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बैंकिंग क्षेत्र में बढ़ता तनाव और वित्तीय बाजार में अनिश्चितता

भारत के सरकारी अर्थ शास्त्रियों के अनुमान विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक के अनुमानों से मेल नहीं खा रहे हैं। इन बैंकों के नए अनुमान इस बात को रेखांकित करते हैं कि 2023-24 में भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी आएगी। बहुपक्षीय एजेंसियों के अनुमान भी इस दायरे के इर्दगिर्द ही हैं। बहरहाल, उभरते वैश्विक और घरेलू वृहद आर्थिक हालात को देखते हुए ये अनुमान दबाव में आ सकते हैं और वास्तविक वृद्धि आर्थिक समीक्षा में उल्लिखित दायरे के निचले स्तर के आसपास रह सकती है।

विश्व बैंक के अनुमानों के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत होगी जबकि एडीबी का अनुमान है कि यह दर 6.4 प्रतिशत रहेगी। ये अनुमान जनवरी में आर्थिक समीक्षा में पेश किए गए आंकड़ों के करीब हैं। उसमें कहा गया था कि वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहेगी जो वास्तव में 6 से 6.8 प्रतिशत के बीच रह सकती है।

विश्व बैंक का अनुमान है कि 2022-23 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत रहेगी जो 7 प्रतिशत के आधिकारिक अनुमान के करीब है। ध्यान देने लायक बात यह है कि सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 2022-23 की तीसरी तिमाही में घटकर 4.4 प्रतिशत रह गई और काफी कुछ चौथी तिमाही के नतीजों पर निर्भर करेगा। अगर अंतिम आंकड़े दिए गए अनुमान से कमजोर रहते हैं तो चालू वर्ष के अनुमान में भी संशोधन करना होगा।

इसके अलावा वृहद आर्थिक हालात भी अनुकूल नहीं रहे हैं। विश्व बैंक के अनुसार 2023 में विश्व अर्थव्यवस्था 1.8 प्रतिशत की दर से वृद्धि करेगी जबकि 2022 में यह 2.8 प्रतिशत की दर से वृद्धि हासिल करने में सफल रही थी। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए गत वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में नजर आई गति को उस समय बरकरार रखना मुश्किल होगा जब विश्व अर्थव्यवस्था में धीमापन आ रहा है। इसके अलावा बैंकिंग क्षेत्र में बढ़े तनाव ने वित्तीय बाजारों में अनिश्चितता बढ़ा दी है।

चूंकि अमेरिका और यूरोप में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति को आगे और सख्त बनाने की आवश्यकता होगी तो और अधिक बैंक तथा वित्तीय संस्थान दबाव में आ सकते हैं। हालांकि चालू खाते के घाटे में कमी आई है लेकिन बड़े पैमाने पर धन के बाहर जाने से वित्तीय बाजारों में अस्थिरता बढ़ सकती है जो वृद्धि पर असर डालेगी। इसके अलावा कच्चे तेल के बड़े उत्पादकों द्वारा उत्पादन में कटौती के निर्णय से भी यही संकेत मिलता है कि भारत जैसे आयातक इस मोर्चे पर राहत की उम्मीद नहीं कर सकते। भूराजनीतिक तनाव में संभावित इजाफा भी आर्थिक प्रभाव डालने वाला हो सकता है।

इस वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में यह बात सुखद है कि भारतीय बैंकिंग व्यवस्था अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है। कॉर्पोरेट और बैंक बैलेंस शीट दोनों में बीते कुछ वर्षों में सुधार हुआ है। हालांकि यह पर्याप्त नहीं होगा। जैसा कि विश्व बैंक ने भी कहा, मौद्रिक नीति सख्ती, वृद्धि की अनिश्चितता और सरकार द्वारा कम व्यय मांग को प्रभावित करेगा।भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू चक्र में अब तक नीतिगत ब्याज दरों में 250 आधार अंकों का इजाफा किया है और उम्मीद है कि इस सप्ताह दरों में एक बार फिर इजाफा होगा। चूंकि मुद्रास्फीति की दर रिजर्व बैंक के तय दायरे से ऊपर है, इसलिए संभव है कि नीतिगत ब्याज दर कुछ समय तक ऊंची बनी रहेगी। इसका असर मांग पर होगा।

अब सरकार को सुदृढ़ीकरण के पथ पर आगे बढ़ना होगा और वह इस स्थिति में नहीं होगी कि मध्यम अवधि में बिना जोखिम के वृद्धि की सहायता कर सके। जबकि मौजूदा माहौल में इससे बचा जाना चाहिए। इन परिस्थितियों में महत्त्वपूर्ण यह होगा कि नीतिगत गलतियों से बचा जाए और वृहद आर्थिक स्थिरता को मजबूत किया जाए।

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