४ मई को जिहादी गिद्ध टीपू सुल्तान अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करते हुए मारा गया था। टीपू सुल्तान के समर्थन में पाकिस्तान की सरकार का एका-एक प्रेम उमड़ा और उसने टीपू सुल्तान की याद पढ़े। बुद्धिजीवी समाज में सत्य और असत्य के मध्य भी एक युद्ध लड़ा जाता हैं। इसे बौद्धिक युद्ध कहते है। यहाँ पर तलवार का स्थान कलम ले लेती हैं और बाहुबल का स्थान मस्तिष्क की तर्कपूर्ण सोच ले लेती हैं। इसी कड़ी में इस बौद्धिक युद्ध का एक नया पहलु है टीपू सुल्तान, अकबर और औरंगजेब जैसे मुस्लिम शासकों को धर्म निरपेक्ष, हिन्दू हितैषी ,हिन्दू मंदिरों और मठों को दान देने वाला, न्याय प्रिय और प्रजा पालक सिद्ध करने का प्रयास। इस कड़ी में अनेक भ्रामक लेख प्रकाशित किये जा रहे हैं। इन लेखों में इतिहास की दृष्टी से प्रमाण कम है,शब्द जाल का प्रयोग अधिक किया गया है। परन्तु हज़ार बार चिल्लाने से भी असत्य सत्य सिद्ध नहीं हो जाता। इस लेख के माध्यम से यह सिद्ध किया जायेगा की टीपू सुल्तान मतान्ध एवं अत्याचारी शासक था। अकबर और औरंगज़ेब के विषय में अलग से लेख लिखा जायेगा। इस लेख का मूल उद्देश्य किसी भी मुस्लिम शासक के प्रति द्वेष भावना का प्रदर्शन करना नहीं अपितु जो जैसा है उसे वैसा बताना हैं। आशा हैं इस लेख को पढ़ कर हिन्दू युवकों को भ्रमित करने के लिए जो यह कवायद की जा रही हैं वह निरर्थक एवं निष्फल सिद्ध होगी।
टीपू सुल्तान के विषय में निम्नलिखित भ्रांतियां प्रचारित की जा रही हैं:-
- टीपू सुल्तान के राज्य में हिन्दुओं को सरकारी नौकरी में भरपूर मौका मिलता था। उदहारण के रूप में टीपू के प्रधानमंत्री का नाम पूर्णया था और वह एक ब्राह्मण था।
- टीपू सुल्तान अनेक मंदिरों को वार्षिक अनुदान दिया करता था।
- टीपू सुल्तान के श्रंगेरी मठ के जगद्गुरू शंकराचार्य से अति घनिष्ठ मैत्री सम्बन्ध थे। दोनों के मध्य पत्र व्यवहार मिलता है।
- टीपु सुल्तान प्रतिदिन नाश्ता करने के पहले रंगनाथ जी के मंदिर में जाता था जो श्रीरंगापटनम के क़िले में था।
- टीपू सुल्तान ने कभी हिन्दुओं को प्रताड़ित नहीं किया। कभी हिन्दुओं पर अत्याचार नहीं किया।
- टीपू सुल्तान देश भक्त था। उसने अपने राज्य की रक्षा के लिए अपने प्राण देकर वीरगति प्राप्त की थी[i]।
भ्रांतियों का सप्रमाण निवारण
भ्रान्ति नं 1. टीपु सुल्तान के राज्य में हिन्दुओं को सरकारी नौकरी में भरपूर मौका मिलता था। उदहारण के रूप में टीपू के प्रधानमंत्री का नाम पूर्णया था और वह एक ब्राह्मण था।
