पांचों राज्यों में चुनावी भविष्यवाणी करने में कितने यूट्यूबर्स लुढ़क गये थे। ‘हीरो से जोकर बन जाने की कहावत भी दोहराई गई । जिन्होंने प्रोफेशनल पत्रकारिता जैसे क्षेत्र में स्वयं को सदी का महानायक मान लिया था, अब मुंह चुराये फिर रहे हैं। फ़िर भी, कुछ ने देह झाड़कर स्क्रीन को फेस करना शुरू कर दिया है। नहीं करेंगे, तो डॉलर का मिलना बंद हो जाएगा।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि जो यूट्यूबर, स्तंभ लेखक और पत्रकार जिस एक दल के लिए ‘कसीदाकारी’ कर रहे थे, उनमें से बहुतों ने परिणाम के तुरंत बाद, उस दल की रणनीति को ही कोसना शुरू कर दिया था। बहस ख़ुद उनके द्वारा सतही सूचनाओं के खिलवाड़ पर नहीं हो रही है। जो गोदी में नहीं बैठे हैं, वो क्या कुछ परोसते रहे? इस सवाल पर बहस होना चाहिए। लोकसभा चुनाव तक यदि उसी ढर्रे पर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर सूचनाओं को परोसा गया,तो जो लोग सेटेलाइट टेलीविज़न को छोड़कर मोबाइल टीवी पर भरोसा करने लगे थे, उनका क्या होगा?
यह आम चर्चा है कि 2024 में आम चुनाव के बाद सरकार ऐसे क़ानून लाने की तैयारी में है, जो सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को खुलकर खेलने से रोकेगी? नए आईटी नियम को फरवरी 2021 में अधिसूचित किया गया था, जिसमें सोशल मीडिया कंटेंट हटाने के अधिकार सहित सरकार को सेंसरशिप की अभूतपूर्व शक्तियां देने के लिए आलोचना की गई थी। सरकार ने इसकी परवाह न करते हुए दिसंबर 2021 में 78 यूट्यूब चैनलों को ब्लॉक करने का आदेश दिया था। वजह राष्ट्रीय सुरक्षा, देश की संप्रभुता और अखंडता पर ख़तरा बताया गया। केंद्र सरकार ने 5 अप्रैल 2023 को भी 22 यूट्यूब चैनल ब्लॉक किये थे। उन पर फर्जी खबरें फैलाने का आरोप लगाया, जो राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेशी संबंधों और सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित कर सकती हैं। अप्रैल 2023 में जो 22 यूट्यूबर ब्लॉक किये गये, उनमें चार के अकाउंट पाकिस्तान से ऑपरेट हो रहे थे। स्टैटिस्टा के अनुसार, साल 2015 से 2022 के बीच 55 हज़ार से अधिक वेबसाइट्स भारत सरकार ने ब्लॉक करवाई, जिनमें यूट्यूब चैनल भी हैं। मिनिस्ट्रिी ऑफ इलेक्ट्रोनिक्स एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलाजी और सूचना प्रसारण मंत्रालय जून 2024 के बाद सोशल मीडिया को ज़िम्मेदार बनाने के लिए नये सिरे से क़ानून बनाने का प्रस्ताव संसद में रखेगी, इसके प्रारूप पर काम हो रहा है।
फरवरी 2021 तक लगभग 900 सेटेलाइट चैनल भारत में थे। आज उनमें से 200 चैनल भी सुचारू रूप से चल नहीं पा रहे हैं। सफेद हाथी बन चुके इन चैनलों के बहुतेरे दर्शक मोबाइल टीवी पर शिफ्ट हो चुके हैं। सेटेलाइट चैनल वाले तो ख़ुद का सोशल मीडिया प्लेटफार्म तैयार कर दर्शकों को बटोरने वाली प्रतिस्पर्धा में उतर गये। बावज़ूद उसके, देशभर में एक नया व्यूअर तैयार हुआ, जिसकी बाढ़ सोशल मीडिया पर आ चुकी थी। साल 2022 में यूट्यूब ने सूचनाएं साझा की, जिससे पता चला कि भारत में एक लाख से अधिक व्यूअर वाले 40 हज़ार चैनल चल रहे हैं। यानी सेटेलाइट चैनलों से कई गुना अधिक प्लेयर मीडिया मार्केट में उतर चुके थे।
ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की रिपोर्ट का हवाला देते हुए यूट्यूब ने बयान दिया कि भारतीय अर्थव्यवस्था में इस प्लेटफार्म ने 6 हज़ार 800 करोड़ रुपये का योगदान साल 2020 में दिया था। अगले तीन साल का ताज़ा अपडेट अभी मिला नहीं, लेकिन निश्चित रूप से 20 से 25 प्रतिशत रेवेन्यू का इज़ाफा यूट्यूब चैनलों के माध्यम से हुआ होगा। ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई कि इससे 6 लाख 83 हज़ार 900 फुल टाइम जॉब का सृजन हुआ था। यूट्यूब अपने फंड, ‘शार्ट्स पार्टनर्स प्रोग्राम’ के ज़रिये वितरित करती है। उसके अधिकारी बताते हैं कि जुलाई 2021 तक भारत में 40 फीसदी ऐसे भी यूट्यूबर्स थे, जो ‘शार्ट्स पार्टनर्स प्रोग्राम’ का हिस्सा भी नहीं थे, फिर भी उन्हें पैसे ट्रांसफर किये गये।
कोविड के काल में मोबाइल टीवी की व्यूअरशिप में बूम आया था। उसके बाद व्यूअर्स को स्मार्ट फोन से कार्यक्रमों को देखने की ऐसी लत लगी, जो किसी वायरस का शिकार होने से कम नहीं था। ऑक्सफोर्ड रिपोर्ट के लिए सर्वेक्षण किए गए उपयोगकर्ताओं में 18 वर्ष से अधिक आयु के 94 प्रतिशत छात्रों ने कहा था कि वे अपने व्यक्तिगत अध्ययन के पूरक के रूप में या फ़िर असाइनमेंट में मदद के लिए यूट्यूब का उपयोग करते हैं। वहीं 81 फीसदी शिक्षकों ने भी स्वीकार किया था कि इस प्लेटफार्म के अपने फायदे हैं। जबकि 13-17 वर्ष की आयु के बच्चों के 91 प्रतिशत पैरेंट्स का कहना था कि वे अपने बच्चे के असाइनमेंट के लिए गूगल जैसे प्लेटफार्म का उपयोग करते हैं।
अब सवाल यह है कि 2024 का चुनाव क्या पॉलिटिकल इंफ्लूएंसर के दम पर लड़ेंगे? ये वो लोग हैं, जो सोशल मीडिया के बादशाह बताये जाते हैं। इनकी एक टिप्पणी वायरल होती है, समाज का बड़ा हिस्सा दिनभर ट्रोलबाज़ी में लगा रहता है। चाय के ठीये से लेकर वीवीआईपी के ड्राइंगरूम तक इनके कमेंट पर सहमति-असहमतियों का दौर तब तक चलता है, जबतक कि कोई दूसरा योद्धा मैदान में नुमायां न हो जाए। आपको अपनी राजनीति चमकानी है, ऐसे इंफ्लूएंसर को आगे रखिये, कोई प्रोडक्ट पॉपुलर करना है, तो भी रखिये।इंफ्लूएंसर आज की ब्रांड मार्केटिंग का अहम विषय बन चुके हैं। आप किसी विज्ञापन एजेंसी से या सोशल मीडिया प्रोमोटर से बात करें, वह कुछ मशहूर चेहरों को सामने रखकर मोल-भाव करेगा।