स्वाति मालीवाल के बयान के पक्ष और विपक्ष दोनों में सक्रिय लोग मूलभूत बात को अनदेखा कर रहे हैं ।
ऐसे सभी विषयों में मूलभूत बात जो है ,उस पर जाने क्यों शिक्षित हिंदुओं का बहुत बड़ा हिस्सा ध्यान ही नहीं दे रहा है ।
बात यह है कि समाज की प्रतिनिधि घटनाएं और समाज का प्रतिनिधि मानस तथा समाज का प्रतिनिधि व्यवहार,किन किन चीजों को माना जाए? उसका अनुपात क्या है? उसके निकष क्या हैं?
इस विषय पर हर क्षेत्र में मनमानी चलती है।
पहले भारतवर्ष के कुछ इलाकों में कुछ समुदायों में स्त्रियां घूंघट करने लगी थी। जिस कारण से भी करती हों।
तो लोग सीधे बयान देने लगे कि भारत की स्त्रियां घूंघट करती हैं।
जबकि उस समय भी 80% हिंदुओं की स्त्रियां घूँघट नहीं करती थी ।
तो प्रश्न यह है कि 15 या 20% स्त्रियां सभी स्त्रियों की प्रतिनिधि किस आधार पर हो गईं,?
इसी प्रकार डॉक्टर अंबेडकर के साथियों के साथ या कुछ समुदायों के साथ महाराष्ट्र ,के किसी क्षेत्र में अनुचित व्यवहार हुआ तो वह हिंदू समाज का प्रतिनिधि व्यवहार किस आधार पर हो गया?
जबकि देश के अनेक हिस्सों में उससे भिन्न व्यवहार था।
परंतु ऐसी ही मनमानी से हमारे कानून इधर कुछ वर्षों से बन रहे हैं।
स्त्रियों के प्रति दुर्भावना वालों का प्रतिशत कितना है और केवल उनको देखने या दो शब्द कहने पर भी कठोर कार्रवाई के प्रावधान किस आधार पर बने हैं ?
इस पर कोई चर्चा नहीं होती।
इसलिएयह भी चर्चा नहीं होती कि स्त्रियां झूठा अभियोग लगा दे तो उसे दंड क्यों नहीं मिलना चाहिए?
इस पर न तो स्त्रियों ने कोई चर्चा की ना ही सत्य निष्ठ और धर्म निष्ठ पुरुषों ने।
इसी प्रकार हम पहले बिना किसी साक्षी के, क्यों सन्देह करें कि स्वाति मालीवाल जो कह रही हैं ,वह सच नहीं है।
अवश्य सच होगा ।
आखिर एक जिम्मेदार पद पर बैठी हुई स्त्री झूठ क्यों बोलेगी ?
परंतु क्या अधिकांश स्त्रियों के साथ ऐसा होता है ?
इस पर कोई कानून बनाने के पहले केवल स्त्रियों से जनमत सर्वेक्षण क्यों नहीं करवाया जाए?
भारत की स्त्रियां बताएं विशेषकर हिंदू परिवारों की स्त्रियां बताएं या सभी स्त्रियां बताएं कि उनके साथ परिवार में क्या ऐसा ही व्यवहार होता है ?
इस पर कोई नमूना सर्वेक्षण से काम नहीं चलेगा ।
यह बहुत गंभीर बात है इसलिए इसका व्यापक सर्वेक्षण आवश्यक है।
उसके पहले कानून बना लीजिए ,तो यह समाज की अवहेलना है तथा एक असामाजिक व्यवहार है और इस प्रकार यह एक अपराध है।
स्वती मालीवाल के पिता से उनके क्या संबंध थे,
यह बात बहुत गहरे अर्थों को खोलने वाली है।
वे उनके पिता ही थे या पिता कोई अन्य था ?
अगर कोई अन्य था तो भी वे पालन कर रहे थे तो इस प्रकार क्यों पाल रहे थे ?
क्या वे स्वभाव से ही नीच और पिशाच थे?
क्या उनकी मां डरती थी अपने पति से ?
जब तक भी जीवित रहीं या अगर अभी भी जीवित हों तो स्वयं उनसे अथवा उनके परिवेश से इसकी जांच करनी चाहिए कि क्या वे बहुत डरती थीं पति से?डर का कारण क्या था और स्वाति में तेजस्विता किसके असर से आई?
डीएनए से लेकर प्रेरणा के आधार तक अनेक प्रश्न उठेंगे।
लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि स्वाति मालीवाल के साथ जो हुआ, वह समस्त कन्याओं के साथ होने वाले व्यवहार का प्रतिनिधि व्यवहार कैसे हो गया ?
