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भरोसा रखें कि आप सफलता का रास्ता ढूंढ लेंगे


– ललित गर्ग –

आप आज जहां हैं, जाहिर है कि अपने काम करने के खास तरीके के कारण हैं। आपका स्वास्थ्य, रुपये-पैसे की स्थिति, रिश्ते और करियर वगैरह सब, आपकी कार्यप्रणाली और निर्णयों का नतीजा हैं। ऐसे में महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि आप जहां हैं, क्या उस पड़ाव पर खुश हैं? अगर आप यूं ही अपनी जिंदगी बिताते रहते हैं, तो क्या नतीजों से आप खुद को संतुष्ट महसूस करेंगे? अगर उत्तर में किंतु, परंतु आता है, तो कुछ बदलाव करने एवं जीवन को सकारात्मक सोच एवं दिशाएं देने की जरूरत का वक्त आ गया है। आज के समय में यह बहुत गंभीर मसला है कि निराशा और अवसाद में डूबे लोग इसी सकारात्मकता और ऊर्जा की तलाश में यहां-वहां फिर रहे हैं। ऐसे में बड़े पैमाने पर सकारात्मकता पढ़ाने वालों की जरूरत और भरमार है, पर इनमें से अधिकतर की सबसे बड़ी समस्या है कि वे चीजों को सतही बनाकर पेश करते हैं। सकारात्मकता का अर्थ है- अपनी योग्यता और कार्य करने की क्षमता पर विश्वास। यदि आप किसी कार्य के लिए अयोग्य हों तो आप उस काम को लेकर तब तक सकारात्मक नहीं हो सकते, जब तक कि आप उस काम को करने की योग्यता नहीं हासिल कर लेते। हां, यह बात जरूर है कि यदि आप किसी कार्य में अयोग्य हैं तो अपने को कमजोर मान निराशा या अवसाद में डूबने की जरूरत नहीं है। भरोसा रखें कि आप सकारात्मक रास्ता ढूंढ़ जीवन को सार्थक कर लेंगे।
दुनिया में कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता है। दुनिया का कोई भी कार्य महान नहीं होता, बल्कि महान लोगों द्वारा किए गए कार्य महान बन जाते हैं। कोई कह सकता था कि नर्स होना महत्ती गर्व की बात नहीं है, पर मदर टेरेसा के कार्यों ने उन्हें दुनिया के महानतम लोगों की श्रेणी में खड़ा कर दिया। अंग्रेजों को अहिंसा के माध्यम से घुटने टेकने पर मजबूर करने वाली गांधी अपनी युवावस्था में जब पहली बार कोर्ट में सूट-बूट पहनकर खड़े हुए तो उनके पैर कांपने लगे, जज के सामने उनकी आवाज तक नहीं निकली और वे इतना डर गए कि कोर्ट से भाग निकले। बाद में उन्होंने खुद को इस तरह निखारा कि करोड़ों लोगों के दिलों पर राज किया।
कभी ऐसे भी लोगों को हम देखते हैं जो उम्र से युवा हैं पर चेहरा बुझा-बुझा है। न कुछ उनमें जोश है न होश। अपने ही विचारों में खोए-खोए—, निष्क्रिय ओर खाली-खाली से, निराश और नकारात्मक तथा ऊर्जा विहीन—। हाँ सचमुच ऐसे लोग पूरी नींद लेने के बावजूद सुबह उठने पर खुद को थका महसूस करते हैं, कार्य के प्रति उनमें उत्साह नहीं होता। ऊर्जा का स्तर उनमें गिरावट पर होता है। क्यों होता है ऐसा? कभी महसूस किया आपने? यह सब हमारी शारीरिक स्वस्थता के साथ-साथ मानसिक स्थिति का और विचारों का एक प्रतिबिंब है। जब कभी आप चिंतातुर होते हैं तो ऊर्जा का स्तर गिरने लग जाता है। उस समय जो अनुभूति होती है, वह है-शरीर में थकावट, कुछ भी करने के प्रति अनिच्छा और अनुत्साह—। चिंता या तनाव जितने ज्यादा उग्र होते हैं, उतनी ही इन सब स्थितियों में तेजी आती है, किसी काम में तब मन नहीं लगता।
दूषित और दमघोंटू वातावरण में हर आदमी अपने आपको टूटा-टूटा सा अनुभव कर रहा है। उसकी धमनियों में कुत्सित विचारों का रक्त संचरित हो रहा है। कोशिकाएँ ईर्ष्या और घृणा के धुएं से जल रही हैं। फेफडे़ संयम के बिना शुद्ध ऑक्सीजन नहीं ले पा रहें है, कलह का दावानल पोर-पोर को जला रहा है, ऐसी स्थिति में इंसान का जीना समस्या है। लेकिन वह कैसे जीए? भागम-भाग, तनाव एवं घटनाबहुल आज के इस युग में सकारात्मक होना, ऊर्जावान होना इसके लिये एक बेहतरीन बात है और इसी के माध्यम से मानव जीवन ने ऊंचाइयों को छुआ है। यह सकारात्मकता एवं ऊर्जस्विलता ही है, जिसने आम इंसानों को ऐतिहासिक पुरुषों के रूप में महानता प्रदान की है। कई बार आपको ऐसा लगता होगा कि आप ऊर्जा से भरे हुए और परिपूर्ण है। आपका घट ऊर्जा से छलछला रहा है और उस समय आपके चेहरे पर एक विशिष्ट आभा होती है, आँखों में चमक होती है, मन में प्रसन्नता ओर हृदय में होती है कुछ कर गुजरने की तमन्ना।
