अवधेश कुमार
मध्यप्रदेश कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के हिंदुत्व से संबंधित बयान सोशल मीडिया पर वायरल हैं। दोनों प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। मध्य प्रदेश चुनाव की कमान मुख्यतः इन्हीं दोनों के हाथों है। इसलिए उनके बयानों और गतिविधियों को कांग्रेस की चुनावी रणनीति का अंग स्वाभाविक ही माना जाएगा। कमलनाथ से एक पत्रकार हिंदू राष्ट्र के बारे में प्रश्न पूछता है। कमलनाथ कह रहे हैं कि है तो उसे कहने की क्या जरूरत है। इसका समान्य अर्थ यही लगाया गया है कि वे मान रहे हैं कि भारत हिंदू राष्ट्र है लेकिन उसे बोलने की आवश्यकता नहीं है। इसी तरह दिग्विजय सिंह हिंदुत्व से संबंधित बयान में संघ और भाजपा का विरोध कर रहे हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या वह बजरंग दल पर बैन लगाएंगे? वह कह रहे हैं कि नहीं बैन नहीं लगाएंगे, बजरंग दल में भी अच्छे लोग होंगे। एक तरफ देश में आक्रामक या उग्र हिंदुत्व के लिए दिग्विजय सिंह विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल आदि को उत्तरदायी ठहराते हैं और दूसरी ओर कहते हैं कि प्रतिबंध नहीं लगेगा, क्योंकि उसमें भी अच्छे लोग हैं तो इसके राजनीतिक निहितार्थ समझने की आवश्यकता है। इन दोनों बयानों को आम राजनीतिक विश्लेषकों ने कांग्रेस के सॉफ्ट यानी नरम हिंदुत्व की संज्ञा दी है। जब भी कोई दूसरी पार्टी हिंदुत्व संबंधित बात करती है तो उसके लिए सामान्यतः नरम हिंदुत्व शब्द ही प्रयोग किया जाता है।
वस्तुत संघ परिवार और राजनीति में भाजपा के हिंदुत्व को हार्ड यानी कठोर हिंदुत्व तो अन्यों का नरम हिंदुत्व जैसी शब्दावली हमारे यहां प्रचलित हो गई है। तात्पर्य यह कि इस समय मध्य प्रदेश चुनाव में भाजपा के हिंदुत्व के समानांतर कांग्रेस के नेता भी अपनी दृष्टि के हिंदुत्व की रणनीति पर काम कर रहे हैं। पिछले कुछ महीनों से हम मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के एक युवा प्रवचनकर्ता और विशिष्ट शक्तियों से लोगों की समस्याओं को दूर करने वाले बाबा बागेश्वर के दरबार में नेताओं की उपस्थिति देख रहे हैं। पहले भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर अनेक नेता वहां कैमरे पर दिखाई दिए। उसके बाद कांग्रेस के नेताओं की भी तस्वीरें आने लगी। इनमें स्वयं कमलनाथ शामिल हैं। मध्य प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं को यह आभास हुआ कि बाबा बागेश्वर का प्रभाव आम जनता पर मध्यप्रदेश ही नहीं पूरे देश में बढ़ रहा है। वे जिस दिन से खुलकर हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र की बात कर रहे हैं उसके लिए भले संघर्ष करने वाले, काम करने वाले लोग मिलें न मिलें, किंतु आम जनता के मन में उसे लेकर समर्थन का भाव गहरा हो रहा है। इसमें अगर हमने कोई स्पष्ट नीति नहीं ली तो संभव है कि चुनाव परिणाम हमारे हाथों से निकल जाए। इसके बाद कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदली। बाबा बागेश्वर से संपर्क किया गया और जैसी सूचना है नेतृत्व उनसे लगातार संपर्क में है।
हालांकि बाबा बागेश्वर ने अभी तक किसी राजनीतिक दल को वोट देने की अपील नहीं की है। ऐसा लगता भी नहीं कि वे किसी राजनीतिक दल का खुलकर समर्थन करेंगे। किंतु उनके कार्यक्रमों और वक्तव्यों से यह साफ लग रहा था कि उनकी धारा वही है जो संघ परिवार की तथा राजनीति में भाजपा की है। ध्यान रखिए दूसरे हिंदू संगठन जब हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं तो उसका कांग्रेस कट्टर प्रतिवाद करती है। बाबा बागेश्वर के हिंदू राष्ट्र के लिए अभियान चलाने का किसी कांग्रेस के नेता ने विरोध नहीं किया है। कमलनाथ के हिंदू राष्ट्र संबंधी बयान को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यानी अगर हिंदू राष्ट्र का विरोध हुआ तो यह बाबा बागेश्वर का विरोध हो जाएगा और उसके बाद जितनी संख्या में उनके अनुयायी पूरे प्रदेश में खड़े हो गए हैं उन सबका विरोध