*डॉ. वेदप्रताप वैदिक
दुबई में कल विश्व बंधुत्व-दिवस मनाया गया। इस मुस्लिम राष्ट्र में पिछले 10-15 साल से मुझे किसी न किसी समारोह में भाग लेने कई बार आना पड़ता है। सात देशों का यह महासंघ ‘संयुक्त अरब अमारात’ कहलाता है। यह सिर्फ सात देशों का महासंघ ही नहीं है, यह कम से कम 100 देशों का मिलन-स्थल है। जैसे हम न्यूयार्क स्थित संयुक्तराष्ट्र संघ के भवन में दर्जनों राष्ट्रों के लोगों से एक साथ मिलते हैं, बिल्कुल वैसे ही दुबई और अबू धाबी वगैरह में सारी दुनिया के विविध लोगों के दर्शन कर सकते हैं। जैसे भारत में आप दर्जनों धर्मों-संप्रदायों, जातियों, रंगों, भाषाओं, वेशभूषाओं और भोजनोंवाले लोगों को एक साथ रहते हुए देखते हैं, बिल्कुल वैसा ही नज्जारा यहां देखने को मिलता है याने दूसरे शब्दों में यह छोटा-मोटा भारत ही है। इस संयुक्त महासंघ की संपन्नता और भव्यता देखने लायक है। कल यहां जो विश्व-बंधुत्व दिवस मनाया गया, उसका संदेश क्या है? लगभग वही है, जो गांधीजी कहा करते थे याने सर्वधर्म समभाव। हर धार्मिक व्यक्ति अपने धर्म को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धर्म मानता है। यह धारणा न तो तर्क पर टिक पाती है और न ही तथ्य पर! सारे धर्म, मजहब और संप्रदाय अंधविश्वास की संतान हैं। पैदा होते से ही शिशुओं को उनकी घुट्टी पिला दी जाती है। यह घुट्टी उनका फायदा भी करती है और नुकसान भी! हम भारतीयों ने उसका नुकसान ज्यादा देखा है। देश के 1947 में इसी कारण दो टुकड़े हो गए। दूसरा टुकड़ा किस नरक से गुजर रहा है, इस तथ्य को हम देख रहे हैं। संयुक्त अरब अमारात इस अर्थ में छोटा-मोटा स्वर्ग है। यहां आपको ऐसे भव्य मंदिर, गुरूद्वारे और गिरजे मिल जाएंगे कि आप दांतों तले उंगली दबा लें। शेख नाह्यान से जब मैंने कुछ वर्षों पहले निवेदन किया कि हमारे गुजराती लोग अक्षरधाम जैसा मंदिर यहां बनाना चाहते हैं तो उन्होंने तुरंत लगभग 30 एकड़ जमीन दिलवा दी। विश्व बंधुत्व दिवस पर यहां कल कई समारोह हुए, जिनमें मुस्लिम मंत्रियों, विद्वानों के अलावा कई धर्मों के विशिष्ट व्यक्तियों ने भाग लिया। मुस्लिम वक्ताओं ने दो-टूक शब्दों में कहा कि यदि इस्लाम अपने आप का आधुनिकीकरण नहीं करेगा तो उसे बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा। संयुक्तराष्ट्र की पहल पर यूएई, सउदी अरब, बहरीन और मिस्र ने यह पहल की है। थाईलैंड और मलेशिया के प्रतिनिधियों ने साफ-साफ कहा कि कट्टरपंथी और पोंगापंथी लोग यदि इस्लामी व्यवहार पर खुली बहस नहीं करेंगे तो नई पीढ़ियां एकदम नास्तिक बन जाएंगी, जैसा कि कई पश्चिमी ईसाई देशों में हो रहा है। मुस्लिम राष्ट्रों में महिलाओं की दशा पर भी वक्ताओं ने खुलकर अपने विचार प्रकट किए। सभी वक्ताओं का आशय यह था कि इस्लामी की मूलभूत धारणाओं का निष्ठापूर्वक पालन तो ठीक है लेकिन डेढ़ हजार साल पुरानी परंपरा की लकीरों को पीटते रहना उचित नहीं है।
