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अर्थव्यवस्थाओं पर बहुत गहरा असर डाल रहा रूस यूक्रेन युद्ध !

24 फरवरी 2022 को शुरू हुआ रूस यूक्रेन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है और इस युद्ध को चलते हुए सवा साल से भी अधिक का समय हो गया है। दोनों ही देशों में कोई भी देश युद्ध में पीछे हटने को तैयार नहीं है और लगातार युद्ध जारी है। इसी बीच, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुतिन से फोन पर बातचीत कर एक बार फिर से यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने की अपील की है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि आपसी बातचीत और कूटनीति के जरिए इस मामले का हल निकालने की कोशिश की जानी चाहिए। पुतिन ने प्रधानमंत्री की सलाह को गंभीरता से सुना है, लेकिन यूक्रेन पर यह आरोप लगाया कि वह रूस से बातचीत और कूटनीति से साफ इनकार करता है। यह पहली बार नहीं है जब भारत के प्रधानमंत्री ने युद्ध विराम को लेकर ऐसी अपील की है। इससे पहले भी प्रधानमंत्री इस मामले को जल्द से जल्द सुलझाने की अपील की थी। जानकारी देना चाहूंगा कि शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में पुतिन से आमने- सामने मिल कर उन्होंने पुतिन को जंग खत्म करने की सलाह दी थी। तब पुतिन ने भारत के प्रधानमंत्री को यह विश्वास दिलाया था कि वे उनकी बातों पर जरूर अमल करेंगे, लेकिन वापस लौटते ही उन्होंने यूक्रेन पर हमले तेज कर दिए थे। पाठकों को बता दूं कि रूस यूक्रेन युद्ध से विश्व युद्ध के बाद से यूरोप में सबसे गंभीर मानवीय संकटों में से एक को जन्म दिया है। रूस यूक्रेन युद्ध से न केवल दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर बल्कि संपूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्थाओं पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ रहा है। दोनों देशों के बीच युद्ध से विश्व में गरीबी और भूख में इजाफा हुआ है। खाद्य कीमतों में अभूतपूर्व उछाल आया है और यही कारण है कि विश्व में अनेक देशों में लोग गरीबी रेखा से नीचे आ गए हैं। बताया जा रहा है कि यदि दोनों देशों के बीच युद्ध और भी अधिक लंबे समय तक जारी रहता है तो इससे उप-सहारा अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से लेकर काकेशस और मध्य एशिया तक कुछ क्षेत्रों में अशांति का अधिक खतरा पैदा हो सकता है,जबकि अफ्रीका और मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों में खाद्य असुरक्षा की और बढ़ने की संभावना है। रूस यूक्रेन युद्ध से आज तेल और प्राकृतिक गैस की कीमतों में वृद्धि देखने को मिली है। दोनों ही देश प्रमुख वस्तु उत्पादक हैं, युद्ध से बाजार में उछाल आया है। कमोडिटी व्यापार पर खास प्रभाव युद्ध से पड़ा है। युद्ध के कारण विभिन्न सेवाएं और यात्राएं भी बाधित हुई हैं। यदि रूस यूक्रेन युद्ध जारी रहता है तो इससे भारत पर भी प्रभाव पड़ना लाजिमी ही है, क्यों कि रूस सैन्य हार्डवेयर का भारत का सबसे बड़ा और विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता है। यह रूस के कारण है कि एस-400 वायु रक्षा प्रणाली ने चीन के खिलाफ भारत की रक्षा क्षमता को बढ़ाया है।मास्को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत का एक विश्वसनीय सहयोगी भी है। इतना ही नहीं,परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के क्षेत्र में रूस भारत का एक महत्वपूर्ण भागीदार है। वास्तव में दोनों देशों को यह चाहिए कि वे युद्ध का समाधान करने की दिशा में अपने कदम आगे बढ़ाएं, क्यों कि युद्ध किसी भी समस्या का स्थाई समाधान नहीं होता है। आज यूक्रेन लगभग लगभग पूरी तरह बर्बाद हो चुका है। रूस को भी नुकसान पहुंचा है। दोनों ही देशों में संपत्ति,धन व जानों का काफी नुकसान हुआ है। युद्ध से दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर बहुत बुरा असर पड़ा है। सच तो यह है कि अब दोनों ही देशों के बीच वार्ता को फिर से शुरू करने का समय है। मध्यस्थता की दिशा में पहल करने के लिए भारत के पास सुनहरा अवसर है। भारत लगातार बातचीत और कूटनीति को एकमात्र समाधान के रूप में रखता आया है, क्यों कि भारत हमेशा हमेशा से पंचशील के सिद्धांतों में विश्वास करता आया है। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए आपसी सम्मान, आपसी गैर-आक्रामकता, एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में गैर-हस्तक्षेप, समानता और पारस्परिक लाभ, और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पंचशील संधि के पांच सिद्धांत हैं। बहरहाल,दुनिया के तमाम देश भारत की तरफ नजरें लगाए हुए हैं कि अगर वह मध्यस्थता करे तो रूस- यूक्रेन युद्ध रुक सकता है। रूस तो वैसे भी भारत का एक मित्र देश रहा है और जहां तक यूक्रेन की बात है तो बताता चलूं कि युद्ध विराम के सिलसिले में भारत के प्रधानमंत्री ने यूक्रेन के राष्ट्रपति बोलोदिमीर जैलेंस्की से भी बातचीत की थी। बातचीत के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति जऐलएंस्कई ने इस पर अपना सकारात्मक रुख भी दिखाया था, लेकिन यह बहुत ही गंभीर, संवेदनशील और महत्वपूर्ण है कि करीब सवा साल से चल रहे इस युद्ध में दोनों देश वैश्विक गुटबंदियों में कुछ इस तरह उलझ गए हैं कि उन्हें इससे बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल पा रहा है। जानकारी देना चाहूंगा कि यूक्रेन को सबसे ज़्यादा सैन्य सहायता अमेरिका ने दी और उसके बाद ब्रिटेन ने भी ऐसा ही किया। पिछले साल अमेरिका ने यूक्रेन को ढाई अरब डॉलर की सैनिक सहायता दी, जो कि बहुत बड़ी सहायता है और इतनी ही सहायता वर्ष 2023 में अमेरिका ने यूक्रेन को देने का वादा भी किया है। पश्चिमी देश लगातार यूक्रेन की मदद कर रहे हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि जनवरी में अमेरिका और ब्रिटेन ने यूक्रेन को चैलेंजर 2 टैंक और जर्मनी ने अपने लेपर्ड टैंक देने का वादा किया।युद्ध की शुरुआत से यूक्रेन के सहयोगी उसे हर महीने दो अरब डॉलर की लागत के हथियार और दूसरी सैनिक सहायता देते रहे हैं। एक आंकड़े के अनुसार अमेरिका यूक्रेन को पच्चीस अरब डॉलर से अधिक की मदद दे चुका है।रूस चाहता है कि यूक्रेन नाटो की सदस्यता न ले, मगर यूक्रेन नाटो की सदस्यता में ही स्वयं को सुरक्षित मान रहा है। नाटो से जुड़े पश्चिमी देश यूक्रेन के समर्थन में हैं, जबकि रूस इन सभी के खिलाफ है। जानकारी देना चाहूंगा कि रूस को चीन का समर्थन हासिल है, जो अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन के वर्चस्व को चुनौती देता रहता है। इस तरह रूस- यूक्रेन युद्ध में दुनिया आज दो ध्रुवों में बंट गई है और दुनिया पर तीसरे विश्व युद्ध का खतरा जैसे मंडराने लगा है। रूस यूक्रेन युद्ध के कारण आज महंगाई में इजाफा हो गया है, संपूर्ण विश्व की आपूर्ति भी कहीं न कहीं बाधित हुई प्रतीत हुई है। आज कोई भी देश रूस यूक्रेन युद्ध संघर्ष में खुलकर सामने नहीं आ रहा है लेकिन पश्चिमी देश यूक्रेन को और विश्व के अन्य देश रूस को सपोर्ट कर रहे हैं। रूस यूक्रेन युद्ध से पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। यूक्रेन अनाज उत्पादन के मामले में विश्व की एक टोकरी कहलाता है लेकिन युद्ध से भूमि के उपजाऊपन व पर्यावरण पर विशेष असर तो पड़ा ही है।भारत के रूस और यूक्रेन दोनों से अच्छे संबंध हैं और अमेरिका ब्रिटेन से भी। वर्तमान स्थितियों में विभिन्न पश्चिमी देश चाहते हैं कि भारत रूस यूक्रेन के बीच मध्यस्थता करे। इस वक्त भारत समूह-बीस की अध्यक्षता कर रहा है, इसलिए भी उसका इस समूह के देशों पर दबाव बना कर युद्ध को विराम देने का दायित्व बढ़ गया है।

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

सुनील कुमार महला,फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार उत्तराखंड।

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