बीते कल भोपाल बेहद गर्म था। तापमान 40 डिग्री को पार कर गया था, महसूस ज़्यादा हो रहा था। अब हमें बिना न-नुकुर इस हकीकत को स्वीकार लेना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन के घातक प्रभावों ने हमारे जीवन को गहरे तक प्रभावित कर दिया है। इस माह के आरंभ में जहां लोग वातावरण में ठंड महसूस कर रहे थे, पहाड़ों में बर्फबारी हो रही थी और मैदानों में ओला व वर्षा जारी थी। वहीं पिछले कुछ दिनों में मौसम अचानक बदला और बात पारे के अनपेक्षित रूप से ऊपर जाने की भी सामने आ गई है। यहां तक कि मौसम विज्ञानी दिल्ली सहित कई राज्यों में लू की चेतावनी देने लगे हैं। निस्संदेह, मौसम में बदलाव कुदरत का नियम है। ठंड के बाद गरमी और गरमी के बाद बरसात कुदरत के शाश्वत नियम हैं। लेकिन यह परिवर्तन निर्धारित समय के साथ धीरे-धीरे होता है। जिसमें मानव शरीर धीरे-धीरे उसके अनुकूल खुद को ढाल लेता है। ऐसा ही फसलों व फलों के वृक्षों का भी है, वे मौसम के अनुसार ही खिलते और फलते हैं।
अंतिम वैज्ञानिक शोध निष्कर्ष बाद में आएं, लेकिन हमारी फसलों की गुणवत्ता व मात्रा में इस अप्रत्याशित मौसम से गिरावट दर्ज की जा रही है। मानव जाति के लिये यह चेतावनी है कि कुदरत का अंधाधुंध दोहन बंद करके अपनी विलासिता पर लगाम लगाए ताकि वातावरण में तापमान नियंत्रित रह सके। जिससे हम ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से बच सकें। अप्रत्याशित मौसम बदलाव का असर जहां हमारी खाद्य सुरक्षा को जोखिम में डाल रहा है, वहीं तमाम तरह की बीमारियों का भी जन्म हो रहा है।
हक़ीक़त में बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने तथा मनुष्य की पैसा कमाने की हवस ने हमारे खाद्यान्नों व फल-सब्जियों में इतने रासायनिक पदार्थ भर दिये हैं कि आम आदमी की जीवनी शक्ति लगातार कमजोर होती जा रही है। जिसके चलते हमारा शरीर मौसम की तीव्रता को झेल पाने में सक्षम नहीं हो पाता। दो मौसमों के संधि काल में ज्यादातर लोग फ्लू आदि बीमारियों के शिकार होते रहे हैं। कोरोना संक्रमण भी कमोबेश उन्हीं लक्षणों को दर्शाता है जो मौसम में बदलाव के दौरान आम समय में उभरते रहे हैं। दरअसल, असली खोट हमारी जीवन शैली व खानपान में है।
पहले कहा जाता था कि मौसम नहीं बल्कि गरीबी मारती है। हर साल गर्मी में लू से, ठंड में शीतलहर से और वर्षा ऋतु में बाढ़ से सिर्फ गरीब ही मरता है, लेकिन अब देखने में आ रहा है कि वातानुकूलित वातावरण में रहने वाली तथा पिज्जा-बर्गर खाने वाली पीढ़ी ज्यादा मौसमी बदलावों के प्रभाव की शिकार हो रही है। विडंबना यह है कि हमने शरीर की जीवनी शक्ति कृत्रिम शक्तिवर्धक पदार्थों व रासायनिक दवाओं में तलाशनी शुरू कर दी है।
वैसे सर्वमान्य बात यह है कि हमारे सेहतमंद रहने का सिर्फ और सिर्फ एक ही उपाय है कि हम जितना प्रकृति के करीब रहेंगे, अपने आसपास पैदा होने वाले फल, सब्जी व अनाज का उपयोग करेंगे, उतना स्वस्थ होंगे। हर शहर व कस्बे की भौगोलिकता व हवा-पानी के अनुसार जिन खाद्यान्न व फलों को खाने की संस्तुति हमारे पूर्वजों ने की थी, उसका सीधा संबंध मौसम के बदलाव के दौरान हमारे स्वास्थ्य की रक्षा से जुड़ा है।