श्रीमती शारदा नरेन्द्र मेहता (एम.ए. संस्कृत विशारद)
माँग में सिन्दूर लगाने की प्रथा अति प्राचीन है । सौभाग्यवती महिलाओं के सोलह श्रृृंगार में से एक श्रृंगार माथे पर माँंग में सिन्दूर लगाना भी है। हमारे समाज में वैदिक रीति की विवाह पद्धति में मंडप में कन्यादान विधि संपन्न्ा होने के बाद वर, वधू की माँग में सिन्दूर लगाता है तथा उसे मंगल सूत्र पहनाता है। इसके पश्चात कन्या अखण्ड सौभाग्यवती कहलाती है ।
सिन्दूर भारतीय समाज में पूजन-सामग्री का एक प्रमुख घटक है । देवी पूजन में माँ पार्वती, माँ दुर्गा के नौ रूप, माँ सीता तथा अन्य शक्ति स्वरूपा माताओं के पूजन में सिन्दूर का अपना एक विशेष महत्व है । देवी पूजन में सिन्दूर सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। आज भी नवविवाहिता अपनी मांग के अंदर सिंदूर बड़ी कुशलता पूर्वक लगाती है । सिन्दूर लगाने की प्रथा दक्षिण भारत की अपेक्षा उत्तर भारत में अधिक प्रचलित है । सिन्दूर माँ लक्ष्मी का भी प्रतीक है । इसीलिये गृह-लक्ष्मी इसका प्रयोग सहर्ष करती है ।
कतिपय वृद्ध माताओं का कथन हैं कि यदि महिलाएँ बालों के बीचों बीच माँग में सिन्दूर सजाती है तो यह उनके पतियों के लिए दीर्ध एवं स्वस्थ आयु का प्रतीक होता है । यदि सिन्दूर मध्य में न लगाकर दाये-बायें तिरछी ओर लगाया जाता है तो ऐसी मान्यता है कि उन महिलाओं के पति का जीवन बाधाओं से भरा रहता है । नौकरी, व्यवसाय आदि में भी स्थिरता का अभाव दिखलाई देता है ।
सिन्दूर महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है । विवाह के पश्चात कन्या की जीवन-शैली, पारिवारिक वातावरण तथा उसकी दिनचर्या आदि सब कुछ बदल जाता है । ऐसे में पारिवारिक परिवर्तन भी तनाव का कारण बन जाता है । दोनो परिवारों के सदस्यों के स्नेह सिंचित व्यवहार से वातावरण को मधुर बनाया जा सकता है । सिन्दूर का प्रयोग तनाव को दूर करनेे में औषधि का काम करता है । सिन्दूर में पारा नामक तत्व पाया जाता है । पारा आयुर्वेद में एक औषधि के रूप में प्रसिद्ध है। सिन्दूर लगाने वाले स्थान पर एक महत्वपूर्ण ग्रंथि स्थित है जिसे ब्रह्मरन्ध्र गं्रथि कहा जाता है । यह एक संवेदनशील ग्रंथि होती है । सिन्दूर में पारा होता है। इस ग्रंथि के सम्पर्क में आने से महिलाओं का तनाव कम होता है। विवाह पश्चात् तनाव जनित रोगों से बचने में सिन्दूर की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। तुलसी कृत श्रीरामचरितमानस में सीता विवाह का वर्णन करते हुए तुलसीदासजी कहते है:-
प्रभुदित मुनिन्ह भाॅवरी फेरीं। नेत्र सहित सब रीति निबेरी ।।
राम सीय सिर सेंदुर देहीं। सोभा कहि न जाति बिधि केहीं ।।
श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 324-1-4
मुनि ने आनन्द पूर्वक भाँवरे फिराई और नेग सहित सब रीतियों को पूरा किया। श्रीरामचन्द्रजी ने सीता की मांग में सिन्दूर लगाया। यह शोभा किसी प्रकार कही नहीं जा सकती
श्रीराम भक्त हनुमान् के बारे में एक कथा प्रचलित है कि एक समय हनुमान्जी ने सीताजी को मांग में सिन्दूर लगाते हुए देख लिया । श्रीहनुमान् जी ने उत्सुकता वश सीता माता से इसका कारण पूछा ! सीता माता ने उन्हें बतलाया कि वे भगवान श्रीरामजी की दीर्धायु के लिए मांग में सिन्दूर लगाती हैं । बस फिर क्या था ? हनुमान् जी ने सोचा कि क्यों न वे अपना सम्पूर्ण शरीर सिन्दूर से रंग ले ताकि मेरे स्वामी दीर्घायु हो जावें । उन्होंने अपना सम्पूर्ण शरीर सिन्दूर से तेल लगाकर रंग लिया । तभी से आज तक परमप्रिय रामभक्त हनुमान्जी को सिन्दूर का चोला चढ़ाया जाता हैं ।(कल्याण हनुमान् अंक पृष्ठ 319 गीता प्रेस गोरखपुर)
सिन्दूर का पौधा राजस्थान ,मध्यप्रदेश, तथा छत्तीसगढ़ आदि स्थानों पर पाया जाता है। पौधे में फलियाँ लगती हैं और फलियों से निकलने वाले दानों से ही सिन्दूर का निर्माण होता है । माँ कामाख्यादेवी के मंदिर में मिलने वाले सिन्दूर का भी बहुत महत्व है । ऐसा कहा जाता है कि वहाॅ पर कुछ विशेष प्रकार के पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े प्राप्त होते है जिन्हंे पीसकर सिन्दूर बनाया जाता है । वहाॅ भक्तों कोे भी यही सिन्दूर दिया जाता है ।
वर्तमान समय में सिन्दूर की शाुद्धता लुप्तप्राय है । प्रत्येक वस्तु में मिलावट है । नकली सिन्दूर स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है । चिकित्सकों का कथन है कि इसका उपयोग करने से नेत्रज्योति कम हो सकती है । असमय बाल सफेद होने की संभावना भी रहती है । चर्म रोग भी हो सकता है । खुजली आदि घातक व्याधियों से महिलाएं ग्रसित हो सकती हैं । कई चिकित्सक भी सिन्दूर का उपयोग न करने की सलाह देते हैं । कई महिलाओं कंकू, रोली, या तरल गंध का उपयोग सिन्दूर के स्थान पर करने लगी हैं ।
भारतीय समाज में यह परम्परा रही है कि सिन्दूर एक विवाहिता के लिए सौभाग्य का प्रतीक है । प्रत्येक विवाहिता को उसे अवश्य लगाना चाहिए चाहे वह कंकू रोली या द्रव रूप में ही क्यों न हो। परंतु इन सबके साथ ही यह भी आवश्यक है कि अपने जीवन साथी के साथ सद्व्यवहार,चारित्रिक गुण, मैत्री पूर्ण व्यवहार, अपने परिवार के प्रति प्रेम,दया, सेवा तथा सहानुभूति के साथ ही अपने पति के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने पर भी अपने पति की आयु वृद्धि में सहायक हो सकती है । कन्या के जीवन में विवाह के पश्चात आने वाले तनाव को केवल सिन्दूर लगाने से ही दूर नहीं किया जा सकता वरन् दोनों पक्षों द्वारा नव वर-वधु को पर्याप्त स्नेह देकर उन्हें अपने नये सगे संबंधियों के प्रति मार्गदर्शन देकर जीवन को सुखी बनाया जा सकता है । परिवार में सुख समृद्धि और शाांति केवल माँग में सिन्दूर लगाने से ही नहीं आती अपितु उसके लिए मधुर व्यवहार भी आवश्यक है ।
श्रीमती शारदा नरेन्द्र मेहता
एम.ए. संस्कृत विशारद
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रचना मौलिक, समसामयिक एवं अप्रकाशित है।
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