05.02.2023
दुबई में विदेश नीति का डंका
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
दुबई के इस चार दिन के प्रवास में मेरा कुछ समय तो समारोहों में बीत गया लेकिन शेष समय कुछ खास-खास लोगों से मिलने में बीता। अनेक भारतीयों, अफगानों, पाकिस्तानियों, ईरानियों, नेपालियों, रूसियों और कई अरब शेखों से खुलकर संवाद हुआ। इस संवाद से पहली बात तो मुझे यह पता चली कि दुबई के हमारे प्रवासी भारतीयों में भारत की विदेश नीति का बहुत सम्मान है। हम लोग नरेंद्र मोदी और विदेश नीति की कई बार दिल्ली में कटु आलोचनाएं भी सुनते हैं लेकिन यहां तो उसका असीम सम्मान है। संयुक्त अरब अमारात के टीवी चैनलों और अखबारों का स्वर भी इस राय से काफी मिलता-जुलता है। पड़ौसी देशों के प्रमुख लोगों ने, इधर मैं जो दक्षिण और मध्य एशिया के 16 देशों का जन-दक्षेस नामक नया संगठन खड़ा कर रहा हूँ, उसमें भी पूर्ण सहयोग का इरादा प्रकट किया है। मुझे यह जानकर और भी अच्छा लगा कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ प्रमुख लोगों ने भारत द्वारा काबुल को प्रेषित 50 हजार टन अनाज और दवाइयों की पहल की बहुत तारीफ की। उनका सुझाव यह भी था कि इस संकट के वक्त यदि भारत पाकिस्तान की मदद के लिए हाथ बढ़ा दे तो पाकिस्तान की जनता मोदी की मुरीद हो जाएगी। यदि शाहबाज़ शरीफ और फौज मोदी की दरियादिली को नकार दें तो उनकी काफी किरकिरी हो सकती है। इसी प्रकार कई प्रमुख अफगान नेताओं ने मुझसे सुदीर्घ वार्ताओं में कहा कि वे भारत सरकार द्वारा दी गई मदद से तो अभिभूत हैं ही, लेकिन वे ऐसा मानते हैं कि अफगानिस्तान की अस्थिरता को यदि कोई मुल्क खत्म कर सकता है तो सिर्फ भारत ही कर सकता है। अमेरिका और रूस ने अफगानिस्तान में फौजें भेजकर देख लिया, करोड़ों रूबल और डाॅलर उन्होंने वहां बहा दिए और बड़े बेआबरू होकर वे वहां से निकले। उनका मानना है कि अकेला भारत अगर पहल करे और अमेरिका के जो बाइडन या कमला हैरिस और ब्रिटेन के ऋषि सुनाक को अपने साथ जोड़ ले तो अफगानिस्तान में शांति और व्यवस्था कायम हो सकती है। इन तीनों राष्ट्रों की संयुक्त पहल को मानने से न तो तालिबान इन्कार कर सकते हैं, न ही पूर्व अफगान राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री और न ही पाकिस्तान! यूक्रेन के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री डाॅ. जयशंकर ने जैसा संतुलित रवैया अपनाया है, उसने विश्व राजनीति में भारत की छवि को चमका दिया है। इसी चमक का इस्तेमाल वह अपने पड़ौस के अंधेरे को दूर करने में क्यों न करे?
