-बलबीर पुंज
आखिर हिंदू-मुस्लिम संबंधों में तनाव क्यों है? तथाकथित सेकुलरवादियों की माने तो यह समस्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मई 2014 में सत्तारुढ़ होने के बाद से आरंभ हुई है और उससे पूर्व, इनके आपसी संबंधों में कटुता का कारण— राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या अन्य हिंदू संगठनों का व्यवहार है। परंतु ऐसा (कु)तर्क करने वाले इस प्रश्न का उत्तर कभी नहीं देते कि इन दोनों ही समुदायों के बीच पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में संबंध क्यों ठीक नहीं है? अभी हाल ही में यूनाइटेड किंगडम (यू.के.) स्थित प्रबुद्ध मंडल ‘हैनरी जैक्सन सोसायटी’ (एच.जे.एस.) की एक रिपोर्ट सार्वजनिक हुई, जो रेखांकित करती है कि इंग्लैंड में भी हिंदू-मुस्लिमों के बीच रिश्ते काफी गर्त में है। इसका कारण यह बताया गया कि यू.के. स्थित हिंदू समाज, जिनकी संख्या वहां की मुस्लिम आबादी की लगभग एक चौथाई है— वे और उनके बच्चे मजहब के नाम पर प्रताड़ित किए जा रहे है।
भारतीय ‘सेकुलर’ विमर्श के अनुसार, हिंदू बाहुल्य भारत में मुसलमानों पर अत्याचार होते रहे है, जो मोदी सरकार में एकाएक बढ़ गए। एक स्थापित सत्य है कि जो समुदाय अपने देश में प्रताड़ित किया जाता है, उनकी आबादी कालांतर में घटते हुए नगण्य हो जाती है। अफगानिस्तान में 1970 के दशक में हिंदू-सिखों की जनसंख्या लगभग सात लाख थी, जो 55 अफगान सिख-हिंदू नागरिकों के गत वर्ष सितंबर में भारत लौटने के बाद शत-प्रतिशत शून्य हो गई है। इसी प्रकार, विभाजन के समय पाकिस्तान और बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) की कुल आबादी में क्रमश: अल्पसंख्यक हिंदू-सिख 15-16 प्रतिशत और हिंदू-बौद्ध 28-30 प्रतिशत थे, जो वर्ष 2023 में घटकर क्रमश: दो प्रतिशत और आठ प्रतिशत रह गए है। इसके विपरीत, इसी अवधि में हिंदू बहुल खंडित भारत में अल्पसंख्यक मुस्लिम— तीन करोड़ से 21 करोड़ से अधिक हो गए है, जो नई-पुरानी तीन लाख मस्जिदों में इबादत करने हेतु स्वतंत्र है।
स्पष्ट है कि संख्याबल में अधिक होने पर मुस्लिम समाज, हिंदू-सिख सहित अन्य सभी गैर-मुसलमानों के साथ कैसा व्यवहार करता है, इसका संकेत एच.जे.एस. की रिपोर्ट में मिलता है। ब्रिटेन-वेल्स की हालिया जनगणना के अनुसार, बीते एक दशक में वहां मुस्लिम आबादी 27 लाख से बढ़कर लगभग 40 लाख और हिंदुओं की जनसंख्या सवा आठ लाख से बढ़कर 10 लाख हो गई है। चूंकि संख्या में मुसलमान हिंदुओं से अधिक है, तो बकौल ब्रितानी रिपोर्ट, उनके समुदाय के एक वर्ग दवारा स्कूलों में हिंदुओं के शाकाहारी होने, तो हिंदू देवी-देवताओं और उनकी मान्यताओं (गौ-पूजन सहित) का मजाक उड़ाया जाता है। एच.जे.एस. के अनुसार, ब्रिटेन के 988 हिंदू अभिभावकों से बात और 1,000 से अधिक स्कूलों में जांच करके पता चला है कि इस्लामी समूह, हिंदुओं को अक्सर ‘काफिर’ कहकर संबोधित करते है। यह उनके वैचारिक दर्शन के अनुरूप भी है। हिंदू सहपाठियों को उनके माथे पर तिलक होने के कारण प्रताड़ित करके उनपर गोमांस तक फेंका जाता है। हिंदू छात्रों से कहा जाता है कि यदि वे परेशान नहीं होना चाहते, तो इस्लाम को कबूल कर लें। ईसाई समूह भी हिंदुओं पर फब्तियां कसते है। ब्रिटेन के समाचारपत्र ‘द टेलीग्राफ’ ने ब्रितानी सांसद बेन एवरिट के हवाले से छापा है कि एच.जे.एस. का सर्वे ठेस पहुंचाने वाला हैं, इसलिए वे ब्रिटिश सरकार से मजहबी शिक्षा में तत्काल सुधार की मांग करेंगे। इस प्रकार का यह कोई पहला मामला नहीं है। गत वर्ष भी यहां लेस्टर-बर्मिंघम में हिंदुओं को चिन्हित करके उनके घरों और मंदिरों पर योजनाबद्ध हमला हुआ था।
