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इमामों को वेतन देने के 1993 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट स्वतः वापस ले

इमामों को वेतन देने के 1993 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट स्वतः वापस ले या  CIC के खिलाफ Contempt of court का केस चलाये !*

करोड़ों रुपया गैरकानूनी खर्च होने की भरपाई कौन करेगा ? इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का Forensic Audit होना चाहिए !

केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहुरकर ने अपने 26 नवंबर, 2022 के आदेश में बहुत निर्भीक होकर और बड़ी हिम्मत का परिचय देते हुए मस्जिदों के इमामों को पारिश्रमिक देने के सुप्रीम कोर्ट के 1993 के आदेश को संविधान का उल्लंघन कह दिया – CIC ने यह भी कहा कि –

 “अदालत के आदेश से संविधान के अनुच्छेद 27 का भी उल्लंघन हुआ जिसमें कहा है कि करदाताओं के पैसे का उपयोग किसी किसी विशेष धर्म के पक्ष में नहीं किया जायेगा – इससे देश में गलत मिसाल, अनावश्यक विवाद और सामाजिक कटुता बढ़ी –

CIC ने अपने आदेश की कॉपी कानून मंत्री को भेजने के लिए भी कहा जिससे वेतन मामले में अनुच्छेद 25 से 28 तक के प्रावधानों को सही ढंग से लागू किया जा सके –

13 मई, 1993 का फैसला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस RM Sahay और जस्टिस K Ramaswamy के पीठ ने दिया था जिसने इमामों को सैलरी देने का मार्ग खोल दिया -यानी 30 साल से असंवैधानिक तरीके से इमामों को सैलरी दी जा रही है जिसकी वजह से करोड़ों रुपया करदाताओं का खर्च हुआ – इसके लिए जिम्मेदार कौन है, कौन इसकी भरपाई करेगा ?

यही मुख्य कारण है जिसकी वजह से मैं लिखता आ रहा हूँ कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का भी Forensic Audit होना चाहिए खासतौर पर संविधान से जुड़े विषयों पर और संसद द्वारा पास किये कानूनों को रद्द करने के मसलों पर और जब तक ये ऑडिट न हो जाये फैसले अमल में न लाये जाएँ …

अब कायदे से सुप्रीम कोर्ट को तत्काल स्वतः संज्ञान लेकर अपने 1993 के फैसले को वापस लेना चाहिए जिसका मतलब आदेश पारित कर उसे ख़ारिज कर देना चाहिए क्योंकि उस फैसले को किसी चलते फिरते व्यक्ति ने नहीं, CIC ने असंवैधानिक करार दिया है….

यदि सुप्रीम कोर्ट CIC के आदेश से सहमत नहीं है तो उसके खिलाफ या तो Contempt of Court चलाने की हिम्मत करे या CIC को नोटिस देकर 1993 के केस की संविधान पीठ से सुनवाई कराए – इमामों की सैलरी का आदेश वैसे भी प्रथम दृष्टया गलत प्रतीत होता था – अगर वो आदेश सही था तो हज पर जाने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी भी बंद नहीं करनी चाहिए थी – 

           ऐसे ही 1993 का वक्फ एक्ट  का निर्णय भी एक कौम को खुश करने वाला फैसला था जिसकी वजह से पूरे देश में आतंक फैला हुआ है – वो एक्ट इतना भयंकर है कि 1500 वर्ष पुराना गांव भी वक्फ की संपत्ति बना दी गई –

           CIC के आदेश के बाद उन सभी सरकारों को इमामों की सैलरी तुरंत प्रभाव से बंद कर देनी चाहिए थी जो दे रही हैं  जबकि ऐसा नहीं हुआ और दिल्ली में तो बिल्कुल नहीं होगा क्योंकि यहाँ तो केजरीवाल 8 साल में वक्फ बोर्ड को ही 101 करोड़ रुपया दे चुका है – वैसे भी कल MCD के चुनाव हैं, अभी वो कुछ नहीं करेगा….

मगर सुप्रीम कोर्ट को इस विषय पर तुरंत संज्ञान लेना चाहिए…..

लेखक : *सुभाष चन्द्र*

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