डॉ अजय कुमार मिश्रा
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इंग्लैंड और फ़्रांस से शुरू हुआ प्रेम का प्रतीक वेलेंटाइन्स डे आज दुनियां में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना चुका है खासकर युवाओं में तेजी से न केवल पकड़ मजबूत हुई है बल्कि अनेकों ऐसे बच्चे भी मिल जायेगे जिन्हें वास्तव में इसके सरोकार में शामिल नहीं होना चाहिएए पर वो लोग और तन्मयता से जुड़े है द्य इस दिन कार्डए फूलए चॉकलेट और उपहारों को देने के साथ दृ साथ प्यार का इजहार किया जाता है द्य कई परिवर्तनों के दौर से गुजरता हुआ यह अब बाजारवाद का शिकार हो गया है और ग्लोबल कंपनियां इसे इस तरह प्रोमोट कर रही है की प्यार के इजहार का इससे नायब दिन कोई नहीं हो सकता द्य आधुनिकता के इस रंग में अब वेलेंटाइन्स डे सात दिनों के रंग का स्वरुप ले चुका है जिसमे प्रत्येक दिन कुछ अलग होता है और अंतिम स्वरुप 14 फरवरी को पूरा होता है द्य प्रत्येक वर्ष यह 14 फरवरी को मनाया जाता है द्य भारत का शायद ही कोई शहर ऐसा हो जो इसके प्रभाव में न हो द्य इसका प्रभाव बढ़ने से हम न केवल अपनी संस्कृति और सभ्यता भूलकर इन व्यवस्थाओं पर आगे बढ़ना चाह रहें है जिसका स्थायित्व कही नहीं है द्य वेलेंटाइन्स डे की अवधि में आप सभी ने यह जरुर सुना है की कुछ लोग इसका तीखा विरोध करतें है जबकि युवाओं को यह बेहद स्वीकार्य है द्य जगह दृ जगह पार्कों और कई जगहों पर कथित प्रेमी प्रेमिकाओं को मिलने से रोका जाता है या कई ऐसी गत्विधियाँ की जाती है जिसका उद्देश्य युवाओं में इसके प्रति डर बैठाना होता है द्य
देश के अन्दर की व्यवस्था में आप देखेगे तो वेलेंटाइन्स डे को अब किसी बंदिश के दायरें में नहीं रखा जा सकता द्य तकनीकी और हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र में विकास ने इसमें और अधिक आजादी दे दी है नतीजन प्यारए स्वच्छ भावनाए समर्पणए त्याग की जगह व्यक्तिगत इच्छापूर्ति और शारीरिक इच्छापूर्ति ने ले लिया है जहाँ न्यूनतम उम्र और इस विषय के समझ की कोई बाध्यता नहीं है द्य आज आपको देश के महानगरों में सार्वजनिक स्थानों पर ऐसी गतिविधियाँ देखने को दिनभर मिलने लगी है की आप अन्दर से न केवल डरा हुआ महसूस करेगे बल्कि आपके मन में यह विचार अवश्य उत्पन्न होगा की मेरे बच्चे क्या इसी तरह के है घ् आधुनिक समाज के कुछ तथाकथित विद्वानों ने इसे और अधिक बढ़ावा दिया है जबकि 95 प्रतिशत लोगों को प्रेम का मतलब ही नहीं पता द्य वास्तव में प्रेम होता क्या है और इसके प्रति किस तरह के समर्पण की आवश्यकता है द्य जिस दिन हम सभी इस बात को स्वयं समझने और समझाने में सफल हो जायेगें उस दिन विरोध नहीं करना होगा बल्कि समाज में प्रत्येक जगह इसका विरोध युवाओं द्वारा दिखेगा द्य
यदि हम प्रेम की बात करें तो हमारी संस्कृति और धर्म में एक दो नहीं अनेकों ऐसे उदहारण है जिसे समझने से हम अपनी विषम से विषम परिस्थिति में भी आधुनिकता के इस मकड़जाल में नहीं आ पायेगे द्य श्रीराम और माँ सीता का प्रेमए मीरा और कृष्ण का प्रेम आज दुनियांभर में प्रेम का सजीव उदहारण है द्य समय के साथ साथ वैश्विक भागीदारी प्रत्येक क्षेत्र में देश के अन्दर और बढ़ेगी और जिसका लाभ और हानि हम सभी को समान रूप में वहन करना होगा द्य लाभ अधिक हो और हानि नाममात्र इसके लिए जरुरी है की अच्छी बातों और चीजों का अनुसरण करके व्यव्हार में लाये जबकि अनुपयोगी से हम दूर रहना सीखें द्य आगामी दो दशकों के पश्चात् स्थिति इतनी भयावह होगी की प्रेम के नाम पर लोगों का सम्बन्ध दिनों और घंटें भर का रह जायेगाए साथ ही विभिन्न अपराधों को भी जन्म देगा द्य जिस प्रेम को हम समर्पण और त्याग के नाम से जानते आ रहें है वह केवल शारीरिक इच्छापूर्ति तक सीमित दिखेगा जो वास्तव में विभिन्न विघटन का मूल रूप भी होगा और असंतोष और अपराध का एक बढ़ा कारण भी बनेगा द्य
वर्तमान यदि बुरा है तो भविष्य भयावह होगा क्योंकि इन मुद्दों पर कोई न बहस करना चाहता है और न ही इसे रोकने के लिए सार्थक प्रयास द्य जिन संगठनों द्वारा प्रयास किया जा रहा है उनमे अधिकांश को ख़बरों में बने रहने का उद्देश्य है द्य वर्तमान परिवेश में लोगों को जरूरत है की परिवार में न केवल आपस में संवाद करें बल्कि विभिन्न अच्छाई और बुराई के व्यव्हार को करने के लिए एक समझ का निर्माण कम से कम अपने बच्चों में जरुर करें द्य सभी की सामूहिक जिम्मेदारी यह भी बनती है की यह स्पष्ट रूप से अपनों को सिखाएं की किस उम्र में किस चीज की आवश्यकता है द्य सरकार भी इस विषय में जागरूकता लाकर युवाओं को जागरूक कर सकती है द्य क्योंकि अज्ञान के आभाव में चरित्रिक पतन भी हो रहा है जो न केवल स्वयं के लिए नुकसानदायक है बल्कि राष्ट्र के निर्माण में भी बाधा स्थापित करेगा द्य हमारा आज का प्रयास आगामी दो दशकों में उत्पन्न होने वाली भयावह स्थिति को रोक सकता है द्य याद रखिये वेलेंटाइन्स डे बुरा नहीं है बल्कि जिस स्वरुप और समझ से हम मना रहें है वह न केवल बुरा है बल्कि भविष्य की भयावह स्थिति को दर्शा रहा है यदि इन बातों पर विश्वास करना मुश्किल हो तो आज से दो दशक पीछे और वर्तमान का मुल्यांकन स्वयं करें द्य
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