निवारण- टीपू सुल्तान की नौकरी में मुसलमानों को प्राथमिकता दी जाती थी। यहाँ तक कि अयोग्य होने पर भी मुसलमान होने के कारण बड़ी से बड़ी नौकरी पर एक मुसलमान को बैठाया जाता था। इससे प्रजा की दशा ओर अधिक शोचनीय हो गई। टीपू सुल्तान के मंत्रियों में केवल पुर्णिया एकमात्र हिन्दू था। मुसलमानों को गृह कर, संपत्ति कर से छूट थी। जो हिन्दू मुसलमान बन जाता था। उसे भी यह छूट प्राप्त हो जाती थी[ii]। टीपू सुल्तान की मृत्यु के पश्चात अंग्रेजों द्वारा नियुक्त किये गए मैसूर के भू राजस्व विभाग के अधिकारी मक्लॉयड भी लिखते है कि टीपू सुल्तान के राज्य में सभी अधिकारीयों के केवल मुस्लिम नाम हैं जैसे शेख अली, शेर खान, मुहम्मद सैय्यद, मीर हुसैन,सैयद पीर आदि[iii]।
भ्रान्ति नं 2- टीपू सुल्तान अनेक मंदिरों को वार्षिक अनुदान दिया करता था।
निवारण- विलियम लोगन[iv] एवं लेविस राइस[v] के अनुसार टीपू सुल्तान के पूरे राज्य में उसकी मृत्यु के समय केवल दो मंदिरों में दैनिक पूजा होती थी। उनके अनुसार टीपू सुल्तान ने दक्षिण भारत में 800 मंदिरों का विध्वंश किया था[vi]। अनेक लेखकों ने अपने लेखों द्वारा टीपू सुल्तान द्वारा तोड़े गए मंदिरों पर विचार प्रकट किये हैं[vii]।
टीपू द्वारा मन्दिरों का विध्वंस
दी मैसूर गज़टियर बताता है कि “टीपू ने दक्षिण भारत में आठ सौ से अधिक मन्दिर नष्ट किये थे।”
के.पी. पद्मानाभ मैनन[viii] और श्रीधरन मैनन[ix] द्वारा लिखित पुस्तकों में उन भग्न, नष्ट किये गये, मन्दिरों में से कुछ का वर्णन करते हैं-
“चिन्गम महीना 952 मलयालम ऐरा तदुनसार अगस्त 1786 में टीपू की फौज ने प्रसिद्ध पेरुमनम मन्दिर की मूर्तियों का ध्वंस किया और त्रिचूर ओर करवन्नूर नदी के मध्य के सभी मन्दिरों का ध्वंस कर दिया। इरिनेजालाकुडा और थिरुवांचीकुलम मन्दिरों को भी टीपू की सेना द्वारा खण्डित किया गया और नष्ट किया गया।” अन्य प्रसिद्ध मन्दिरों में से कुछ, जिन्हें लूटा गया, और नष्ट किया गया, था, वे थे- त्रिप्रंगोट, थ्रिचैम्बरम्, थिरुमवाया, थिरवन्नूर, कालीकट थाली, हेमम्बिका मन्दिरपालघाट का जैन मन्दिर, माम्मियूर, परम्बाताली, पेम्मायान्दु, थिरवनजीकुलम, त्रिचूर का बडक्खुमन्नाथन मन्दिर, बैलूर शिवा मन्दिर आदि।”
“टीपू की व्यक्तिगत डायरी के अनुसार चिराकुल राजा ने टीपू सेना द्वारा स्थानीय मन्दिरों को विनाश से बचाने के लिए, टीपू सुल्तान को चार लाख रुपये का सोना चाँदी देने का प्रस्ताव रखा था। किन्तु टीपू ने उत्तर दिया था, ”यदि सारी दुनिया भी मुझे दे दी जाए तो भी मैं हिन्दू मन्दिरों को ध्वंस करने से नहीं रुकूँगा [x]”
सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली की कहावत आपने सुनी होगी। टीपू सुल्तान पर सटीक रूप से लागु होती है।
भ्रान्ति नं 3. टीपू सुल्तान के श्रंगेरी मठ के जगद्गुरू शंकराचार्य से अति घनिष्ठ मैत्री सम्बन्ध थे। दोनों के मध्य पत्र व्यवहार मिलता है।
निवारण- जहाँ तक श्रृंगेरी मठ से सम्बन्ध हैं डॉ ऍम गंगाधरन[xi] लिखते है की टीपू सुल्तान भूत प्रेत आदि में विश्वास रखता था। उसने श्रृंगेरी मठ के आचार्यों को धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए दान भेजा जिससे उसकी सेना पर भूत- प्रेत आदि का कूप्रभाव न पड़े।
