प्रधानमंत्री द्वारा हैट्रिक की संभावना का उपहास उड़ाने वाले बदले भारत को नहीं समझ रहे
2024 का माहौल मोदी और भाजपा के लिए अनुकूल है
अवधेश कुमार
विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने केंद्रीय कार्यालय से संबोधन में जैसे ही लोकसभा चुनावों की हैट्रिक को सुनिश्चित बताया विरोधियों ने उत्तर दक्षिण खाई का शोर मचाना शुरू कर दिया है। चुनाव अभियान के बीच जिस खतरनाक तरीके से दक्षिण की सोच, राजनीति और व्यवहार को उत्तर भारत से अलग बताने की कोशि शुरु हुई वह अंग्रेजों की विभाजनकारी नीति की याद दिलाने वाला है। प्रधानमंत्री ने ट्वीट में उत्तर देते हुए लिखा है कि वह अपने अहंकार, झूठ, निराशावाद और अज्ञानत की खुशफहमी में रह सकते हैं लेकिन लोगों को विपक्षियों के विभाजनकारी एजेंडा से सावधान रहना चाहिए क्योंकि 70 साल की पुरानी आदत इतनी आसानी से नहीं जा सकती। एक्स पर पोस्ट का शीर्षक था, मेल्टडाउन- ए -आज़म। उसमें राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की जीत को हिंदी भाषी राज्यों तक सीमित, क्षेत्रीय विभाजन भड़काने और मतदाताओं का अपमान करने के लिए बहाने और पारिस्थितिक तंत्र के प्रयासों का आरोप लगाया गया है। प्रधानमंत्री ने लिखा कि लोगों की बुद्धिमत्ता ऐसी है कि उन्हें आने वाले कई और मेल्टडाउन यानी तगड़े झटकों के लिए तैयार रहना होगा। प्रधानमंत्री ने हमलावर अंदाज को अभिव्यक्त करने के लिए इसमें इमोजी भी पोस्ट किया है जो वह नहीं करते। इससे पता चलता है कि इस तरह की उत्तेजक अपमानजनक और जनादेश का उपहास उड़ाने वाले पोस्ट को प्रधानमंत्री ने किस तरह लिया है। हालांकि इस तरह के पोस्ट अस्वाभाविक नहीं है। कैसे?
• यह उसी तरह की अभिव्यक्ति है जो लंबे समय से खासकर कांग्रेस, उनके रणनीतिकार तथा देश विदेश में उभर चुके मोदी, भाजपा और संघ विरोधी समूह इनके लिए भाषा प्रयोग करते रहे हैं।
• राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री को पनौती तथा उनके साथ गृह मंत्री को पॉकेटमार गैंग का सदस्य बनाना बताना इसका दुर्भाग्यपूर्ण ज्वलंत उदाहरण है।
•प्रधानमंत्री के विश्व कप में भारत की पराजय के बाद खिलाड़ियों से मिलने पर कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने ड्रामा मास्टर तक लिख दिया।
•स्वयं राहुल गांधी ने सन 2018 से प्रधानमंत्री के लिए चौकीदार चोर है का नारा लगाना शुरू किया था। तब भी भावना यही थी कि नरेंद्र मोदी और लोकप्रिय हो चुके हैं और जनता उन्हें आगामी चुनावों में खारिज कर देगी।
वर्तमान स्थिति डरावनी है क्योंकि इसमें दक्षिण को शेष भारत से अलग बताया जा रहा है। भाजपा का विरोध करने के लिए इस सीमा तक जाने का अर्थ ही है कि विरोधी हताशा में किस मानसिक अवस्था में जा चुके हैं। वे आगे ऐसा करेंगे। सामान्य चुनावी विश्लेषण में तत्काल ऐसा लगता है कि भाजपा दक्षिण में साफ हो चुकी है और केवल उत्तर, पूर्व और पश्चिम की बदौलत लोकसभा चुनाव में बहुमत प्राप्त नहीं कर सकती। निस्संदेह, भाजपा के लिए दक्षिण चुनौती बना हुआ है। तमिलनाडु , केरल और आंध्रप्रदेश में वह अभी तक बड़ी सफलता की संभावना नहीं जगा पाई है। दूसरी ओर कर्नाटक विधानसभा चुनाव हार चुकी है और तेलंगाना विधानसभा में भी उसका प्रदर्शन कांग्रेस और बीआरएस के मुकाबले ज्यादा कमजोर रहा है। पर इसके दूसरे पहलू भी हैं। पहले विधानसभा चुनाव वाले पांच राज्यों को देखें।
•जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए उनकी 83 लोकसभा सीटों में भाजपा के पास 65 थी जिनमें चार तेलंगाना की थी। उसके 303 लोकसभा सीटों में 25 सिर्फ कर्नाटक की थी।
• भाजपा ने 2019 लोकसभा चुनाव में राजस्थान के सभी 25, मध्यप्रदेश के 29 में से 27 और छत्तीसगढ़ के 10 में से 9 सिटें जीती थी। वर्तमान परिणाम के अनुसार भाजपा विरोधी और कांग्रेस समर्थक निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि राजस्थान में उसकी सिटें 14, छत्तीसगढ़ में आठ तथा मध्यप्रदेश में 25 हो जाएंगी, जबकि तेलंगाना में सीट नहीं मिलेगी। यानी भाजपा को कुल 46 जबकि कांग्रेस को राजस्थान में 11, छत्तीसगढ़ में तीन, तथा मध्यप्रदेश में चार और तेलंगाना 9 यानी कुल 22 सीटें मिलेंगी ,जबकि पिछली बार उसे केवल 6 मिले थे।
• लोकसभा चुनाव अगर विधानसभा चुनाव के ही पैटर्न पर हुए तो यह आंकड़ा सही हो सकता है।
• जरा सोचिए, 2818 में तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद अगर बीजेपी लोकसभा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकती है तो जीतने के बाद उसकी सिटें कैसे घटेंगी ?
•नरेंद्र मोदी के नाम पर विधानसभा में बहुमत देने वाले मतदाता लोकसभा चुनाव में उन्हें हरा देंगे ऐसी कल्पना वही कर सकते हैं जिन्हें मतदाताओं के सामूहिक मनोविज्ञान में आए बदलाव का अभी तक अहसास नहीं हुआ है।
• तेलंगाना में भी पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को एक सीट एवं केवल 6% मत मिले थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा वहां 19% मत एवं चार लोकसभा सिटें प्राप्त की। इस बार विधानसभा में उसे 13.9% मत मिले हैं। लोकसभा चुनाव में वह पिछले आंकड़े तक नहीं पहुंचेगी ऐसी कल्पना भी बेमानी है। भाजपा ने ठाकुर राजा सिंह के मामले से निपटने में ज्यादा परिपक्वता दिखाई होती तो उसकी स्थिति अलग होती।
• जिस तरह मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण कांग्रेस के पक्ष में हुआ है उसकी प्रतिक्रिया लोकसभा चुनाव में होगी और भाजपा का प्रदर्शन सामान्य विश्लेषक भी अनुमान लगा सकता है कि बेहतर होगा।
• कर्नाटक में पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 51.38 प्रतिशत मत तथा 25 सिटे मिली थी। कांग्रेस के पास केवल एक सीट थी। 2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा को केवल 36.02% मत मिले थे जबकि कांग्रेस को 38% और जद- एस को 18.3%। कांग्रेस और जद सेकुलर ने क्रमशः 78 और 39 सिट जीती थी जबकि भाजपा 104। 2023 विधानसभा चुनाव में भाजपा की सिटें अवश्य घटी लेकिन मत समान रहा। हां कांग्रेस के मतों में अवश्य 5% की बढ़ोतरी हुई।
•यहां भी मुस्लिम मत जद- एस से खिसक कर कांग्रेस में गए। इससे लोकसभा चुनाव का माहौल बिल्कुल बदला होगा। कर्नाटक में जद- एस भाजपा के साथ आ चुका है।
• वर्तमान विधानसभा चुनावों ने बता दिया है कि प्रधानमंत्र मोदी की लोकप्रियता अभी भी चरम पर है। इसलिए अपनी सुविधा के लिए कांग्रेस और विपक्ष के समर्थन में अनुकूल आंकड़े निकालने वाले तथा भाजपा के विरोध में हास्यास्पद और खतरनाक तरीके से उत्तर दक्षिण विभाजन पैदा करने वाले की तरह परिणाम आने का कोई कारण नहीं लगता।