और स्वाति मालीवाल किस आधार से ,किशोरावस्था से यह सोचती थी कि सब महिलाओं के साथ अत्याचार होता है और मैं इसको ठीक करूंगी ?
वह अपने को पैगंबर मानती थी ?मसीहा मानती थीं?
उनकी आत्म छवि क्या थी और अभी क्या है ?
भारत की सब स्त्रियों की वे प्रतिनिधि हैं और जो उनके साथ हुआ वह प्रत्येक स्त्री कया कन्या के साथ हो रहा है, इस मानने का कोई निकष अवश्य होगा ।
वह पहले स्वाति मालीवाल को बताना चाहिए।
या तो अपने पैगंबर होने की घोषणा करनी चाहिए।
कहना चाहिए कि मैं ही हूं स्त्रियों की प्रतिनिधि पैगंबर। और मुझे अल्लाह ताला ने भेजा है या गॉड ने भेजा है सब स्त्रियों का उद्धार करने के लिए और उनको इस भयंकर यातना से बचाने के लिए।
परंतु यह बात केवल स्वती मालीवाल क्यों करें ?
भारत के अधिकांश नेता समाज के विषय में ऐसा ही व्यवहार करते हैं ।
उनके साथ जो हुआ वह करोड़ों करोड़ लोगों के साथ हो ही रहा है यह उनका आग्रह रहता है और मौका पाते ही वे वैसा कानून बनाते हैं।
मोदी जी ने तो यह मानकर कि लड़के और पुरुष स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार करते ही हैं ,अनेक कानून बना दिए और ऊंची कहीं जाने वाली जातियों के लोग निम्न कही जाने वाली जातियों के साथ आज भी बर्बर और घिनौना व्यवहार करते ही हैं, यह मानकर भी अनेक कानून बनाए गए ।
समाज में ऐसा कुछ दिखता नहीं ।
प्रायः जिन पर यह अभियोग लगाया जाता है, उन जातियों के लोग डरे हुए दिखते हैं।
लेकिन जो दिखता है वह झूठ है और जो नेता बोलता है वह सच है ,यह सिद्धांत तो मोदी जी भी मानते हैं और स्वाति जी भी मानती हैं और इस प्रकार समाज के विषय में सभी पार्टियां एक हैं।
इसलिए मूलभूत विचार यह है कि कोई भी कानून बनाने का आधार क्या है?
अभी जो राज्य का ढांचा है वह यह मानकर चलता है कि नागरिकों में कानून तोड़ने की या अनाचार करने की प्रवृत्ति होती ही है और राज्य कर्ताओं में समाज का सुधार करने की प्रवृत्ति होती है।
चर्च की नकल में यूरोप में फैली इस स्थापना का पोषण भारत के सभी राजनीतिक दल करते हैं ।अतः जो व्यापक प्रश्न है वह इसी से जुड़ा हुआ है कि क्या शासन में जाते ही व्यक्ति समाज का उद्धारकर्ता हो जाता है?
और क्या शासन से बाहर जो लोग हैं ,वे स्वभाव से ही अनाचारी, दुराचारी होते ही हैं?या कानून तोड़ने वाले होते हैं?
ऐसे कानून बनाए जा रहे हैं ।
कानून समाज के लिए बनाए जा रहे हैं या शासकों की झक और सनक तथा घमंड के पोषण के लिए ?
उनके इस दावे की पुष्टि के लिए कि वे मसीहा हैं ,उद्धारक हैं ,सुधारकहैं और समाज बिगड़ा हुआ है।
बिगड़े हुए समाज के प्रतिनिधि जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत चुने जाते हैं ,वह भला सुधरे हुए किस जादू से हो जाते हैं ?
यह प्रश्न आधारभूत प्रश्न है ।
स्वाति मालीवाल के साथ जो भी हुआ वह भारत की अधिकांश बेटियों के साथ होने वाला अनाचार किस प्रकार प्सिद्ध होता है ?
अगर सिद्ध होता है तो फिर परिवार व्यवस्था का वर्तमान स्वरूप किस प्रकार का है और उसे ऐसा क्यों होना चाहिए तथा कब तक रहना चाहिए ?
और नहीं रहना चाहिए तो नया स्वरूप क्या हो?
यह सब बातें विचार की हैं।
अगर भारत के परिवार इसी स्तर के हैं तो इनकी पुनर्रचना करनी होगी ।
उस पर सैद्धांतिक विमर्श होना चाहिए ।
उसके पहले कानून बनाने की उतावली नेताओं के नेता बनते ही सुधारक हो जाने का चमत्कारिक विश्वास जतलाती है