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‘हेल्थ फ़ूड’ के नाम पर हमें क्या खिलाया जा रहा है?


*रजनीश कपूर

आधुनिक जीवन की भाग-दौड़ में हम अपने भोजन पर उतना ध्यान नहीं देते जितना हमें स्वस्थ रहने के लिए देना
चाहिए। इसीलिए आए दिन हमारे शरीर में कोई-न-कोई दिक़्क़त उत्पन्न होती रहती है। रोज़मर्रा के खाने में पौष्टिक
तत्वों की कमी के कारण अक्सर बीमार पड़ने पर डॉक्टर भी हमें ताज़ी और शुद्ध चीज़ें खाने की ही सलाह देते हैं।
इसके साथ हमारी डाइट को ‘हेल्थ फ़ूड’ पर आधारित होने कि भी सलाह देते हैं। अपनी सेहत की चिंता करते हुए
हम बाज़ार में ‘हेल्थ फ़ूड’ के नाम पर मिलने वाली वस्तुएँ ख़रीदने की होड़ में लग जाते हैं। परंतु यहाँ सवाल उठता
है कि क्या ‘हेल्थ फ़ूड’ के नाम पर बिकने वाले डिब्बा बंद या सील बंद उत्पादन वास्तव में हमारे शरीर के लिए
‘हेल्थी’ हैं?
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादनों ने बाज़ार में एक ऐसा मायाजाल बिछाया है जिसके शिकंजे में हम बड़ी आसानी
से फँस जाते हैं। यह कंपनियाँ अपने उत्पादनों को ‘हेल्थ फ़ूड’ का जामा ओढ़ कर उपभोक्ताओं को इसकी लत लगाने
में कामयाब हो जाते हैं। आम लोग भी इनके मार्केटिंग और आकर्षक विज्ञापन के झाँसे में बहुत आसानी से आ जाते
हैं। बिना यह सोचे-समझे कि क्या इन ‘हेल्थ फूड्स’ में वो सभी पौष्टिक तत्व सही मात्रा में हैं, जो हमारे शरीर के
लिए ज़रूरी हैं? क्या हमें जिन तत्वों का परहेज़ करना चाहिए वो इन ‘हेल्थ फूड्स’ में हैं? क्या बाज़ार में अपने
प्रतिद्वंदी से आगे निकलने की होड़ में ये कंपनियाँ जनता को ‘जंक फ़ूड’ की आदत डाल रही हैं? ऐसे उत्पादनों का
सेवन करने से हमारी सेहत बेहतर होने के बजाए और ख़राब हो जाती है।
सबसे पहले बात करते हैं रोज़मर्रा के खाने में इस्तेमाल होने वाली ऐसी वस्तु की जो आमतौर पर हर घर में पाई
जाती है। आज हर घर में सुबह के नाश्ते में ‘ब्राउन ब्रेड’ का चलन बढ़ गया है। विज्ञापनों के कारण इसे ‘व्हाइट ब्रेड’
का एक विकल्प कहा जाने लगा है। जैसा कि इसके नाम से ही जाना जाता है, यह ‘ब्राउन’ है यानी कि यह मैदे से
नहीं बल्कि आटे से बनी है। परंतु असल में आप यदि इसका पैकेट देखें तो इसमें आपको कभी भी 100 प्रतिशत आटा
नहीं मिलेगा। इसमें आपको आटे के साथ-साथ काफ़ी मात्रा में मैदा, चीनी, नामक, वैजिटेबल आयल और प्रेज़र्वेटिव
भी मिलेंगे। यानि दावे से उलट यह आटा ब्रेड वास्तव में 100 प्रतिशत आटे से नहीं बनी। मैदे और चीनी के नुक़सान
तो सभी को पता हैं। यह आपके शरीर में वज़न बढ़ाने का काम करते हैं। मैदा खाने से क़ब्ज़ की दिक़्क़त भी होती है।
उसी तरह प्रेज़र्वेटिव खाने से शरीर में कैंसर जैसे रोग होने का ख़तरा भी बढ़ जाता है। तो फिर यह हमारे शरीर के
लिए हैल्थी कैसे हुई?
आजकल आपने यह भी देखा होगा कि कई उत्पादों पर ‘फैट फ्री या लो फैट’ का ठप्पा लगा होता है। ऐसे कई
बिस्किट, स्नैक्स और अन्य उत्पादन बाज़ार में हैं जो ‘फैट फ्री या लो फैट’ होने का दावा करते हैं। ‘फैट फ्री या लो
फैट’ के लालच में हम इन उत्पादों के प्रति आकर्षित हो जाते हैं और इनके आदि हो जाते हैं। परंतु क्या आपको पता
है कि ऐसे ज़्यादातर उत्पादों में साधारण मात्रा से कहीं अधिक मात्रा में शुगर यानी चीनी का प्रयोग किया जाता है।
इसके साथ ही इनमें ‘फैट’ का विकल्प देने के लिए केमिकल द्वारा प्रोसेस की गये तत्व भी डाले जाते हैं। इन केमिकल
तत्वों का हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है। जहां तक हो सके हमें इन चीज़ों से बचना चाहिये।
आजकल के युवा वर्ग में एक नये पेय की माँग बढ़ती जा रही है और वो है ‘एनर्जी ड्रिंक’। आकर्षक विज्ञापन की आढ़
में युवाओं को ऐसे ‘एनर्जी ड्रिंक’ का आदि बनाया जा रहा है। कैफ़ीन होने के कारण, इन्हें पीने से हमें कुछ क्षण के
लिये ताज़गी का एहसास होता है। इसमें अधिक मात्रा में चीनी के साथ-साथ अन्य कैमिकल भी होते हैं जो हमारे
शरीर के लिए नुक़सानदेह होते हैं। साथ ही में इन ‘एनर्जी ड्रिंक’ में ‘हाई फ़्रक्टोज़ कॉर्न सिरप’ का प्रयोग भी होता है
जो हमारे शरीर में बहुत तेज़ी के साथ फैट या चर्बी को पैदा करता है।

