8 मार्च – अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
नारी सशक्तिकरण: भ्रम और सत्य
यहां विचारणीय प्रश्न यह है कि यदि क्रिया-प्रतिक्रिया को आधार बनाकर, नारी सशक्तिकरण की योजना बनाई जाये, तो वह कितनी सशक्त होगी ? महिलाओं के साथ अत्याचार, असमानता और यौन हिंसा के कारण क्या सचमुच निरक्षता, दहेज और कानून की कमजोरी ही है ? समाधान पाने के लिए प्रश्न कीजिए कि हम क्या करें ? भारत में साक्षरों की संख्या बढ़ायें, दहेज के दानव का कद घटायें, अवसर बढ़ाने के लिए नारी आरक्षण बढ़ायें, विभेद और नारी हिंसा रोकने के लिए नये कानून बनायें, सजा बढ़ायें या कुछ और करें ?
यदि इन कदमों से बेटा-बेटी अनुपात का संतुलन सध सके, बेटी हिंसा घट सके, हमारी बेटियां सशक्त हो सकें, तो हम निश्चित तौर पर ये करें। किंतु आंकङे कुछ और कह रहे हैं और हम कुछ और। आंकङे कह रहे हैं कि यह हमारे स्वप्न का मार्ग हो सकता है, किन्तु सत्य इससे भिन्न है।
सत्य क्या है ?
सशक्तिकरण तो शिशु के गर्भ में आने के साथ ही शुरू हो जाने वाली प्रक्रिया है न. बाल्यावस्था, यौवन और वृद्धावस्था तो अलग- अलग चरण मात्र ही हैं न.
मन में जिज्ञासा हो, समय हो तो निवेदन है कि कृपया 2016 प्रारम्भ में कुरुक्षेत्र हिन्दी पत्रिका में प्रकाशित मेरा एक लेख पढें .
विचार करें कि 2024 में नारी सशक्तिकरण की प्रक्रिया में हम कितना आगे बढ़े और अपने निष्कर्ष से मुझे भी अवगत कराएं.
सादर-साभार
आपका अपना
अरुण तिवारी
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श्वेत-श्याम दुई पाटन बीच
बिटिया दीप तो कैसे….