झेलना पड़ेगा। मध्यप्रदेश ही नहीं पूरे भारत का सच यही है कि हिंदू समाज के अंदर हिंदुत्व, भारत, अपनी सभ्यता -संस्कृति , धर्म – अध्यात्म को लेकर स्पष्टता व प्रखरता पहले से काफी बढ़ी है। इसमें संघ परिवार के लंबे समय से किए गए कार्यों के साथ केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार की भूमिका है। केंद्र और राज्यों दोनों में भाजपा सरकारों के कारण निश्चित रूप से लोगों के अंदर सत्ता को लेकर असंतोष का भाव पैदा होता है। हिंदुत्व ऐसी ताकत है जिसमें मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग सब कुछ भूल कर अंततः भाजपा के पक्ष में मतदान कर देता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को संभवतः यह सच्चाई समझ में आ गई है, इसलिए वे हिंदुत्व का विरोध नहीं करते, बल्कि अपने वक्तव्य एवं भाव से यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वह उनसे अलग नहीं है। इसके पीछे सोच यही है कि भाजपा के विरुद्ध असंतोष का लाभ कांग्रेस को मिले। अगर हिंदुत्व पर हमने पहले की तरह विरोधी रूख अपनाया तो प्रतिक्रिया में सारे वोट भाजपा के पक्ष में चले जाएंगे। कांग्रेस का निष्कर्ष है कि कर्नाटक में सिद्धारमैया के बजरंगबली बयान के समानांतर भी शिवकुमार का जगह-जगह मंदिरों में जाना बजरंगबली का मंदिर बनवाने, जीर्णोद्धार की घोषणा करने तथा उनके विचारों को फैलाने के वादे के कारण भाजपा इसका लाभ नहीं उठा सकी। उसी रणनीति को दूसरे तौर पर दिग्विजय सिंह और कमलनाथ एवं अन्य नेता मध्यप्रदेश में अपना रहे हैं।
राज्यों में जमीन पर सर्वेक्षण करने वाले कुछ लोगों का यह भी कहना है कि भाजपा की सरकारों को लेकर स्वयं संगठन परिवार के अंदर भी बड़े वर्ग में असंतोष का भाव है। जिस तरह 2004 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा को संगठन परिवार के असंतोष की क्षति उठानी पड़ी वह स्थिति फिर पैदा की जा सकती है। इस कारण बजरंग दल या ऐसे संगठनों का स्थानीय स्तर पर नेता उग्र विरोध न करें । यानी केंद्र के स्तर पर राहुल गांधी या दूसरे नेता कुछ बोलें, कम से कम भाजपा शासित राज्यों में नेता परहेज करें। सोच यह है कि स्थानीय नेताओं के कारण हिंदुत्व विचारधारा वाले लोगों और संगठन परिवार के अंदर के असंतोष का भी लाभ कांग्रेस को मिल सकता है। तो कांग्रेस की रणनीति चुनावी दृष्टि से आसानी से समझ में आती है। प्रश्न है कि क्या वाकई इसका लाभ इस रूप में कांग्रेस को मिलेगा जैसी वे अपेक्षा कर रहे हैं?
इसमें दो राय नहीं कि कांग्रेस में लंबे समय से एक वर्ग इसके पक्ष में नहीं रहा है जिसमें स्वयं को हिंदू कहना या हिंदुत्व संबंधी प्रतीकों या विचारों से परहेज किया जाए। किंतु कांग्रेस की घोषित नीति यही हो गई थी और इसके दबाव में छिपे रूप में तो कांग्रेसी नेता हिंदुत्व की बात करते थे प्रकट नहीं। भाजपा के उभार और हिंदुत्व पर केंद्र एवं राज्य सरकारों के कार्यों ने केवल कांग्रेसी नहीं अलग-अलग पार्टियों के नेताओं को भी हिंदुत्व पर खुलकर सामने आने को विवश किया है। हम पूरे देश में यह प्रवृत्ति देख रहे हैं कि स्वयं को प्रचंड से कुलर घोषित करने वाले नेता भी चुनाव में मंचों से कभी मंत्र पाठ तो कभी अन्य कारणों से हिंदुत्व समर्थक होने का संदेश दे रहे हैं। अनेक नेता कहते हैं कि हिंदुत्व पर केवल भाजपा का एकाधिकार नहीं है। इस तरह के वक्तव्य पहले नहीं मिलते थे। इसका विधानसभा चुनाव परिणामों पर हमने प्रभाव भी देखा है। हालांकि यह मानने का कोई कारण नहीं है कि ये पार्टियों और नेता हिंदुत्व के प्रति प्रतिबद्ध होंगे, आप उस एजेंडे को आगे बढ़ाएंगे। किंतु चुनाव में माहौल का असर होता है और उसमें यह भूमिका निभा सकता है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि भाजपा इसकी बुद्धिमत्तापूर्वक काट कर पाती है या नहीं। केवल यह कहने से कि ये चुनावी हिंदू है जनता तक वह संदेश नहीं जाएगा। देखना होगा भाजपा विचार व व्यवहार में इसके समानांतर सुनियोजित रणनीति के साथ आती है या नहीं।