भ्रान्ति नं 4. टीपु सुल्तान प्रतिदिन नाश्ता करने के पहले रंगनाथ जी के मंदिर में जाता था जो श्रीरंगापटनम के क़िले में था।
निवारण- पि.सी.न राजा[xii] में लिखते हैं की श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर के पुजारियों द्वारा टीपू सुल्तान के लिए एक भविष्यवाणी करी थी। जिसके अनुसार अगर टीपू सुल्तान मंदिर में एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान करवाता था जिससे उसे दक्षिण भारत का सुलतान बनने से कोई रोक नहीं सकता। अंग्रेजों से एक बार युद्ध में विजय प्राप्त होने का श्रेय टीपू ने ज्योतिषों की उस सलाह को दिया था। जिसके कारण उसे युद्ध में विजय प्राप्त हुई, इसी कारण से टीपू ने उन ज्योतिषियों को और मंदिर को ईनाम रुपी सहयोग देकर सम्मानित किया था। श्रृंगेरी मठ और श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर का नाम लेकर टीपू को उदारवादी सिद्ध करना अपने आपको धोखा देने के समान हैं।
भ्रान्ति 5. टीपू सुल्तान ने कभी हिन्दुओं को प्रताड़ित नहीं किया। कभी हिन्दुओं पर अत्याचार नहीं किया।
निवारण- टीपू सुल्तान के पत्र और तलवार पर अंकित शब्दों को पढ़कर टीपू सुल्तान का असली चेहरा सामने आ जाता हैं।
टीपू के पत्र
टीपू द्वारा लिखित कुछ पत्रों, संदेशों, और सूचनाओं, के कुछ अंश निम्नांकित हैं। विखयात इतिहासज्ञ, सरदार पाणिक्कर, ने लन्दन के इण्डिया ऑफिस लाइब्रेरी से इन सन्देशों, सूचनाओं व पत्रों के मूलों को खोजा था।
(1) अब्दुल खादर को लिखित पत्र 22 मार्च 1788
“बारह हजार से अधिक, हिन्दुओं को इ्रस्लाम से सम्मानित किया गया (धर्मान्तरित किया गया)। इनमें अनेकों नम्बूदिरी थे। इस उपलब्धि का हिन्दुओं के मध्य व्यापक प्रचार किया जाए। स्थानीय हिन्दुओं को आपके पास लाया जाए, और उन्हें इस्लाम में धर्मान्तरित किया जाए। किसी भी नम्बूदिरी को छोड़ा न जाए[xiii]।”
(2) कालीकट के अपने सेना नायक को लिखित पत्र दिनांक 14 दिसम्बर 1788
“मैं तुम्हारे पास मीर हुसैन अली के साथ अपने दो अनुयायी भेज रहा हूँ। उनके साथ तुम सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लेना और वध कर देना…”। मेरे आदेश हैं कि बीस वर्ष से कम उम्र वालों को काराग्रह में रख लेना और शेष में से पाँच हजार का पेड़ पर लटकाकार वध कर देना।[xiv]”
(3) बदरुज़ समाँ खान को लिखित पत्र (दिनांक 19 जनवरी 1790)
“क्या तुम्हें ज्ञात नहीं है निकट समय में मैंने मलाबार में एक बड़ी विजय प्राप्त की है चार लाख से अधिक हिन्दुओं को मूसलमान बना लिया गया था। मेरा अब अति शीघ्र ही उस पानी रमन नायर की ओर अग्रसर होने का निश्चय हैं यह विचार कर कि कालान्तर में वह और उसकी प्रजा इस्लाम में धर्मान्तरित कर लिए जाएँगे, मैंने श्री रंगापटनम वापस जाने का विचार त्याग दिया है।[xv]”
टीपू ने हिन्दुओं के प्रति यातना के लिए मलाबार के विभिन्न क्षेत्रों के अपने सेना नायकों को अनेकों पत्र लिखे थे।
