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लौहपुरुष एवं भारत के बिस्मार्क थे सरदार पटेल

सरदार वल्लभभाई पटेल की 148वीं जन्म जयन्ती, 31 अक्टूबर, 2023
लौहपुरुष एवं भारत के बिस्मार्क थे सरदार पटेल
-ललित गर्ग –

अदम्य उत्साह, असीम शक्ति एवं कर्मठता से नवजात भारत गणराज्य की प्रारम्भिक कठिनाइयों का समाधान कर विश्व के राजनीतिक मानचित्र पर एक अमिट आलेख लिखने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल को भारत के लौह पुरुष के रूप में जाना जाता है। राष्ट्रीय आंदोलन से लेकर आज़ादी के बाद भी, सरदार पटेल का योगदान अविस्मरणीय है। महात्मा गांधी ने उन्हें सरदार की उपाधि दी थी। उनकी अखण्ड भारत को लेकर जितनी बड़ी कल्पनाएं थी, जितने बड़े सपने थे, उसी के अनुरूप लक्ष्य बनाये और उतने ही महत्वपूर्ण कार्य सफलतापूर्वक किये। इसलिये उन्हें भारत के बिस्मार्क के रूप में भी जाना जाता है। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन एवं आजादी के बाद आधुनिक भारत को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने, 562 रियासतों का एकीकरण कर संगठित राष्ट्र निर्मित करने के कारण पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक गौरवपूर्ण, ऐतिहासिक एवं स्वर्णिम स्थान प्राप्त किया। वास्तव में वे आधुनिक भारत के शिल्पी थे। भारत की माटी को प्रणम्य बनाने एवं कालखंड को अमरता प्रदान करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
सरदार पटेल के कठोर व्यक्तित्व में बिस्मार्क जैसी संगठन कुशलता, कौटिल्य जैसी राजनीति दूरदर्शिता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अब्राहम लिंकन जैसी अटूट निष्ठा थी। राजनीतिक कारणों से इस लोकपुरुष को उतना गौरवपूर्ण स्थान नहीं मिला, जितना अपेक्षित था। लेकिन नरेन्द्र मोदी ने इस कमी को पूरा करते हुए इतिहास-पुरुष पटेल की जन्म दिवस प्रतिवर्ष देशभर के सरकारी-गैर सरकारी संस्थानों, विश्वविद्यालयों और स्कूलों में राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाये जाने की परम्परा का सूत्रपात किया। उनकी जयंती के मौके पर गुजरात के केवड़िया में उनकी 182 मीटर ऊंची मूर्ति “स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी” राष्ट्र को समर्पित की गई है जोकि “देश की एकता में उनके योगदान” को इंगित करती है।
वास्तव में, सरदार पटेल होना आसान नहीं है। पटेल एक मज़बूत, अडिग और दृढ़ संकल्पित व्यक्तित्व के धनी थे, भारत के देशभक्तों में एक अमूल्य रत्न थे एवं आधुनिक भारत के शक्ति स्तम्भ थे। आत्म-त्याग, अनवरत सेवा तथा दूसरों को दिव्य-शक्ति की चेतना देने वाला उनका जीवन सदैव प्रकाश-स्तम्भ की अमर ज्योतित रहेगा। वे मन, वचन तथा कर्म से एक सच्चे भारतीय एवं भारतीयता के प्र्रतीक पुरुष थे। वे वर्ण-भेद तथा वर्ग-भेद के कट्टर विरोघी थे। वे अन्तःकरण से निर्भीक थे। अद्भुत अनुशासन प्रियता, अपूर्व संगठन-शक्ति, शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता एवं अनूठी प्रशासनिक क्षमता उनके चरित्र के अनुकरणीय अलंकरण थे। कर्म उनके जीवन का साधन था। संघर्ष को वे जीवन की व्यस्तता समझते थे। गांधीजी के कुशल नेतृत्व में सरदार पटेल का स्वतन्त्रता आन्दोलन में योगदान उत्कृष्ट एवं महत्त्वपूर्ण रहा है।
सरदार पटेल का जन्म गुजरात के नडियाद (ननिहाल) में 31 अक्टूबर 1875 को हुआ। उनका पैतृक निवास स्थान गुजरात के खेड़ा के आनंद तालुका में करमसद गांव था। वे अपने पिता झवेरभाई पटेल तथा माता लाडबा देवी की चौथी संतान थे। उनका विवाह 16 साल की उम्र में झावेरबा पटेल से हुआ। उन्होंने नडियाद, बड़ौदा व अहमदाबाद से प्रारंभिक शिक्षा लेने के उपरांत इंग्लैंड मिडल टैंपल से लॉ की पढ़ाई पूरी की एवं 22 साल की उम्र में जिला अधिवक्ता की परीक्षा उत्तीर्ण कर बैरिस्टर बनेें। वे कितने मेधावी थे इसका अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि 1910 में वे पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए और लॉ का कोर्स उन्होंने आधे वक्त में ही पूरा कर लिया। वेे भारत लौट आए और स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान देने लगे। सरदार पटेल ने अपना महत्वपूर्ण योगदान 1917 में खेड़ा किसान सत्याग्रह, 1923 में नागपुर झंडा सत्याग्रह, 1924 में बोरसद सत्याग्रह के उपरांत 1928 में बारडोली सत्याग्रह में देकर अपनी राष्ट्रीय पहचान कायम की।
