हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया
रजनीश कपूर
1961 की बहुचर्चित फ़िल्म ‘हम दोनों’ का ये गाना सबने सुना होगा। धूम्रपान करने वाले सभी व्यक्तियों ने भी इस
अवश्य सुना होगा। फ़िल्म में गाने के बोल इस तरह दर्शाये गये कि फ़िल्म का हीरो अपने सभी फ़िक्र और चिंताओं
को धुएँ के कश में उड़ा देता है और चिंता मुक्त हो जाता है। परंतु क्या ये सही है कि मात्र सिग्रेट के कश भरने और
धुआँ उड़ाने से आपकी चिंताएँ ख़त्म हो जाएँगी? इसका उत्तर है नहीं। बल्कि यदि आपको धूम्रपान की लत लग जाए
तो आपकी स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ बढ़ ज़रूर जाएँगी।
आज जानते हैं कि ऐसा क्या है इस चंद लम्हे की मामूली सी ख़ुशी में, जो लाखों करोड़ों को इसकी लत लगा देती है।
दरअसल सिग्रेट में मौजूद तंबाकू में निकोटीन पाया जाता है जो कश लेते ही बड़ी तेज़ी से यह धुआँ आपके फेंफड़े में
समा जाता है और कुछ ही क्षण में दिमाग़ तक पहुँच जाता है। दिमाग़ में पहुँचते ही इसका संपर्क ‘नर्व सेल’ से होता
है और इसके असर से डोपामाइन नाम का रसायन बाहर आता है। यह रसायन आपके दिमाग़ को संकेत देता है कि
कुछ अच्छा करने से आपको इनाम मिल सकता है। विशेषज्ञों की मानें तो, यह रसायन आपको ऐसा इशारा देता है
कि आप एक बार दोबारा सिग्रेट का कश भर लेते हैं। एक शोध के अनुसार सिग्रेट की लत से प्रभावित लोगों को,
जिन्हें गले का कैंसर हुआ था, उनकी गले की नली को काट कर अलग करना पड़ा। उपचार के बाद भी इस लत ने
उनका पीछा नहीं छोड़ा और वे दोबारा धूम्रपान करने को मजबूर थे।
सिग्रेट में मौजूद तंबाकू की लत अन्य नशीले पदार्थों की तरह ही होती है जिससे छुटकारा पाना आसान नहीं होता।
विशेषज्ञों के अनुसार दिमाग़ के जिस हिस्से को ‘एनिमल पार्ट’ कहा जाता है उससे ही निकोटीन की लत पर क़ाबू
पाया जा सकता है। नशीले पदार्थ हमारे दिमाग़ के ‘एनिमल पार्ट’ को इस कदर उकसाते हैं कि वो ऐसे संदेश भेजता
है कि हम ऐसा बार-बार करें। वहीं दिमाग़ का दूसरा हिस्सा हमें ऐसा करने से रोकता भी है। नशे की लत की
गिरफ़्त में लोग अक्सर इस संघर्ष से जूझते रहते हैं। इस लत का इस बात से कोई भी लेना-देना नहीं है कि आप
कितने समझदार हैं। बल्कि आपका दिमाग़ निकोटीन या अन्य नशीले पदार्थों पर किस तरह प्रतिक्रिया देता है। यदि
समय रहते और सही संगति के चलते नशा या धूम्रपान रोक दिया जाए तो बेहतर हो परंतु ऐसा बहुत कम होता है।
सिग्रेट की लत के लिए केवल निकोटीन ही ज़िम्मेदार नहीं होती। इसके लिए एक प्रमुख भूमिका सिग्रेट बनाने वाली
कंपनियों और उनके द्वारा जारी किए भ्रामक विज्ञापन भी उतने ही ज़िम्मेदार हैं। पश्चिमी देशों में जैसे ही निकोटीन
की लत को लेकर सवाल उठने लगे तो कुछ लोगों ने इसकी जड़ तक जाने की सोची। उन्होंने वैज्ञानिक तरीक़ों से यह
साबित कर दिया कि सिग्रेट के धुएँ में कुछ भी लाभदायक नहीं होता। इतना ही नहीं ये न केवल धूम्रपान करने वाले
के लिए बल्कि उसके आस-पास के लोगों के लिए भी काफ़ी हानिकारक साबित हो सकता है। जैसे-जैसे यह अभियान
तेज़ी पकड़ने लगा, धूम्रपान पर सार्वजनिक जगहों पर प्रतिबंध भी लगने लगा। इतना ही नहीं सिग्रेट पर अतिरिक्त
और बढ़े हुए कर भी लगाए जाने लगे जिससे इसकी क़ीमत में भी बढ़ोतरी हुई। इसके साथ ही सिग्रेट के डब्बों पर
भी स्वास्थ्य संबंधित चेतावनियाँ भी छापी जाने लगी।
परंतु इन सबके चलते भी पश्चिमी देशों की बड़ी-बड़ी सिग्रेट कंपनियों ने हार नहीं मानी। ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने की
नीयत से इन कंपनियों ने विकासशील देशों और उन देशों का रुख़ करना शुरू कर दिया जहां नियम और क़ानून
सख़्त नहीं थे। इन देशों में आम नागरिक धीरे-धीरे इन कंपनियों की मार्केटिंग के मायाजाल में बड़ी आसानी से फँस
गये। देखते ही देखते इन कंपनियों की फिर से चाँदी होने लग गई। पर सोचने वाली बात यह है कि लोग धूम्रपान के
आदी कैसे बन जाते हैं?
कुछ लोग सिग्रेट पीने को एक ‘स्टेटस सिंबल’ या सामाजिक स्थिति का संकेतक मानते हैं। वो समझते हैं कि धूम्रपान
करना एक ऐसी आदत है जो किसी विशेष वर्ग में आपको बड़ी आसानी से स्थान देती है। परंतु इस स्थान पाने की
होड़ में आप अपनी सेहत से खिलवाड़ कर लेते हैं। इस लत के चलते न सिर्फ़ आप अनी सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं
परंतु अपने घरेलू बजट का भी नुक़सान कर रहे हैं। ज्यों-ज्यों आपकी यह लत बढ़ती जाएगी आपकी जेब पर भार
भी बढ़ेगा। इतना ही नहीं धूम्रपान करने से मिलने वाले आंशिक ‘सुकून’ एक बड़ी मात्रा में आपके स्वास्थ्य पर असर
करता है और यह जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसलिए आप जब भी किसी धूम्रपान करते हुए व्यक्ति को देखें
या स्वयं अगला कश लगाने लगें तो ये सवाल अवश्य पूछें कि क्या वास्तव में धूम्रपान करने से फ़िक्र धुएँ में उड़ रहे
हैं? कहीं ऐसा तो नहीं फ़िक्र उड़ने के बजाए और बढ़ रहे हैं?
*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंध संपादक हैं।