माफियाओं और राजनेताओं के बीच संबंध सत्तर के दशक में शुरू हुए थे , आज तक यथावत कायम हैं । आजादी मिलने के समय यह कल्पना तक असंभव थी कि ऐसा जमाना भी कभी आएगा कि राजनीति अपराधियों की शरण स्थली बन जाएगी । कैसा समय आ गया ; आज किसी भी राजनीतिक दल को अपराधियों से कोई खास परहेज नहीं हैं । कईं ऐसे दल हैं जिनके आका अपराधियों और हत्यारों के कुत्तों तक से शेक हैंड करने में गर्व महसूस करते हैं ।
राजनैतिक दल ऐसे माफियाओं को संसद और विधानसभाओं में चुनाव लड़वाते हैं , उनके आतंकी प्रभाव का इस्तेमाल वोटरों पर कर अन्य प्रत्याशियों को जितवाते हैं । खासकर यूपी और बिहार तो ऐसे बड़े प्रांत हैं , जहां माफिया डॉन का प्रयोग दशकों से किया जाता है । अब भद्रजनों का बंगाल भी गुंडों के राजनैतिक उपयोग की प्रयोगशाला बन चुका है । अपराधी और राजनीति का चोली दामन वाला साथ आज प्रांत प्रांत गुल खिला रहा है ।
यूपी बिहार और बंगाल के अलावा कुछ ऐसे प्रांत देश में हैं जहां माफियागिरी , डॉन गिरी के साथ साथ सड़क छाप गुंडागिरी राजनैतिक संरक्षण में पनपी है । बंगाल की तोलाबाजी , महाराष्ट्र की हफ़्ता वसूली और तमिलनाडु की झपटी चपटी गुंडई को सीधे सीधे राजनीति ने पाला है । बालासाहेब के जमाने से शिवसेना यूपी और बिहारवालों पर क्या क्या जुर्म ढाती रही , यह किसी से छिपा नहीं है ।
राज ठाकरे की तो आज भी हफ़्ता राजनीति धूमधाम से चलती है । तमिलनाडु में करुणानिधि और फिर उन्हीं की तर्ज पर जयललिता ने गुंडों का जबरदस्त प्रयोग कर चुनाव जीते । यूपी बिहार में ब्लॉक राजनीति से संसदीय राजनीति तक आज भी गुंडागिरी का कम बोलबाला नहीं है । ममता की तोले बाजी काम प्रसिद्ध नहीं है ।
अफसोस यह हमारे प्यारे देश भारतवर्ष में हो रहा है जिसे विश्वगुरु पुनः से बनाने का सपना हम सभी संजोए हुए हैं। दुनिया भारत की वाह वाही कर रही है और देश में राजनैतिक नफ़रत घोट घोटकर पिलाई जा रही है । देखिए अतीक और अशरफ़ सबसे बड़े माफिया थे , सैकड़ों को लूटा , हजारों की जमीनें कब्जाई । फिर भी सांसद बने विधायक बने । उनकी गिरफ्तारी पर विपक्षियों ने मातम मनाया । मानों उनके सारे अपराध माफ़ कर दिए गए हों । विदेशी मीडिया को अतीक राजनीतिज्ञ नजर आता है , अपराधी नहीं । ममता अतीक की मौत पर मोमबत्ती जुलूस निकलती है ।
निःसंदेह वे फांसी पर लटकेंगे , जिन्होंने उन्हें मारा । पर राजनीति का एक वर्ग है जो यहां भी हिंदू मुस्लिम कार्ड खेल रहा है । कैद में हत्या होना यूपी सरकार की नाकामयाबी है , कईं बली चढ़ेंगे । लेकिन जघन्य अपराधियों की हत्या पर राजनैतिक रूदन का माहौल बताता है कि वे उनके कितने काम आते थे । दुर्भाग्यवश अपराध और राजनीति का काकस हमारे समाज पर कलंक बनकर चिपक चुका है ।
– अवधेश प्रताप सिंह