अंग्रेजों के अत्याचारों पर ये खामोशी क्यों ?
विनीत नारायण
पिछले कुछ वर्षों से मुसलमानों को लेकर दुनिया के तमाम देशों में चिंता काफ़ी बढ़ गई है। हर देश अपने
तरीक़े से मुसलमानों की धर्मांधता से निपटने के तरीक़े अपना रहा है। खबरों के मुताबिक़ चीन इस मामले
में बहुत आगे बढ़ गया है। वैसे भी साम्यवादी देश होने के कारण चीन की सरकार धर्म को हेय दृष्टि से
देखती है। पर मुसलमानों के प्रति उसका रवैया कुछ ज़्यादा ही कड़ा और आक्रामक है। इसी तरह यूरोप के
देश जैसे फ़्रांस, जर्मनी, हॉलैंड और इटली भी मुसलमानों के कट्टरपंथी रवैए के विरुद्ध कड़ा रुख़ अपना रहे
हैं। इधर भारत में मुसलमानों को लेकर कुछ ज़्यादा ही आक्रामक तेवर अपनाए जा रहे हैं। इस विषय पर
मैंने पहले भी कई बार लिखा है। मैं अपने सनातन धर्म के प्रति आस्थावान हूँ। पर यह भी मानता हूँ कि
धर्मांधता और कट्टरपंथी रवैया, चाहे किसी भी धर्म का हो, पूरे समाज के लिए घातक होता है।
जहां तक भारत में हिंदू – मुसलमानों के आपसी रिश्तों की बात है, तो ये जानना बेहद ज़रूरी है कि हिंदू
धर्म का और हमारे देश की अर्थ व्यवस्था का जितना नुक़सान 190 वर्षों के शासन काल में अंग्रेजों ने किया
उसका पासंग भी 800 साल के शासन में मुसलमान शासकों ने नहीं किया। मुसलमान शासकों ने जो भी
जुल्म ढाए हों, हमारे सनातनी संस्कारों को समाप्त नहीं कर पाए। जबकि अंग्रेजों ने मैकाले की शिक्षा
प्रणाली थोप कर हर भारतीय के मन में सनातनी संस्कारों के प्रति इतनी हीन भावना भर दी कि हम
आजतक उससे उबर नहीं पाए। मैं गत तीस वर्षों से देश-विदेश में धोती, कुर्ता, अंगवस्त्रम पहनता हूँ और
वैष्णव तिलक भी धारण करता हूँ, तो अपने को हिन्दुवादी बताने वाले भी मुझे पौंगापंथी समझते हैं। यह
एक ऐतिहासिक तथ्य है कि मुग़ल काल में गौ वध पर फाँसी तक की सज़ा थी, लेकिन अंग्रेजों ने भारत में
गौ मांस के कारोबार को खूब बढ़ावा दिया और ग़ैर सवर्ण जातियों में सुअर के मांस को प्रोत्साहित किया।
इससे अंग्रेज हुक्मरानों के उन दिनों मांस खाने के शौक़ को तो पूरा किया ही, बड़ी चालाकी से उन्होंने
हिंदू-मुसलमानों के बीच एक गहरी खाई भी पैदा कर दी।
जहां तक मुसलमान शासकों के हिंदू और सिक्खों के प्रति हिंसक अत्याचारों का प्रश्न है तो हमें यह नहीं
भूलना चाहिए कि राणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और रानी लक्ष्मीबाई जैसे हिंदू राजाओं के सेनापति
मुसलमान ही थे, जो उनकी तरफ़ से मुग़लों और अंग्रेजों की फ़ौजों से लड़े। उधर अकबर, जहांगीर और
औरंगज़ेब व दक्षिण में टीपू सुल्तान जैसे मुसलमान शासकों के सेनापति हिंदू थे, जो हिंदू राजाओं से लड़े।
यानी मध्य युग के उस दौर में हिंदू-मुसलमानो के बीच पारस्परिक विश्वास का रिश्ता था। अगर आप
यूट्यूब पर आजकल दिखाई जा रही 1947 के विभाजन की आप बीती कहानियाँ सुने तो आपको आश्चर्य
होगा की भारत और पाकिस्तान के विभाजन पूर्व पंजाब में रहने वाले हिंदू और मुसलमानों के पारस्परिक
रिश्ते कितने मधुर थे। ये खाई और घृणा अंग्रेजों ने अपनी ‘बाँटो और राज करो’ नीति के तहत जानबूझकर
बड़ी कुटिलता से पैदा की। जिसकी परिणिति अंततः भारत के विभाजन से हुई। जिसका दंश दोनो देशों के
लोग आजतक भोग रहे हैं।
आरएसएस के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत जी लाख हिंदू-मुसलमानों का डीएनए एक ही बताएँ, पर
आरएसएस व भाजपा के कार्यकर्ता और इनकी आईटी सेल आजकल रात दिन हिंदुओं पर हुए मुसलमानों
के अत्याचार गिनाते हैं। आश्चर्य है कि अंग्रेजों के हम भारतीयों पर दो सौ वर्षों तक लगातार हुए राक्षसी
अत्याचारों और भारत की अकूत दौलत की जो लूट अंग्रेजों ने करके भारत को कंगाल कर दिया, उसका ये
लोग कभी ज़िक्र तक नहीं करते, क्या आपने कभी सोचा ऐसा क्यों है?