सरदार पटेल का व्यक्तित्व विवादास्पद रहा है। प्रायः उन्हें ‘असमझौतावादी’’, ‘पूँजी समर्थक’, ‘मुस्लिम विरोधी’, तथा ‘वामपक्ष विरोधी’ कहा जाता है। पटेल की राजनीतिक भूमिका, योगदान तथा चिंतन का सही विश्लेषण किया जाना एवं उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को लेकर पैदा की गयी भ्रान्तियाँ दूर कर पक्षपातों तथा पूर्वाग्रहों से रहित वास्तविक तथ्यों को उजागर किये जाने के प्रयास  अपेक्षित है। उनके राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित उपेक्षित या छिपे हुए महत्त्वपूर्ण तथ्यों को सामने लाकर उसका आलोचनात्मक विश्लेषण किया जाये, ताकि भारत के स्वतंत्रता संग्राम एवं आधुनिक भारत के निर्माण के प्रारंभिक इतिहास का वास्तविक स्वरूप सामने आये। निःसंदेह सरदार पटेल द्वारा 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। 1947 में भारत को आजादी तो मिली लेकिन बिखरी हुई। इतनी रियासतें थीं, कुछ बेहद छोटी तो कुछ बड़ी। ज्यादातर राजा भारत में विलय के लिए तैयार थे। लेकिन, कुछ ऐसे भी थे जो स्वतंत्र रहना चाहते थे। यानी ये देश की एकता के लिए खतरा थे। सरदार पटेल ने इन्हें बुलाया और समझाया। वे मानने के लिए तैयार नहीं हुए तो पटेल ने सैन्य शक्ति का इस्तेमाल किया। सरदार पटेल ने फरीदकोट के नक्शे पर अपनी लाल पैंसिल घुमाते हुए केवल इतना पूछा कि ‘क्या मर्जी है?’ राजा कांप उठा। आज एकता के सूत्र में बंधे भारत के लिए देश सरदार पटेल का ही ऋणी है। लक्षद्वीप समूह को भारत में मिलाने में भी पटेल की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल के बारे में लिखा था, ‘रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।’ कहा जाता है कि एक बार उनसे किसी अंग्रेज ने इस बारे में पूछा तो सरदार पटेल ने कहा- मेरा भारत बिखरने के लिए नहीं बना। फ्रैंक मोराएस ने लिखा भी है- ‘‘एक विचारक आपका ध्यान आकर्षित करता है, एक आदर्शवादी आदर का आह्वान करता है, पर कर्मठ व्यक्ति, जिसको बातें कम और काम अधिक करने का श्रेय प्राप्त होता है, लोगों पर छा जाने का आदी होता है, और पटेल एक कर्मठ व्यक्ति थे।’’
निःसंदेह स्वतंत्र भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री व गृहमंत्री सरदार पटेल भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी योद्धा व भारत सरकार के आधार स्तंभ थे। वे ही भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बनने वाले थे, लेकिन जवाहरलाल नेहरू की हठ एवं गांधी के कहने पर पटेल पीछे हटे। आजादी से पहले भारत की राजनीति में इनकी दृढ़ता और कार्यकुशलता ने इन्हें स्थापित किया और आजादी के बाद भारतीय राजनीति में उत्पन्न विपरीत परिस्थितियों को देश के अनुकूल बनाने की क्षमताओं ने सरदार पटेल का कद काफी बड़ा कर दिया। सरदार पटेल गृहमंत्री के पद पर रहते हुए जहां पाकिस्तान की छद्म व चालाकीपूर्ण चालों से सतर्क थे वहीं देश के विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे। विशेषकर वे भारत में मुस्लिम लीग तथा कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी भक्ति से सजग थे। यदि पटेल के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते। पटेल सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल राजनीति के सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के हृदय के सरदार थे। यदि पटेल की बात मानी गई होती तो 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा न करनी पड़ती। गृहमंत्री के रूप में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा। यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवतः नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता। पडौसी देशों एवं कश्मीर की समस्या भी इतनी लम्बी नहीं होती। क्योंकि सरदार पटेल  शास्त्रों के नहीं, शस्त्रों के पुजारी थे। पटेल अखण्ड एवं सुदृढ़ भारत का सपना देखते थे।

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