8 अप्रैल 1857 सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी मंगल पाण्डेय का बलिदान इन्ही के स्वाभिमान की चिंगारी क्राँति का दावानल बनी- रमेश शर्मा
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में 1857 की क्रान्ति को सब जानते हैं। यह एक ऐसा सशस्त्र संघर्ष था जो पूरे देश में एक साथ हुआ । इसमें सैनिकों और स्वाभिमान सम्पन्न रियासतों ने हिस्सा लिया । असंख्य प्राणों की आहूतियाँ हुईं थी । इस संघर्ष का सूत्रपात करने वाले स्वाभिमानी सिपाही मंगल पाण्डेय थे । अपने स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिये न केवल गाय की चर्बी वाले कारतूस लेने से इंकार किया अपितु दो अंग्रेज सैन्य अघिकारियों को गोली भी मार दी ।
ऐसे इतिहास प्रसिद्ध क्राँतिकारी मंगल पाण्डेय का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के अंतर्गत नगवा नामक गांव में 19 जुलाई 1827 को हुआ था। इनके पिता दिवाकर पांडे था भारतीय परंपराओ से जुड़े थे । घर में पूजा पाठ का वातावरण था । मंगल पाण्डेय की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई । वे स्वस्थ कद काठी थे । वे 1849 में 22 वर्ष की आयु में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना मे बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की 34 वीं बटालियन मे भर्ती हो गए । और प्रशिक्षण के बाद बंगाल भेज दिये गये । इस बंगाल नेटिव इन्फ्रेन्ट्री अंग्रेजों के विरुद्ध होने वाले विद्रोह को दबाने में लगाया गया था । इस बीच उन्हें असम और बिहार के वनवासी क्षेत्रों में भेजा गया । अपनी विभिन्न पदस्थापना में उन्होने अंग्रेज अफसरों का भारतीयों के प्रति शोषण और अपमान जनक व्यवहार को देखा था इससे उनके मन में अंग्रेजों के प्रति एक गुस्सा बढ़ता जा रहा था । उनकी इन्फ्रेन्ट्री का केन्द्र बंगाल का बैरकपुर था । बीच बीच में बैरकपुर आते थे । तभी नये कारतूसों को लेकर चर्चा चली । यह बात प्रचारित हुई कि इन कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी है । यह एनफ़ील्ड बंदूक थी जो 1853 में सिपाहियों के लिये आई थी । लेकिन दो तीन साल स्टोर में पड़ी रही और 1856 में सिपाहियों को दी गई। यह ०.557 कैलीबर की इंफील्ड बंदूक थी । इससे पहले ब्राउन बैस बंदूक सिपाहियों के पास थी जो बहुत पुरानी हो चुकी थी । इसे बदलकर नयी बंदूक दी गई थी जो मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी। नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली प्रिकशन कैप का प्रयोग किया जाता था । परन्तु इस नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी। इस बात को लेकर सिपाहियों में असंतोष उभरने लगा । तथा इन कारतूस का उपयोग न करने का वातावरण बनने लगा । सिपाहियों ने अपनी समस्या से अंग्रेज अधिकारियों को अवगत कराया पर अधिकारियों ने इसका समस्या का समाधान निकालने के बजाय उन सैनिकों पर कार्रवाई करने का निर्णय लिया जो इन कारतूसों के प्रति वातावरण बना रहे थे । इसमें मंगल पाण्डेय का नाम सबसे ऊपर पाया गया । उन्होने इन कारतूसों को लेने इंकार कर दिया । इसलिये अधिकारियों ने मंगल पांडेय को दण्ड देकर रास्ते पर लाने का निर्णय लिया । मंगल पाण्डेय को पहले एक बैरक में बंद करके बेंत मारने की सजा दी गई। मंगल पाण्डेय ने मन ही मन कुछ निर्णय किया और कारतूस लेने की सहमति दे दी तब उन्हें पुनः काम पर बहाल करने का निर्णय हुआ । तब 29 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान में परेड का आयोजन हुआ । इसमें वे दो अंग्रेज अधिकारी भी भाग लेने वाले थे जो इन कारतूसों के उपयोग पर जोर दे रहे थे । इनमें लेफ़्टीनेण्ट बाउ भी था । परेड करते हुये जैसे ही बाग सामने आया क्राँतिकारी मंगल पाण्डेय ने बाउ पर गोली चला दी। बाउ घायल होकर गिर पड़ा । जनरल जान ह्यूसन ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर जमादार ने मना कर दिया। सारी पलटन सार झुकाकर खड़ी रही । मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने कोई सिपाही आगे न आया । जनरल ने अनेक धमकियाँ दीं और लालच भी दिये तब शेख पलटु नामक एक सिपाही आगे आया । तब मंगल पाण्डेय ने पल्टन से विद्रोह करने का आव्हान किया पर इसके लिये किसी सिपाही का साहस न हुआ । परिस्थिति देखकर मंगल पाण्डेय ने स्वयं अपनी बंदूक से अपना बलिदान करने का विचार बनाया किन्तु वे घायल भर हुये । यहाँ इतिहास अलग-अलग पुस्तकों में अलग-अलग विवरण हैं। कुछ पुस्तकों में उनके घायल होने का कारण शेख पलटू द्वारा चलाई गई गोली थी जबकि कुछ ने स्वयं मंगल पाण्डेय द्वारा आत्म बलिदान करने का प्रयास लिखा है । जो हो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया । 6 अप्रैल 1857 को कोर्ट मार्शल हुआ । उन्हे मृत्युदंड मिला । इसके लिये 18 अप्रैल 1857 की तिथि निर्धारित की गई। किन्तु इससे दस दिन पहले 8 अप्रैल 1857 को ही उन्हें फाँसी दे दी गई।
सिपाही मंगल पाण्डेय द्वारा बंगाल की बैरकपुर छावनी में जिस क्रांति का उद्घोष किया था वही आगे चलकर पूरे देश में एक विशाल दावानल बनी । क्राँतिकारी मंगल पाण्डेय के बलिदान के एक महीने बाद ही 10 मई 1857 को मेरठ छावनी में कोतवाल धनसिंह गुर्जर ने क्रांति का उद्घोष किया और दिल्ली को अंग्रेजों से मुक्त कराया । यह विप्लव था जिससे अंग्रेजों को यह संदेश बहुत स्पष्ट मिल गया था कि भारत पर राज्य करना उतना सरल नहीं है जितना वे समझ रहे थे। इसके बाद ही उन्होंने भारत में कानूनों का दबाव बनाया और समाज को बाँटकर राज्य करने का षड्यंत्र तेज किया । पर मंगल पाण्डेय भारतीय इतिहास में अमर हो गये ।