07.02.2023
*तुर्किए-भूकंप पर भारत की पहल*
*डॉ. वेदप्रताप वैदिक*
तुर्किए और सीरिया में आए भूकंप ने सारी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। ऐसे भूकंपों ने ईरान, अफगानिस्तान और नेपाल जैसे पड़ौसी देशों में भी कई बार हड़कंप मचाया है लेकिन वर्तमान भूकंप में लगभग 10 हजार लोग मारे गए हैं और लाखों लोग घायल हो गए हैं। बेघरबार हुए लोगों की संख्या तो और भी बड़ी है। आशा करें कि अभी कोई और झटका न आ जाए। इस वक्त दुनिया के कई देश तुर्किए की मदद के लिए आगे आ रहे हैं लेकिन भारत ने इस मामले में जितनी फुर्ती और दरियादिली दिखाई है, उसने उसे दुनिया के महान राष्ट्रों की पंक्ति में खड़ा कर दिया है। तुर्किए और भारत के रिश्ते पिछले कुछ वर्षों में बहुत अच्छे नहीं रहे। तुर्किए ने भारत सरकार के उन कदमों का कड़ा विरोध किया था, जो उसने कश्मीर के बारे में उठाए थे। उसने कश्मीर के सवाल पर अन्य मुस्लिम राष्ट्रों को भड़काने का भी प्रयत्न किया था जबकि सउदी अरब जैसे राष्ट्रों ने इस मुद्दे को भारत का आंतरिक मामला बताया था लेकिन भारत सरकार ने इस वक्त तुर्किए के मजहबी जूनून को दरकिनार करके इंसानियत के दरवाजे खोल दिए हैं। चार-चार चार्टर जहाजों से उसने लगभग 100 डाॅक्टरों और नर्सों को अंकारा और इस्तांबूल भेज दिया है। उसने ऐसे बचावकर्मियों को भी बड़ी संख्या में वहां भेजा है, जो मलवे में दबे लोगों की जान बचाने की कोशिश करेंगे। ऐसी ही मदद हमारी सरकारों ने 2011 में जापान और 2015 में नेपाल में जब भूकंप आया था, तब तुरंत मदद भिजवाई थी। तुर्किए के राष्ट्रपति रिसेप तय्यब एर्दोगन ने दिल्ली में हुए दंगों पर एकतरफा भर्त्सना करने का दुस्साहस दिखाया था लेकिन हमारी सरकार ने तुर्किए की मदद करते समय हिंदू-मुसलमान का कोई भेद नहीं किया। इससे मोदी सरकार की छवि भारत के अल्पसंख्यकों में भी सुधरेगी। भारत और तुर्किए के प्रतिनिधियों की संयुक्तराष्ट्र संघ में टक्कर होती रही है लेकिन पिछले साल सितंबर में समरकंद में हुए शांघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन में जब मोदी और एर्दोगन की भेंट हुई तो आपसी संबंधों में काफी नरमी पैदा हो गई। मैं इसीलिए बराबर तर्क देता रहता हूं कि यदि इस वक्त हम पाकिस्तान की संकटग्रस्त जनता की मदद के लिए हाथ बढ़ा दें तो दोनों देशों के संबंधों में अपूर्व सुधार हो सकता है। दिल्ली स्थित तुर्किए के राजदूत फिरत सुनेल ने भारतीय मदद के बारे में क्या खूब कहा है कि ‘‘दोस्त वही होता है, जो आड़े वक्त काम आता है।’’ तुर्किए को अगर जरूरत हो तो भारत अपनी मदद बढ़ा सकता है। अन्य संपन्न देशों को भी उसकी मदद के लिए वह प्रेरित कर सकता है। उसकी यह पहल दुनिया के सभी मुस्लिम राष्ट्रों में भारत के प्रति आदर की भावना को जगाएगी। तुर्किए में आए इस भयंकर भूकंप से भारत को भी सबक लेना होगा, क्योंकि भारत में छोटे-मोटे भूकंप आते ही रहते हैं।
08.02.2023
*पाकिस्तान में कैसा इस्लाम?*
*डॉ. वेदप्रताप वैदिक*
