मेरे एक बैंकर मित्र श्री श्याम कस्तूरे इन दिनों अमेरिका में हैं। उनसे अमेरिका के सिलिकॉन वैली बैंक,सिल्वर गेट और सिग्नेचर बैंक के डूबने पर लम्बी बात हुई, मित्र ने कुछ लिख भी भेजा। वस्तुतः: ये बैंक डूब चुके हैं, और यह घटनाक्रम भारत के लिए चेतावनी है । इन बैंकों के दिवालिया होने के बाद वहाँ के उन सभी छोटे अमेरिकी बैंकों पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं, जिनका व्यवसाय इन बैंकों के साथ जुड़ा हुआ है। अमेरिका के बैंकिंग सेक्टर की मुश्किलें बहुत बढ़ गई हैं। आर्थिक जगत के विद्वान अचंभित हैं। दुनियाभर के शेयर बाजार सहमे हुए हैं।
बैंक के प्रदर्शन और क्रेडिट गुणवत्ता के आधार पर फरवरी, 2023 में सिलिकॉन वैली बैंक को फोर्ब्स ने 100 सर्वश्रेष्ठ बैंकों की वार्षिक सूची में शीर्ष 20 में स्थान दिया था। करीब 44 प्रतिशत तकनीकी और स्वास्थ्य क्षेत्र की कंपनियों के साथ कारोबार करने वाले इस बैंक के शेयर की कीमत तब डॉलर से भी अधिक थी। कुल 210 अरब डॉलर का कारोबार एवं 175.4 अरब डॉलर (दिसंबर, 2022 में) की जमापूंजी वाला सिलिकॉन वैली बैंक अर्श से फर्श पर है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि दुनियाभर के तकनीकी आधारित नये स्टार्टअप्स को वित्तीय सहारा देने वाला सिलिकॉन वैली बैंक डूब गया? कुछ विद्वानों ने आशंका व्यक्त की कि 2008 में आ चुकी मंदी पुनः खुद को दोहराएगी। जमाकर्ताओं की बड़ी धनराशि डूबने का असर होगा कि ये कंपनियां अपने कर्मचारियों को उनका वेतन नहीं दे पाएंगी, जिससे लोगों की नौकरी चली जायेगी।
यह समझना महत्वपूर्ण होगा कि आखिर यह बैंक डूबा क्यों? बैंक हमेशा लेन-देन पर चलता है। जब बैंक अपने ऋणों पर तो दो से तीन प्रतिशत ब्याज लेगा और अपने जमाकर्ताओं को 5 प्रतिशत ब्याज का भुगतान करेगा तो वह बैंक असफल होगा ही। कुछ ऐसी स्थितियां सिलिकॉन वैली बैंक के साथ हुई। बढ़ती महंगाई रोकने को फेडरल बैंक ने बीते कई महीनों से ब्याज दरों को बढ़ाना शुरू कर दिया था। ब्याज दरों में निरंतर वृद्धि का दोहरा प्रभाव हुआ। पहला, निवेशकों विशेष रूप से स्टार्टअप्स का व्यवसाय के प्रति आकर्षण कम होने लगा। पिछले 12 से 15 महीनों में आसमान छूती महंगाई दरों के बीच स्टार्टअप्स की तेजी में गिरावट होने लगी। जिसका प्रभाव सिलिकॉन वैली बैंक के व्यवसाय पर भी पड़ने लगा। ऋण वापसी की दर बहुत कम हो गई। दूसरी ओर, कोरोना दुष्काल उपरांत परिस्थितियों में अपने को बाजार में बनाए रखने के लिए स्टार्टअप्स कंपनियों ने बैंक से अपनी जमा पूंजी निकालनी शुरू कर दी। पैसा लौटाने को सिलिकॉन वैली बैंक को अपने बांड बेचने पड़े। बैंक के 91 अरब डॉलर के बांड्स की कीमतों में करीब 15 अरब डॉलर की गिरावट आ गई। जब बैंक अपनी सबसे सुरक्षित संपत्ति नुकसान में बेचता है, तो इसका अर्थ है कि वह नगदी संकट का सामना कर रहा है। जिसका दुष्परिणाम सिलिकॉन वैली बैंक दिवालिया होने के रूप में सामने है।
ख़तरा यह है कि अमेरिका के 16 वें सबसे बड़े सिलिकॉन वैली बैंक के दिवालिया होने का असर 92 से अधिक उन भारतीय स्टार्टअप्स पर भी होगा, जिनका खाता इस बैंक में है। इस बैंक का एक ऑफिस बंगलौर में भी है जो स्टार्टअप्स व्यवसाय को बढ़ाने के लिए अपने यहां खाता खोलने को प्रेरित करता था। यह बैंक अपनी लचीली कार्यप्रणाली के चलते दुनियाभर के स्टार्टअप्स के लिए सबसे पसंदीदा विकल्पों में से एक है। यही कारण है कि सिलिकॉन वैली में हर तीसरा स्टार्ट-अप भारतीय अमेरिकियों का रहा है। भारत में बढ़ने वाले यूनीकार्न की संख्या में इस बैंक का भी बड़ा योगदान रहा है। पिछले अक्तूबर में भारतीय स्टार्टअप्स ने 150 मिलियन डॉलर पूंजी जुटाई थी। मौजूदा परिस्थितियों ने नापतोल, कार वाले, शादी, इनमोबी, लॉयल्टी रिवार्ड्ज आदि स्टार्टअप्स के मन में अनिश्चितता भाव बढ़ा दिया।
सिलिकॉन वैली बैंक के असफल होने से भारत के स्टार्टअप्स का वर्तमान और भविष्य भी मुश्किल में है। सरकार इन स्टार्टअप्स को बचाने को इनके साथ खड़ी है, जिससे भविष्य में हालात के बिगड़ने पर स्थिति को संभाला जा सके। सूचना और प्रौद्योगिकी केन्द्रीय राज्य मंत्री राजीव चंद्र शेखर ने ट्वीट में कहा कि स्टार्टअप भारतीय अर्थव्यवस्था का जरूरी हिस्सा हैं। उनसे जानने का प्रयास किया जाएगा कि सरकार उनकी मदद कैसे कर सकती है। वहीं भारतीय रिज़र्व बैंकऔर भारत सरकार को सोचना होगा कि आखिर भारतीय स्टार्टअप्स देश के बाहर के बैंकों की तरफ रुख क्यों करते हैं? क्या इनको देश की बैंकिंग व्यवस्था से नहीं जोड़ सकते हैं?
जानकार कह रहे हैं भारत की दृढ़ बैंकिंग व्यवस्था एवं रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित होने के कारण सिलिकॉन वैली बैंक के दिवालिया होने का भारतीय बैंकों पर कोई गहरा प्रभाव नहीं पड़ेगा। भारत में एनपीए स्तर नियंत्रण में है। महंगाई नियंत्रित करने के लिए आज रिज़र्व बैंक की लचीली मौद्रिक नीति की सराहना भी की जा रही है।
सिलिकॉन वैली बैंक एवं अन्य अमेरिकी बैंकों के असफल होने से 2008 की तरह मंदी के आने की संभावनाएं बहुत ही कमजोर हैं,क्योंकि 2008 की तुलना में आज विश्व बेहतर आर्थिक स्थिति में है। फेडरल बैंक का निरंतर प्रयास रहेगा कि अतिशीघ्र इस वित्तीय संकट को सुलझाया जाए। जिससे उसकी उपस्थिति आर्थिक शक्ति के रूप में बनी रहे। इसके बावजूद भारत के नीति-निर्माताओं को सतर्क रहना होगा।
ReplyForward |