लोकतंत्र में पारदर्शिता
लोकतंत्र की वास्तविक पहचान पारदर्शिता में निहित होती है। यदि किसी देश के लोकतंत्र में पारदर्शिता नहीं दिखाई देती है तो उस देश में लोकतंत्र का अस्तित्व खतरे में होता है। लोकतंत्र जनता का विश्वास है और जब लोकतंत्र में पारदर्शिता समाप्त हो जाती है तो जनता का विश्वास भी धीरे-धीरे समाप्त प्राय होना प्रारम्भ हो जाता है। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जो भी पार्टी सत्ता में आयी, उसने सर्वप्रथम परदर्शिता पर प्रहार किया, परिणामस्वरूप वे सभी पार्टियाँ प्रचण्ड बहुमत प्राप्त करने के पश्चात भी शनै-शनै विघटन की ओर अग्रसर हो गईं।
लोकतंत्र की पारदर्शिता का प्रदर्शन सर्वप्रथम चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली से ही होना चाहिए। यदि चुनाव आयोग ही स्वयं में सशक्त नहीं हैं तो वह देश के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकता है। आज भी पूर्व चुनाव आयुक्त टी0एन0 शेषन जी के योगदान को जनता विस्मृत नहीं कर पायी है। अन्य प्रमुख पहलू जिसमें पारदर्शिता होनी चाहिए, वह पार्टियों को प्राप्त होने वाले चंदे की धनराशि, जिसके ऊपर जनता की विशेष नजर रहती है। भाजपा सरकार ने चुनावों में परदर्शिता लाने के लिए चुनावी खर्च हेतु बैंक बाँड का प्रारम्भ इस आशा से किया कि चुनावों में काले धन के प्रयोग पर अंकुश लग सके। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत जब किसी पार्टी के पास बैंक बांड के माध्यम से धन आएगा तो वह धन सबकी नजर में होगा, क्योंकि वो पार्टी को अपने अकांउट में ही जमा करना होगा। बैंक बाँड की प्रक्रिया को प्रारम्भ करने में भाजपा की सोच अच्छी थी, परन्तु यह व्यवस्था भी काले धन के चलन को रोक नहीं पायी है, क्योकि जब तक बाँड प्रक्रिया में धन देने वाले का नाम गुप्त रखा जाएगा और वो अपने अकांउट से पैसे ट्रांसफर कराकर नकद से ही बांड बनवाएगा तो उस पर पूर्ण अंकुश लगाना कभी सम्भव नहीं हो पाएगा। वर्तमान में चुनावी प्रक्रिया के अन्तर्गत काले धन का प्रयोग प्रचुर मात्रा में हो रहा है। अतः इस पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है।
लोकतंत्र के लिए निष्पक्ष चुनाव का सम्पन्न होना अत्यन्त आवश्यक है। वास्तविक स्थिति यह है कि प्रदेश के प्रशासन का चुनावों में सत्तासीन पार्टी की ओर झुकाव होना एक विवशता बन जाती है। उससे निष्पक्ष चुनाव पर प्रश्न चिह्न लग जाता है और उस प्रदेश का विरोधी पक्ष भी निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाने प्रारम्भ कर देता है। लोकतंत्र में यह अत्यधिक आवश्यक है कि चुनाव निष्पक्ष हांे और सभी पक्षों को ईवीएम मशीन अथवा वोटों की गणना के स्तर पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए। अटल जी ने सच ही कहा था कि – ‘‘सत्ता आने-जाने वाली चीज है, परन्तु ईमानदारी और सिद्वान्त हमेशा से स्थिर रहते हैं।‘‘ और भाजपा उसी राह पर चलने का पूर्ण प्रयास कर रही है और उसका प्रयास है कि लोकतंत्र को पारदर्शिता के साथ पल्लवित व पुष्पित किया जाए, परन्तु इस कार्य की परिणिति में सम्पूर्ण विरोधी पक्ष का सहयोग भी अत्यंत आवश्यक है।
*योगेश मोहन*