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कथित बुद्धिजीवियों, लिबिर-लिबिर गैंग और कौमियों का प्रिय शब्द है- ‘रैंट’। इसका ढीला-ढाला अनुवाद तो बकवास या फिर प्रलाप होगा, लेकिन ‘लेली’ (लेफ्ट-लिबिर)गैंग के मुताबिक उनके अलावा दुनिया में जिस किसी ने दूसरे तरह की कोई भी बात कही तो वह रैंट है, उसे डिस्क्रेडिट करने का जरिया है। जैसे, अब्राहमिक मजहब बताते हैं कि उनके पैगंबर और उनकी किताबों में दुनिया का सारा सत्य समाहित है, उसके अलावा कुछ भी कहना ‘कुफ्र’ है, कहना क्या सोचना भी और दुनिया को एकरंगा कर देना उनकी पवित्र ड्यूटी है।
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‘द केरल स्टोरी’ रैंट है, ‘द कश्मीर फाइल्स’ रैंट है, सीताराम गोयल के सवाल रैंट हैं, राम जन्मभूमि मामले में के के मोहम्मद की गवाही रैंट है, लेकिन डी एन झा की ‘हिंदू भी गोमांस खाते थे’ वाली बात आप्तवचन हैं, अल्लाह का हुक्म है और जीजस की मंशा है। यही बात रोमिला थापर के ‘युधिष्ठिर ने अशोक से सलाह ली’ वाली बात का है और यही बात इरफान हबीब के तमाम झूठ का है।
तो, चिंता मत कीजिए कि कौन आपको क्या कह रहा है, वे झूठे-मक्कार नंगे हो चुके हैं, हरेक सच का उघड़ना उनकी पहले से नंगी आत्मा तक को और कष्ट दे रहा है, आप बस उस पर तथ्य का थोड़ा सा मिर्च और छिड़क दीजिए।
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अगर लव-जिहाद एक मिथक है, जो हमारी-आपकी आंखों के सामने घट रहा है, चहुंओर हो रहा है, तो फिर ये पूरी दुनिया ही एक बड़ा सपना है और हमलोग सपने के अंदर हैं। अगर लव-जिहाद गलत है, तो 24 अप्रैल 2010 को केरल के मुख्यमंत्री अच्युतानंदन का दिल्ली में किया प्रेस-कांफ्रेंस क्या है, 2010 में ही विधानसभा में रखी गई वह रिपोर्ट क्या है जिसमें केरल सरकार ने माना है कि 2300 से 2800 हिंदू-ईसाई लड़कियां सालाना धर्मांतरित हो रही हैं। धर्मांतरण पर कोई भी आरटीआई सही से किसी सवाल का जवाब क्यों नहीं ला पाती है….। और हां, सूरज हमें रोशनी दे रहा है, यह बात जानने के लिए किसी सबूत की जरूरत नहीं होती, तो जेएनयू हो या जामिया, धर्मांतरण या धर्मांतरण की कोशिश अब्राहमिक मजहब वाले करते ही हैं, यह कोई रहस्य की बात नहीं है।
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‘रैंट’ कह देने के पीछे एक और कारण है। वह है, आपको आखिरकार खारिज कर देने का। पहले वो आपका मजाक बनाएंगे, फिर डिस्क्रेडिट करेंगे और अंत में खारिज कर देंगे, ताकि वे अपने इरफान, रोमिला, डीएन झा जैसे झूठों, मक्कारों और अर्द्ध-शिक्षितों को ऐसे प्रतिष्ठित करें कि एक के बाद एक रवीश, साक्षी जोशी, विनोद कापड़ी जैसे अनपढ़ इस देश में इंटेलेक्चुअल के तौर पर प्रतिष्ठित हो जाएं।
‘द केरल स्टोरी’ ने 32 हजार महिलाओं की कहानी कहने का दावा किया, लेकिन बात फिर वहीं अटक गई. सबूत कहां हैं? इसलिए, उन्होंन टीजर से वह लाइन हटा दी, लेकिन इसे पेश किस तरह किया गया, जैसे फिल्म बनानेवालों ने बड़ी मक्कारी की थी या झूठ बोला था। भइए, अगर साल में रोजना दो-तीन के हिसाब से भी देखो तो 10 साल में 32 हजार लड़कियों का गायब होना कौन सी बात है।
यहां एक जानकारी दे दूं। दिल्ली का एक इलाका है। राजधानी दिल्ली का। वहां अगर आप किसी लड़की के गायब होने की रिपोर्ट लिखाने जाएंगे, तो पुलिस वाला दांत कुरेदते हुए बताएगा, ‘ये यहां रोज का हवाला है जी..। दो दिन वेट कर लो। शादी की खबर आ रही होगी।’ उस एक इलाके में रोजाना ऐसे दर्जन केस होते हैं। होगा आपको यकीन….? लेकिन, ये सच है..।
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किस-किस बात पर यकीन नहीं करेंगे आप? क्या आइसिस ने औरतों की मंडी नहीं लगाई, क्या सेक्स-स्लेव की बात आसमानी है, क्या अफगानिस्तान से लेकर सीरिया तक, कई इस्लामिक देशों में संगसार नहीं किया जाता, क्या औरतों को उनके सारे अधिकारों से वंचित रख एक काली कनात में जीने को अभिशप्त नहीं किया जाता, इस्लामिक देशों में…।
आप मुंह फेरते रहिए, सच आपसे मुंह नहीं फेरेगा। यह उनका काम है। यही उनका दीन है। यही उनकी सीख है। अब्राहमिक मजहब जब तक पूरी दुनिया को एकरंगा नहीं कर लेगा, वह रुक नहीं सकता। यह उसके पैगंबर, अल्लाह, रसूल, मैसेंजर जो भी कहिए उसका हुक्म है। हुक्म की तामील तो करनी होगी।
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उसी तरह सनातन या हिंदू धर्म की अपनी विशेषता है। शताब्दियों से संहार सहते-सहते हम दुनिया के एक कोने में सिमट गए, पर हम बदलेंगे नहीं। कुछ लोग कहते हैं कि कट्टरता ही एकमात्र बचाव है, लेकिन जैसे ही हम कट्टर होंगे, तो हम हिंदू कहां रहेंगे, सनातनी कैसे रहेंगे…अभी भी आप देखिएगा कि तमाम इफ-बट, अगर-मगर लेकर इस स्टेटस पर भी हिंदू ही आएंगे। क्योंकि, यह उनका स्वभाव है। हमारी आत्माएं उस स्तर तक उन्मुक्त हैं कि हमें बांधना मंजूर नहीं होगा, अगर बांधना पड़ा तो वह केवल हिंदुओं का नहीं, पूरी दुनिया, पूरी मानवता का दुखद पल होगा।
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हिंदुओं के लिए सोचने का विषय है- अलंघ्य विषयों को नॉर्मलाइज बनाने का, जैसे गोमांस भक्षण को लगातार नॉर्मल बनाने की साजिश हो रही है, दूसरे पर्व-त्योहारों को डेमोनाइज करने का- होली-दीवाली सबको अदालती तरीके या पर्यावरण के वीरों के माध्यम से बंद करवाने की साजिश चल रही है।
कल ही किसी ने कमेंट किया कि उसकी मुस्लिम दोस्त ने कुछ दिया और कहा कि तुम्हारी मां तो नहीं खाएंगी, फिर भी…। इस पर हिंदू को दुख हुआ। मैं कहता हूं, दुख होने का कारण नहीं है।
क्या वह दोस्त बीफ यानी गोमांस खाना बंद कर सकता या सकती है, क्या वह दिन में पांच बार यह नारा लगाना बंद कर सकता या सकती है कि एकमात्र उसी का रास्ता ठीक है, बाकी सब काफिर हैं। अगर वह एक कदम नहीं चल सकता, तो आपका अपराधबोध भी तारीफ के लायक नहीं। ठीक है, आप हिंदू हैं, आपको भगवान ने इतने खुले मस्तिष्क का बनाया है कि आप किसी भी बहाव के साथ बह जाते हैं, लेकिन पैर तो आपके जमीन पर टिके रहने चाहिए न…।