इसी तरह बाज़ार में आजकल ‘प्रोटीन बार व प्रोटीन शेक’ की माँग भी बढ़ने लग गई है। जैसा कि नाम से पता लग
गया होगा ऐसे उत्पादन आपको प्रोटीन का विकल्प होने का दावा करते हैं। परंतु क्या आपको पता है कि यदि आप
शुद्ध और पौष्टिक भोजन पाएँ तो आपको अतिरिक्त प्रोटीन कि आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। अधिक मात्रा में प्रोटीन
लेना भी हमारी सेहत के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। अधिक प्रोटीन केवल ज़्यादा खेल-कूद करने वाले या
वेट लिफ़्टिंग करने वालों को किसी विशेषज्ञ की सलाह पर ही लेना चाहिए। आम इंसान को नहीं।
आपको याद होगा कि कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन में हम मजबूरन घर का ख़ाना खा रहे थे। काफ़ी समय तक
घर बना शुद्ध और सात्विक भोजन पाने से हमारा शरीर स्वस्थ रहने लग गया था। कोरोना के डर से हम किसी भी
बाज़ारू वस्तु का सेवन नहीं कर रहे थे, केवल घर का बना भोजन ही खा रहे थे। यदि किसी को बाज़ार के बने
भोजन या नाश्ते की तलब उठती थी तो वो भी घर पर ही बनाया जाता था। ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसी महामारी
दोबारा न आए। परंतु जिस तरह कोरोना ने हमें घर पर बने ख़ाना खाने को मजबूर किया, वो एक वरदान साबित
हुआ। इसलिए हमें घर का बना पौष्टिक भोजन ही पाना चाहिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मायाजाल में नहीं फँसना
चाहिए।
*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं

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