं। कोरोना को लेकर मोदी सरकार की प्रशंसा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने की थी। लेकिन ऐसे तत्व भारत में कोविड के सफल प्रबंधन के भी निंदक थे। अमेरिका में प्रतिदिन हजारों मौतें हो रही थीं। किसी भी विदेशी संस्था ने अमेरिकी कुप्रबंधन की चर्चा नहीं की। लगभग 34 करोड़ की अमेरिकी जनसँख्या में प्रतिदिन इतनी मौतें भयावह है। मोदी इसकी चार गुना भारतीय आबादी में सफल प्रबंधन करने में कामयाब रहे। ठाकुर ने ठीक ही कहा है कि भारतवासी अपनी धरती पर इस तरह का एजेंडा चलाने की अनुमति नहीं दे सकते।

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