लेखाधिकारी प्रधानमंत्री : *एकबार जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद से स्पष्टीकरण माँगा कि आप को हर माह मनोरंजन भत्ता मिलता है तो उसकी बची राशि राजकोष को लौटाया?” (प्रधानमन्त्री के विशेषाधिकारी एमओ मथाई की पुस्तक “माई डेज विद नेहरू”, पृष्ठ 338) नेहरू को शायद याद नहीं रहा कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति केवल आधा वेतन लेते थे। विशाल भवन के केवल तीन कमरों का ही उपयोग करते थे।*
तुलना में गौर करें एक मिलती-जुलती घटना पर। *वित मंत्री के रुप में मोरारजी देसाई ने जवाहरलाल नेहरु से पूछा था कि “आपने अपनी किताबों पर ब्रिटिश प्रकाशकों द्वारा प्रदत्त रायलटी की राशि लन्दन के बैंक में जमा क्यों करा दी?” मोरारजी देसाई ने प्रधान मंत्री को आगाह किया कि इससे विदेशी मुद्रा कानून का उल्लंघन होता है जिसके अंजाम में कारागार और जुर्माना हो सकता है। तिलमिलाये नेहरु लन्दन से दिल्ली अपना बैंक खाता ले आये।* कुछ समय बाद *इन्दिरा गाँधी ने अपने दोनों पुत्रों राजीव और संजय को शिक्षा हेतु इंग्लैण्ड भेजना चाहा तो वित मंत्री ने कहा कि इन दोनो किशोरों की बुनियादी अर्हता इतनी नहीं है कि वे उच्चतर शिक्षा हेतु विदेशी मुद्रा प्राप्त कर सकें।*
*खर्चीले प्रधानमन्त्री:* डॉ. राममनोहर लोहिया ने लोकसभा में सप्रमाण कहा था कि गरीब देश भारत का प्रधानमन्त्री विश्व का सबसे मंहगा राज्यकर्मी है। रोज 25 हजार रूपये उसपर व्यय होता है। (तब रूपये में आधा मन गेंहू मिलता था)। उसके कुत्ते पर तीस रूपये प्रतिदिन खर्च होता था, जबकि औसत भारतीय की आय तीन आने रोज थी। ब्रिटिश प्रधानमंत्री पर तब दैनिक खर्च पांच हजार रूपये था।
*चुनावी खर्चा:* प्रथम तीनों लोकसभा निर्वाचन में प्रधानमंत्री के अभियान के खर्चे का भुगतान सरकारी धन से होता था। डैकोटा हवाई जहाज, मोटर गाड़ियाँ, पण्डाल आदि। *तब न कोई आचार संहिता थी और न चुनाव आयोग का प्रतिबन्ध। अर्थात् नेहरू रथी और विपक्ष विरथी होता था।*
*जयहिंद की सेना:* सुभाष बोस की आजाद हिन्द फ़ौज के बर्खास्त सैनिकों को स्वाधीन भारत की सेना में तैनात करने से नेहरू ने इनकार किया था। गवर्नर जनरल माउंट बेटन की राय थी कि इससे सेना में विद्रोह होगा, क्योंकि ब्रिटिश सम्राट की स्वामिभक्ति की शपथ इन बागियों ने भंग कर दी थी। उन्हें स्वतंत्रता सेनानी की मान्यता तक भी नहीं दी गई।
*कौन था चौकीदार:* जिस तिरंगे को नेहरू ने लाल किले पर 16 अगस्त 1947 को फहराया था वह गायब है। राष्ट्रीय संग्रहालय, तोषखाना, नेहरू स्मारक भवन आदि कहीं भी नहीं मिला। *(यूएन आई: 14 अगस्त 2007)*
*सेनापति की नियुक्ति:* स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद नेहरू ने वरिष्ठ सेनाधिकारियों की बैठक बुलवाई ताकि नया सेनाध्यक्ष नामित किया जाय। *नेहरू ने सभा को बताया कि क्योंकि किसी भी भारतीय सैनिक अधिकारी को नेतृत्व करने का अनुभव नहीं है, वे केवल मातहत कार्यरत रहे हैं और आज्ञा पालन करते रहे। इसलिए ब्रिटिश कमांडर ही आजाद भारत का सेनाध्यक्ष बने।”* इसपर वरिष्ठ अधिकारी जनरल नाथू सिंह राठौड़ अनुमति लेकर बोले कि: *“चूँकि भारतीयों को राजनीतिक नेतृत्व का अनुभव नहीं है अतः प्रधानमन्त्री भी कोई अंग्रेज नियुक्त हो।”*
इसपर अचंभित नेहरू ने पूछा कि कोई भारतीय सेनापति लायक है? जनरल राठौड़ ने अपने से *वरिष्ठ जनरल के. एम. करियप्पा (कुर्ग, कर्नाटक) का नाम सुझाया। तभी करियप्पा प्रथम भारतीय सेनाध्यक्ष बन पाए*।
*(परम विशिष्ट सेवा मेडल से पुरस्कृत ले. जनरल निरंजन मलिक की आत्मकथा से साभार)