अपनी ऊर्जा को सकारात्मक रूप देने और उसे बढाने के लिए आप इस तथ्य को अपने मन मस्तिष्क में बिठा लें कि सामान्यतः मनुष्य जो कुछ कर रहा है वह उसकी क्षमता से बहुत कम है। जैन धर्म में इस बात पर विशेष बल दिया गया कि मनुष्य अपने इसी शरीर में सर्वज्ञ बन सकता है और महानता का वरण कर सकता है। कुछ अन्य दार्शनिक इस विचार से असहमत रहे हैं। उनका कहना था कि हाड़ मांस के इस शरीर से मनुष्य सर्वज्ञ जैसी दिव्यता की स्थिति को प्राप्त कर ही नहीं सकता। पर जैन आचार्यों ने महावीर वाणी के आधार इस बात को दृढ़ता के साथ और सही ढ़ंग से प्रस्तुत किया कि इस ह्यूमन बॉडी में जो विराट शक्तियाँ भी छिपी हुई हैं, उनका सही उपयोग किया जाए तो निःसंदेह मनुष्य सर्वज्ञता और महानता जैसी स्थिति को प्राप्त कर सकता है।
चीजों को सही परिप्रेक्ष्य में आंकना और सामर्थ्य व परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जीवन जीना ही सकारात्मकता है। यदि परिस्थितियां हमारे हित में नहीं है तो उन्हें अपने हित में करने के लिए जूझना। दुनिया में ऐसा कोई कार्य नहीं है, जिसे इंसान न कर सके। दिल में कामों के प्रति जुनून और लगन होनी चाहिए। सकारात्मकता आत्मविश्वास से ही उपजती है और उसमें इस बात का भी बोध होता है कि दुनिया बहुत महान है और यहां विविधताओं और योग्यताओं का भंडार है। जितनी ज्यादा चाह है, उससे ज्यादा मेहनत करने की क्षमता ही हमें सकारात्मक बना सकती है। बुद्ध ने कहा कि अंतिम सत्य कुछ नहीं, कुछ भी नहीं है, जो अजर-अमर हो। कुछ भी नहीं, जो बदला न जा सके। एक महान विद्वान ने कहा था कि जब हम स्वार्थ से उठकर अपने समय को देखते हुए दूसरों के लिए कुछ करने को तैयार होते हैं तो हम सकारात्मक हो जाते हैं।
 हिन्दू धर्म ग्रंथों की मानें तो भगीरथ नाम के एक इंसान ने कठोर तपस्या के माध्यम से गंगा को पृथ्वी पर आने के लिए मजबूर कर दिया था। सच है कि आपके द्वारा किया गया कोई कार्य फल न दे, यह नामुमकिन है। सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आप काम को कैसे करते हैं। माना कि आप बहुत अच्छे ड्राइवर हैं, पर क्या आप आंख बंद करके गाड़ी चला सकते हैं। जीवन भी ऐसा ही है- गाड़ी चलाने जैसा, कभी तेज चलता है तो कभी धीरे, कभी क्लच पकड़ना पड़ता है तो कभी गियर बदलना पड़ता है। कभी गाड़ी ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरती है तो कभी बंद पड़ जाती है और उसे दुरुस्त करने के लिए गैराज भेजना होता है। जिन्दगी भी ऐसी ही होती है जिसे सकारात्मकता रूपी गैराज की जरूरत पड़ती है। महात्मा गांधी ने कहा कि जब आप दुखी हों तो अपने से नीचे देखो और फिर सोचो कि आप सुखी हो या दुखी। यहां देखने का नजरिया महत्वपूर्ण होगा। नीचे देखते समय अपनी सुविधाओं को देखो और ऊपर देखते हुए उनके लिए किए गए श्रम को समझने का प्रयास करो। ऊर्जा एवं सकारात्मकता से समृद्ध होकर आप जीवन को आनंदित बना सकते हैं। समाज और राष्ट्र के लिए भी ज्यादा उपयोगी साबित हो सकते है। सदा उत्साहित रहकर खुद को ऊर्जा से भरपूर रखें, इससे आपके व्यक्तित्व को नई पहचान मिलेगी। आपका आत्मविश्वास बढेगा, जीवन में सफलता की सीढ़ियों पर बहुत जल्दी आप आरोहण कर सकेंगे।

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