आज हर उस व्यक्ति को जो स्वयं को देशभक्त मानता है इतिहासकार श्री सुन्दरलाल की शोधपूर्ण पुस्तक
‘भारत में अंग्रेज़ी राज’ अवश्य पढ़नी चाहिये, जिसे 1928 मार्च में प्रकाशित होने के चार दिन बाद ही
अंग्रेज हुकूमत ने प्रतिबंधित कर दिया था और इसकी चार दिन में बिक चुकी 1700 प्रतियों को लोगों के
घरों पर छापे डाल-डाल कर उनसे छीन लिया था। क्योंकि इस पुस्तक में अंग्रेजों के अत्याचारों की रोंगटे
खड़े करने वाली हक़ीक़त बयान की गयी थी। जिसे पढ़कर हर हिंदुस्तानी का खून खौल जाता था। अंग्रेज
सरकार ने पुस्तक के प्रकाशक, विक्रेताओं, ग्राहकों और डाकखानों पर ज़बरदस्त छापामारी कर इन पुस्तकों
को छीनना शुरू कर दिया। देश के बड़े नेताओं ने इसके विरुद्ध आवाज़ उठाई और लोगों से किसी भी
क़ीमत पर ये किताब अंग्रेजों को न देने की अपील की। इस तरह अंग्रेज पूरी वसूली नहीं कर पाए। इस
हिला देने वाली किताब की काफ़ी प्रतियाँ पाठकों के गुप्त पुस्तकालयों में सुरक्षित रख ली गईं।
चूँकि मेरे नाना संयुक्त प्रांत (आज का उत्तर प्रदेश) की विधान परिषद के उच्च अधिकारी थे, इसलिए उन्हें
भी अपने अंग्रेज हुक्मरानों का डर था। उन्होंने यह किताब लखनऊ की अपनी कोठी के तहखाने में छिपा
कर रखी थी। मेरी माँ और उनके भाई-बहन बारी-बारी से तहखाने में जाकर इसे पढ़ते थे। जितना पढ़ते
उतनी उनके मन में अंग्रेजों के प्रति घृणा और आक्रोश बढ़ता जाता था। ये बात बीसवीं सदी के चौथे दशक
की है जब देश में कई जगह कांग्रेस ने सरकार चलाना स्वीकार कर लिया था। क्योंकि तब इस पुस्तक पर
से प्रतिबंध हटा लिया गया था और इसे दोबारा प्रकाशित किया गया था। आज़ादी के बाद भारत सरकार
के ‘नैशनल बुक ट्रस्ट’ ने इसे दो खंडों में पुनः प्रकाशित किया। तब से यह पुस्तक ‘भारत में अंग्रेज़ी राज’
बेहद लोकप्रिय है और इसकी हज़ारों प्रतियाँ बिक चुकी हैं। पुस्तक ऑनलाइन भी उपलब्ध है। इस पुस्तक
को हर देश भक्त भारतीय को अवश्य पढ़ना चाहिए तभी सच्चाई का पता चलेगा वरना हम निहित स्वार्थों
के प्रचार तंत्र के शिकार बन कर अपना विनाश स्वयं कर बैठेंगे।
जहां तक बात मुसलमानों के कट्टरपंथी होने की है तो मेरा और मेरे जैसे लाखों भारतीयों का यह मानना है
कि जिस तरह मुसलमानों में कुछ फ़ीसदी कट्टरपंथी हैं वैसे ही हिंदुओं में भी हैं। जिनका सनातन धर्मों के
मूल्यों, वैदिक साहित्य और हिंदू जीवन पद्धति में कोई आस्था नहीं है। कई बार तो ये लोग धर्म की ध्वजा
उठा कर सनातन धर्म का भारी नुक़सान भी कर देते हैं। जिसके अनेक उदाहरण हैं। इनसे हमें बचना होगा।
दूसरी तरफ़ मुसलमानों को भी इंडोनेशिया जैसे देश के मुसलमानों से सीखना होगा कि भारत में कैसे रहा
जाए? इंडोनेशिया के मुसलमान इस्लाम को मानते हुए भी अपने हिंदू इतिहास के प्रति उतना ही सम्मान
रखते हैं।