इस ब्रितानी रिपोर्ट से कुछ दिन पहले भारत के कई क्षेत्रों में रामनवमी पर निकाली गई शोभायात्राओं पर मुस्लिम समाज के एक वर्ग द्वारा पथराव हुआ था। तब दूषित नैरेटिव बनाया गया कि मुस्लिमों द्वारा हिंदू शोभयात्राओं पर पथराव और हिंसा— भक्तों द्वारा ‘उत्तेजनात्मक’ क्रियाकलापों (नारों सहित) के खिलाफ एक तात्कालिक प्रतिक्रिया थी। यदि तब ऐसा था, तो ब्रितानी स्कूलों में हिंदू सहपाठियों पर गोमांस क्यों फेंका जा रहा है? क्यों हिंदू आराध्यों का अनादर हो रहा है? क्यों हिंदू छात्रों पर इस्लाम स्वीकार करने का दवाब डाल जा रहा है? क्या भारतीय वामपंथी और स्वयंभू सेकुलरवादी, यू.के. में हिंदूफोबिया के लिए हिंदुओं के ‘भड़काऊ’ व्यवहार पर ही दोषारोपण करेंगे?
ब्रितानी दैनिक अखबार ‘द टाइम्स’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंग्लैंड-वेल्स में हिंदू अन्य सभी समुदायों से अधिक समझदार, धनवान और अच्छा व्यवहार करने वाले है। ब्रिटिश संसद के आंकड़े कहते है कि वर्ष 2022 में ब्रिटेन-वेल्स के विभिन्न कारावासों में 347 कैदी हिंदू थे, जोकि वहां विभिन्न जेलों में बंद कुल 80,659 कैदियों का आधा प्रतिशत भी नहीं है और किसी भी समूह में सबसे कम है। इसकी तुलना में मुस्लिम कैदियों की संख्या 17 प्रतिशत (14,037) है। ऐसी स्थिति क्यों है, इसका संकेत ब्रिटेन की गृह मंत्री स्वेला ब्रेवरमैन के हालिया वक्तव्यों में मिलता है।
बीते दिनों ब्रितानी चैनल ‘स्काई न्यूज’ को दिए एक साक्षात्कार में स्वेला ने कहा था— “पाकिस्तानी मूल के मुसलमान सांस्कृतिक दृष्टिकोण के मामले में ब्रिटिश मूल्यों पर खरा नहीं उतरते। वे श्वेत ब्रितानी लड़कियों से उनकी मुश्किल परिस्थितियों के दौरान बलात्कार करते है और ड्रग्स देते है।” इससे पहले यॉर्कशायर स्थित स्कूल में ‘ऑटिज्म’ से पीड़ित एक बच्चे को ‘ईशनिंदा’ के नाम पर इस्लामी कट्टरपंथी द्वारा जान से मारने की धमकी देने का मामला सामने आया था। तब स्वेला ने चेतावनी देते हुए कहा था— “इस्लाम को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि उसके पास कोई ‘विशेष सुरक्षा’ है।”
सच तो यह है कि बीते 1300 वर्षों से समस्त विश्व ‘काफिर-कुफ्र’ अवधारणा से प्रेरित संकीर्ण मानसिकता का शिकार है, जिसमें गैर-इस्लामी संस्कृति, परंपरा, मान्यताओं और उनके मानबिंदुओं का कोई स्थान नहीं है। भारतीय उपमहाद्वीप में खिलाफत आंदोलन के दौरान इस्लाम के नाम पर मोपला हिंदू नरसंहार, कलकत्ता डायरेक्ट एक्शन डे, भारत का रक्तरंजित विभाजन, कश्मीर में पंडितों का मजहबी दमन, अफगानिस्तान-पाकिस्तान में हिंदू-सिखों का उत्पीड़न और हिंदू शोभायात्राओं पर सदियों से हो रहे पथराव आदि— इसके उदाहरण है। ब्रितानी स्कूलों में मुस्लिम छात्रों द्वारा ‘काफिर’ हिंदू सहपाठियों का मजहबी उत्पीड़न— इस विषाक्त श्रृंखला का विस्तार है।
लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं।