हरियाणा में नूंह के सांप्रदायिक अंधड़ के बाद की कार्रवाई जारी है, लेकिन क्या दबा-छिपा है, उसकी संभावनाएं कोई भी भी नहीं बता सकता । सर्वोच्च अदालत का आदेश है कि सरकारें तय करें कि कोई नफरती भाषण न दिया जाए। माहौल को भडक़ाया-उकसाया न जाए। हिंसा की कोई गुंजाइश न हो|
यह जिम्मेदारी हरियाणा, दिल्ली, उप्र और केंद्र की सरकारों की तय की गई है। अदालत ने जुलूस, रैली, प्रदर्शन आदि की वीडियोग्राफी और रिकॉर्डिंग के भी आदेश दिए हैं। फिलहाल सुनवाई जारी है। नूंह हिंसा के पूरे प्रकरण में मोनू मानेसर और बिट्टू बजरंगी, कथित गोरक्षकों, को ‘खलनायक’ चित्रित किया गया है। क्या सिर्फ दो हिंदूवादी चेहरों के कारण हरियाणा के एक संवेदनशील इलाके को हिंसा और दंगे की आग में झोंका गया? सांप्रदायिक दोफाड़ के हालात पैदा किए गए? मासूम लोग मारे गए और 70 से अधिक घायल हुए। जिला अदालत की अतिरिक्त चीफ ज्यूडिशियल मजिस्टे्रट अंजलि जैन को, उनकी तीन साला बेटी के साथ, घंटों तक एक वर्कशॉप में छिपकर जान बचानी पड़ी। उनकी कार पर 100 से अधिक दंगाइयों ने पथराव के साथ हमला किया। क्या एक न्यायाधीश भी सांप्रदायिक हो गया? क्या यह हमला भी मोनू-बिट्टू के भडक़ाऊ वीडियो के कारण किया गया? अब नूंह के प्रवासी मजदूरों ने भी पलायन करना शुरू कर दिया है।उनमें सभी हैं।
गुरुग्राम के समीप एक गुरुकुल पर दो बार हमले की कोशिश की गई। उन अनाम ग्रामीणों का बहुत आभार है कि उन्होंने जान की बाजी लगाकर गुरुकुल को खंडहर होने से बचा लिया। बेकसूर दुकानदारों और व्यापारियों को लूटा गया, उनके प्रतिष्ठान जला कर राख कर दिए, करोड़ों की संपत्ति तबाह कर दी गई और कुछ कारोबारियों को तो जान से मार कर सडक़ किनारे फेंक दिया गया। क्या ऐसे हालात मोनू और बिट्टू के कारण बन सकते हैं? कौन हैं ये दो चेहरे…? उनके खिलाफ हरियाणा में भी आपराधिक मामले दर्ज हैं, फिर भी उन्हें ‘जामाता’ की तरह संरक्षण क्यों दिया जा रहा है? इस संदर्भ में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री के बयानों में ही विरोधाभास है।
भाजपा और हरियाणा सरकार का बुनियादी अपराध यही है। दरअसल मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर हरेक घटना और टकराव के दौरान नाकाम साबित हुए हैं। चाहे वह जाट आरक्षण आंदोलन हो अथवा राम रहीम को अदालती सजा सुनाने के बाद भडक़ी जन-हिंसा हो! नूंह हिंसाकांड पर मुख्यमंत्री ने बयान दिया है कि पुलिस या सेना हरेक व्यक्ति को सुरक्षा नहीं दे सकती। यह यथार्थ हरियाणा और देश की जनता भी जानती है, लेकिन सरकार का अपना इकबाल होता है। कानून-व्यवस्था और खुफियागीरी के मायने क्या हैं? यदि सरकारें आम नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकतीं, तो इस्तीफा दें। अलबत्ता चुनाव में जनता फैसला कर देगी। आश्चर्य है कि सरकार आंकड़ों में गिना रही है कि बीते 5 सालों के दौरान, 2017-22 के बीच, नूंह में कोई भी, कभी भी, सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ।
बेशक शेष हरियाणा में सांप्रदायिक हिंसा और दंगों की 211 घटनाएं जरूर हुई हैं। इस अर्धसत्य पर भी अदालत में चर्चा होनी चाहिए। नूंह की सांप्रदायिक और नफरती लपटें गुरुग्राम, फरीदाबाद, सोहना, पलवल आदि शहरों तक भी लपलपाती रही हैं। गुरुग्राम में ‘ब्लू चिप’ की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दफ्तर बाल-बाल बचे हैं। अलबत्ता दुनिया भर में हमारी ‘साइबर सिटी’ की साख पर बट्टा जरूर लग जाता!
नूंह के सवाल और दोषारोपण सिर्फ मोनू, बिट्टू तक ही सीमित नहीं हैं। यह जिला ‘लघु आतंकीस्तान’ भी है। हिंसा, तनाव के दौरान भीड़ ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाती रही। नूंह से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर, एक गांव में, मस्जिद बनाई जा रही थी, जिसकी फंडिंग पाकपरस्त आतंकी संगठन ‘लश्कर-ए-तैयबा’ ने की थी। राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने इसीलिए मस्जिद पर छापा मारा था। वह केस अब भी जारी है, लेकिन मस्जिद का निर्माण रुकवा दिया गया है। नूंह हरियाणा का दूसरा सबसे गरीब और पिछड़ा जिला है। उसके बावजूद सांप्रदायिकता में अव्वल है। प्रार्थना है इस इलाके में अमन-चैन बना रहे।