“जिले के प्रत्येक हिन्दू का इस्लाम में आदर (धर्मान्तरण) किया जाना चाहिए; उन्हें उनके छिपने के स्थान में खोजा जाना चाहिए; उनके इस्लाम में सर्वव्यापी धर्मान्तरण के लिए सभी मार्ग व युक्तियाँ- सत्य और असत्य, कपट और बल-सभी का प्रयोग किया जाना चाहिए।[xvi]”
मैसूर के तृतीय युद्ध (1792) के पूर्व से लेकर निरन्तर 1798 तक अफगानिस्तान के शासक, अहमदशाह अब्दाली के प्रपौत्र, जमनशाह, के साथ टीपू ने पत्र व्यवहार स्थापित कर लिया था। कबीर कौसर द्वारा लिखित, ‘हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान’ (पृ’ 141-147) में इस पत्र व्यवहार का अनुवाद हुआ है। उस पत्र व्यवहार के कुछ अंश नीचे दिये गये हैं।
टीपू के ज़मन शाह के लिए पत्र
(1) “महामहिम आपको सूचित किया गया होगा कि, मेरी महान अभिलाषा का उद्देश्य जिहाद (धर्म युद्ध) है। इस युक्ति का इस भूमि पर परिणाम यह है कि अल्लाह, इस भूमि के मध्य, मुहम्मदीय उपनिवेश के चिह्न की रक्षा करता रहता है, ‘नोआ के आर्क’ की भाँति रक्षा करता है और त्यागे हुए अविश्वासियों की बढ़ी हुई भुजाओं को काटता रहता है।”
(2) “टीपू से जमनशाह को, पत्र दिनांक शहबान का सातवाँ 1211 हिजरी (तदनुसार 5 फरवरी 1789) ”….इन परिस्थितियों में जो, पूर्व से लेकर पश्चित तक, सूर्य के स्वर्ग के केन्द्र में होने के कारण, सभी को ज्ञात हैं। मैं विचार करता हूँ कि अल्लाह और उसके पैगम्बर के आदेशों से एक मत हो हमें अपने धर्म के शत्रुओं के विरुद्ध धर्म युद्ध क्रियान्वित करने के लिए, संगठित हो जाना चाहिए। इस क्षेत्र के पन्थ के अनुयाई, शुक्रवार के दिन एक निश्चित किये हुए स्थान पर सदैव एकत्र होकर इन शब्दों में प्रार्थना करते हैं। ”हे अल्लाह! उन लोगों को, जिन्होंने पन्थ का मार्ग रोक रखा है, कत्ल कर दो। उनके पापों को लिए, उनके निश्चित दण्ड द्वारा, उनके शिरों को दण्ड दो।”
मेरा पूरा विश्वास है कि सर्वशक्तिमान अल्लाह अपने प्रियजनों के हित के लिए उनकी प्रार्थनाएं स्वीकार कर लेगा और पवित्र उद्देश्य की गुणवत्ता के कारण हमारे सामूहिक प्रयासों को उस उद्देश्य के लिए फलीभूत कर देगा। और इन शब्दों के, ”तेरी (अल्लाह की) सेनायें ही विजयी होगी”, तेरे प्रभाव से हम विजयी और सफल होंगे।
टीपू द्वारा हिन्दुओं पर किया गए अत्याचार उसकी निष्पक्ष होने की भली प्रकार से पोल खोलते हैं।
- डॉ गंगाधरन जी ब्रिटिश कमीशन कि रिपोर्ट के आधार पर लिखते है की ज़मोरियन राजा के परिवार के सदस्यों को और अनेक नायर हिन्दुओं को टीपू द्वारा जबरदस्ती सुन्नत कर मुसलमान बना दिया गया था और गौ मांस खाने के लिए मजबूर भी किया गया था।
- ब्रिटिश कमीशन रिपोर्ट के आधार पर टीपू सुल्तान के मालाबार हमलों 1783-1791 के समय करीब 30,000 हिन्दू नम्बूदरी मालाबार में अपनी सारी धनदौलत और घर-बार छोड़कर त्रावनकोर राज्य में आकर बस गए थे।