पिछले हफ्ते दुबई में मुझे कई अफगान और पाकिस्तानी मिले। सब के सब पाकिस्तान के हालात पर बहुत परेशान दिखे। आर्थिक दृष्टि से तो पाकिस्तान का संकट सारी दुनिया को पता चल ही गया है लेकिन अभी-अभी वहां के मानव अधिकार आयोग की जो ताजा रपट आई है, उसे देखने से पता चलता है कि पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों- हिंदुओं, ईसाइयों, सिखों, शियाओं और अहमदिया लोगों की हालत कितनी बुरी है। उनके मंदिरों, गिरज़ों, गुरूद्वारों और मस्जिदों के जलाए जाने की खबरें तो टीवी चैनलों और अखबारों में छपती ही रहती हैं। वे छिपाए भी नहीं छिपती हैं। लेकिन वहां गैर-मुस्लिमों को मार-मारकर जो मुसलमान बनाया जाता है, उसके बारे में जो ताजा तथ्य और आंकड़े सामने आए हैं, उनसे पाकिस्तान ही नहीं, इस्लाम की भी छवि मलिन होती है। पाकिस्तानी मानव अधिकार आयोग ने दावा किया है कि अकेले सिंध प्रांत में एक साल में 60 जबरन धर्मांतरण के किस्से सामने आए हैं। ये तो वे किस्से हैं, जो सामने आए हैं। जो सामने नहीं आते हैं, वो किस्से कई गुना ज्यादा हैं। पूरे पाकिस्तान में जबरन मुसलमान बनाए जानेवालों की संख्या हर साल सैकड़ों में होती है। इनमें ज्यादातर 14 से 20 साल की हिंदू लड़कियां होती हैं, जिनका या तो अपहरण कर लिया जाता है या जिनसे बलात्कार किया जाता है। इनसे शादी करनेवाले मुसलमानों की उम्र इनसे प्रायः दुगुनी-तिगुनी होती है। इसे क्या हम धर्म-परिवर्तन कहेंगे? यदि कोई स्वेच्छा से समझ-बूझकर अपना धर्म बदलना चाहे तो उसे ही धर्म-परिवर्तन कहा जा सकता है लेकिन यह तो अधार्मिक बलात्कार है। जो लोग यह अधार्मिक बलात्कार करते हैं, क्या उन्हें इस्लाम के सिद्धांतों से कुछ लेना-देना है? बिल्कुल नहीं। वे इस्लाम के नहीं, अपनी वासना के गुलाम हैं। ऐसे लोगों को दंडित करना किसी भी इस्लामी राज्य का पुनीत कर्तव्य है लेकिन पाकिस्तान में इसका उल्टा होता है। वासना या अंधभक्ति से प्रेरित ऐसे लोगों को दंडित करने की बजाय पाकिस्तान का कानून ‘इस्लामद्रोहियों’ को मौत की सजा देने को तैयार रहता है। इस्लामद्रोहियों को धर्मद्रोही कहा जाता है और उन्हें फांसी पर लटका दिया जाता है। अदालत और सरकारें तो उनके खिलाफ बाद में कार्रवाई करती हैं। उनके पहले ही इस्लामप्रेमी लोग उन्हें मौत के घाट उतार देते हैं। उन्होंने इस्लाम जैसे क्रांतिकारी मजहब को, जिसने अरबों के अंधकारमय जीवन में रोशनी लाई थी, अब शुद्ध पोंगापंथ का रूप दे दिया है। इस्लाम के नाम पर क्या-क्या नहीं चल पड़ा है? पाकिस्तान यदि इस्लामी राष्ट्र है, जैसा कि वह दावा करता है तो वहां हर बड़े घर में शराबखाने क्यों खुले हुए हैं? बेगुनाह लोगों की हत्या क्यों की जाती है? पाकिस्तान दुनिया का सबसे भयंकर आतंकवादी देश क्यों बन गया है? क्या वजह है कि अब दुनिया के कई मालदार इस्लामी राष्ट्र भी पाकिस्तान की डूबती हुई आर्थिक नय्या को उबारने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं?
09.02.2023