वस्तुत: विरोधी कुछ बातों का ध्यान नहीं रखते।
•एक, लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा और संगठन परिवार द्वारा काम करने के कारण संपूर्ण भारत में हिंदुत्व और उससे प्रेरित राष्ट्रबोध तथा इसके अनुसार उठाए गए मुद्दे, किए गए कार्यों के कारण एक ठोस समर्थक आधार खड़ा हो चुका है। • दो,विरोधियों द्वारा हिंदुत्व व सनातन का विरोध करने, उपहास उड़ाने तथा समय-समय पर भाजपा, नरेंद्र मोदी व राज्य भाजपा सरकारों द्वारा किए गए कार्यों को सांप्रदायिक करार देने की प्रतिक्रिया में अतिरिक्त समर्थन तात्कालिक रूप से उभरते हैं।
• तीन,यह स्थिति इस समय ज्यादा उबाल पर है क्योंकि तमिलनाडु से सनातन विरोधी वक्तव्य और बिहार एवं उत्तर प्रदेश से हिंदू धर्म पुस्तकों एवं देवताओं के विरुद्ध सयानों के कारण बहुत बड़े वर्ग में विरोधी प्रतिक्रिया है।
• कांग्रेस द्वारा जातीय जनगणना, पुरानी पेंशन योजना लागू करने तथा महिलाओं सहित अलग-अलग समूहों के खाते में मोटी राशि देने के वायदे भी इसके समकक्ष कमजोर पड़ गए हैं।
चूंकि विरोधी इसे अभी भी स्वीकारने को तैयार नहीं है इसलिए वे अपने एजेंडे से बाहर नहीं आएंगे। स्वाभाविक ही यह एजेंडा मतदाताओं द्वारा उन सभी जगह ठुकराया जाएगा जहां भाजपा का जनाधार होगी। भाजपा की सरकारों के अंदर समर्थकों और कार्यकर्ताओं की अनदेखी की भयावहता के कारण उसेअंदरूनी असंतोष और सत्ता विरोधी रुझान का सामना करना पड़ता है। जनता में नरेंद्र मोदी सरकार या प्रदेश भाजपा सरकारों के विरुद्ध सामूहिक आक्रोश नहीं है। कर्नाटक और हिमाचल के परिणाम भी बताते हैं कि उसका वोट आधार सुरक्षित है। कर्नाटक और हिमाचल में अगर पार्टी विद्रोहियों को संभालती या फिर आंतरिक सत्ता विरोधी रुझान को कार्यकर्ताओं व समर्थकों के बीच जाकर दूर करने की सही कोशिश करती तो परिणाम वह नहीं आता। मध्यप्रदेश में वह कोशिश सफल रही। नरेंद्र मोदी के नाम पर पार्टी और संगठन परिवार के अंदर नाराजगी और असंतोष नहीं है। इसलिए विधानसभा चुनाव में भी संगठन के विरुद्ध काम करने वाले भी साथ आएंगे। फिर लोकसभा चुनाव में विपक्ष की ओर भी मतदाता देखेंगे। राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की दशा क्या है?
• भाजपा के विरुद्ध आईएनडीआईए द्वारा संगठित उम्मीदवार देने की योजना ध्वस्त होती दिख रही है। आईएनडीआईए की पूर्व तीन बैठकों में शामिल दलों के अंदर ही कांग्रेस के विरुद्ध नाराजगी है। समाजवादी पार्टी, जनता दल-यू, तृणमूल कांग्रेस इसे प्रकट कर चुकी है।
•कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा 6 नवंबर को बैठक बुलाने की घोषणा का असफल होना प्रमाण है कि आईएनडीआईए के अंदर क्या चल रहा है। जब विपक्ष दिल से एकजुट नहीं होगा तो मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा या राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को पराजित कर पाने जैसी चुनौती देना संभव नहीं हो सकता। मतदाता राष्ट्र का नेतृत्व देने के पहले सोचेंगे कि सामने व्यक्ति और संगठन कौन है? वैसे भी आम भारतीय दक्षिण उत्तर की विभाजनकारी सोच तथा प्रधानमंत्री के लिए अपमनकारी शब्द प्रयोग को स्वीकार नहीं कर सकता।