- इलान्कुलम कुंजन पिल्लई लिखते है की टीपू सुल्तान के मालाबार आक्रमण के समय कोझीकोड में 7000 ब्राह्मणों के घर थे जिसमे से 2000 को टीपू ने नष्ट कर दिया था और टीपू के अत्याचार से लोग अपने अपने घरों को छोड़ कर जंगलों में भाग गए थे। टीपू ने औरतों और बच्चों तक को नहीं बक्शा था। जबरन धर्म परिवर्तन के कारण मापला मुसलमानों की संख्या में अत्यंत वृद्धि हुई जबकि हिन्दू जनसंख्या न्यून हो गई[xvii]।
- राजा वर्मा केरल में संस्कृत साहित्य का इतिहास में मंदिरों के टूटने का अत्यंत वीभत्स विवरण करते हुए लिखते हैं की हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों को तोड़कर व पशुओं के सर काटकर मंदिरों को अपवित्र किया जाता था[xviii]।
- बिदुर, उत्तर कर्नाटक का शासक अयाज़ खान था जो पूर्व में कामरान नाम्बियार था, उसे हैदर अली ने इस्लाम में दीक्षित कर मुसलमान बनाया था। टीपू सुल्तान अयाज़ खान को शुरू से पसंद नहीं करता था इसलिए उसने अयाज़ पर हमला करने का मन बना लिया। जब अयाज़ खान को इसका पता चला तो वह बम्बई भाग गया. टीपू बिद्नुर आया और वहाँ की सारी जनता को इस्लाम कबूल करने पर मजबूर कर दिया था। जो न बदले उन पर भयानक अत्याचार किये गए थे। कुर्ग पर टीपू साक्षात् राक्षस बन कर टूटा था। वह करीब 10,000 हिन्दुओं को इस्लाम में जबरदस्ती परिवर्तित किया गया। कुर्ग के करीब 1000 हिन्दुओं को पकड़ कर श्री रंगपटनम के किले में बंद कर दिया गया जिन पर इस्लाम कबूल करने के लिए अत्याचार किया गया बाद में अंग्रेजों ने जब टीपू को मार डाला तब जाकर वे जेल से छुटे और फिर से हिन्दू बन गए। कुर्ग राज परिवार की एक कन्या को टीपू ने जबरन मुसलमान बना कर निकाह तक कर लिया था[xix]।
- मुस्लिम इतिहासकार पि. स. सैयद मुहम्मद केरला मुस्लिम चरित्रम में लिखते हैं की टीपू का केरल पर आक्रमण हमें भारत पर आक्रमण करने वाले चंगेज़ खान और तिमूर लंग की याद दिलाता हैं।
इस लेख में टीपू के अत्याचारों का अत्यंत संक्षेप में विवरण दिया गया हैं।
भ्रान्ति 6. टीपू सुल्तान देश भक्त था। उसने अपने राज्य की रक्षा के लिए अपने प्राण देकर वीरगति प्राप्त की थी।
निवारण- सर्वप्रथम तो टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली ने सर्वप्रथम तो मैसूर के वाडियार राजा को हटाकर अपनी सत्ता ग्रहण करी थी। इसलिए मैसूर को टीपू सुल्तान का राज्य कहना गलत है। दूसरे टीपू का सपना दक्षिण का औरंगज़ेब बनने का था। टीपू पादशाह बनना चाहता था। उसका स्वपन देशवासियों के लिए एक उन्नत देश का निर्माण करने नहीं अपितु दक्षिण भारत को दारुल इस्लाम में बदलना था। मालाबार जैसे सुन्दर प्रदेश का टीपू ने जिस प्रकार विनाश किया। उसे पढ़ कर कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति कह सकता है वह एक देशभक्त नहीं अपितु एक दुर्दांत, मतान्ध,कट्टर अत्याचारी का लक्षण हैं।
सन्दर्भ सूची
[i] इतिहास के साथ यह अन्याय: प्रो बी एन पाण्डेय