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जुबैर, तुम्हारी गिरफ्तारी गलत है, पर तुम उससे भी ज़्यादा!

जुबैर, तुम्हारी गिरफ्तारी गलत है, पर तुम उससे भी ज़्यादा!
नीरज बधवार
ऑल्ट न्यूज़ के को-फाउंडर मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ्तारी हो गई। उन्हें 2018 में धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले एक पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के बाद एक वर्ग इसे लोकतंत्र पर हमला बता रहा है। इसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन देख रहा है। पर सवाल ये है कि क्या वाकई ऐसा है? क्या मोहम्मद जुबैर पूरी तरह निर्दोष हैं? क्या नुपूर शर्मा पर धार्मिक भावनाएं भड़काने वाले जुबैर ने खुद कभी हिंदुओं की भावनाएं नहीं भड़काई? जो लोग जुबैर की गिरफ्तारी को लोकतंत्र की हत्या बता रहे हैं, वो वाकई लोकतंत्र के समर्थक हैं या फिर ये एक Selective Outrage है? आइए एक-एक इन सवालों का जवाब देने की कोशिश करते हैं।
नुपूर शर्मा विवाद से चर्चा में आए
देखिए, पहली बात ये कि मेरा मानना है कि धार्मिक भावनाएं भड़काने जैसे मुद्दे पर किसी की गिरफ्तारी होनी ही नहीं चाहिए। किसी एक ट्वीट या फेसबुक पोस्ट के लिए किसी को गिरफ्तार कर लेना किसी भी परिपक्व लोकतंत्र को शोभा नहीं देता। ये बड़ी ही बचकानी हरकत है। लेकिन सवाल ये है कि अगर मुस्लिम होते हुए आपको हिंदुओं के देवी-देवताओं का मज़ाक उड़ाने का हक है तो क्या इसी तरह का हक हिंदुओं को पैगम्बर साहब के लिए मिलना चाहिए? हिंदू ऐसा करेंगे तो क्या मुसलमान उसे स्वीकार कर लेंगे ? बिल्कुल नहीं। इस्लाम में तो ऐसा करने वाले के लिए मौत की सज़ा है।
और ये इकलौता सवाल ही मोहम्मद ज़ुबैर की नज़र में ही उनकी गिरफ्तारी जायज़ ठहरा देता है। नुपूर शर्मा ने एक टीवी डिबेट में मोहम्मद साहब को लेकर कुछ ऐसी बात की जो तथ्यात्मक तौर पर सही थी लेकिन उनका लहज़ा गलत था, लेकिन इन्हीं ज़ुबैर साहब ने उस चर्चा का क्लिप निकालकर अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट कर दिया। और ये दावा किया कि नुपूर शर्मा पैगम्बर साहब के लिए किस तरह की बातें कर रही हैं। उसके बाद जो हुआ वो फिर पूरी दुनिया ने देखा।
देश के अलग-अलग शहरों में हिंसक प्रदर्शन हुए। ऐसे ही एक प्रदर्शन में रांची में एक बच्चे की जान चली गई। नुपूर शर्मा के खिलाफ दर्जनों फतवे जारी किए गए। उन्हें अंडरग्राउंड होना पड़ा। अरब देशों से भारत को धमकियां मिलने लगीं। वहां रहने वाले लाखों लोगों की नौकरी पर संकट आ गया। उनके काम-धंधों के बहिष्कार की मांग उठने लगी। और ये सब हुआ मोहम्मद जुबैर के उस एक Tweet के बाद।
अब आप कहेंगे कि अरे भाई, इसमें ज़ुबैर की क्या गलती है। उन्होंने तो नुपूर शर्मा के ट्वीट को ही हाइलाइट किया था। तो जैसा मैंने पहले अपने एक ब्लॉग में लिखा था कि ऐसा तो नहीं है कि नुपूर शर्मा ने बिना किसी संदर्भ के आपा खोया। उससे पहले चर्चा में शामिल मौलाना भी लगातार ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग को लेकर आपत्तिजनक बातें करके भड़का रहा था।
इसी तरह की भड़काऊ बातें दर्जनों मुस्लिम स्कॉलर्स एक हफ्ते से कर रहे थे। और इन्हीं सब की प्रतिक्रिया में नुपूर ने वो बात की। मनोविज्ञान भी यही करता है कि जब आप किसी को हर्ट करोगे तो सामने वाला भी ऐसी जली भुनी बात करेगा जिससे आप भी हर्ट हो जाएं। और यही उस दिन हुआ। यहां तो बात तथ्यात्मक भी थी, लेकिन उसका लहज़ा कड़ा था।
यहां तक कि पाकिस्तान टीवी पर एक धर्मगुरु ने भी नुपूर शर्मा का बचाव किया। सऊदी अरब के एक मौलाना ने भी कहा कि नुपूर शर्मा ने कुछ गलत नहीं कहा। पाकिस्तानी धर्मगुरु ने तो यहां तक कहा कि नुपूर ने ये बयान इसलिए दिया क्योंकि सामने बैठा मुस्लिम शख्स भी हिंदुओं की भावनाएं आहत कर रहा था।
अब सवाल ये है कि जो बातें पाकिस्तान धर्मगुरु को समझ आ रही हैं, जो बात सऊदी अब के मौलाना को गलत नहीं लग रही है वो बात ज़ुबैर को (जो कि इस्लाम के वैसे जानकार भी नहीं) इतनी गलत कैसे लग गई कि उन्होंने उसकी क्लिप डालकर नुपूर शर्मा को गिद्धों की भीड़ के हवाले कर दिया? क्या उन्हें नहीं पता था कि जब वो ऐसा ट्वीट करेंगे तो उस पर मुस्लिम समाज में क्या प्रतिक्रिया होगी?
एक तरफ आप दिन-रात इन टीवी बहसों की आलोचना करते हैं। इन बहसों में आने वाले लोगों को तवज्जो न देने की बात करते हैं दूसरी तरफ इन्हीं बहसों में आवेश में कही गई एक बात आपको इतनी महत्वपूर्ण लग गई कि आपने उसकी क्लिप निकालकर पूरी दुनिया में आग लगा दी।
अगर आप में ज़रा सी समझ होती, आप वाकई इन बहसों को वज़न नहीं देते। आपको कथित धार्मिक भावनाओं से ज़्यादा समाज की शांति की परवाह होती, तो आप कभी उस फिज़ूल बहस में की गई बात को मुद्दा बनाकर हिंसा नहीं भड़काते। ये सब बातें शक पैदा करती हैं हैं कि धार्मिक भावनाएं तो मोहम्मद जुबैर के लिए कभी मुद्दा थी नहीं।
धार्मिक भावनाएं वन वे ट्रैफिक नहीं
नुपूर शर्मा विवाद के बाद Twitter पर लोगों ने मोहम्मद जुबैर के ही बहुत सारे पुराने ऐसे फेसबुक पोस्ट शेयर किए जिसमें वो हिंदुओं की भावनाओं का मज़ाक बना रहे थे। इस तरह के पोस्ट जब वायरल होने लगे, तो मोहम्मद जुबैर ने अपना फेसबुक अकाउंट ही डिलीट या डिएक्टिवेट कर दिया।
मतलब जिस शख्स ने कथित तौर पर धार्मिक भावनाएं आहत करने को मुद्दा बनाकर एक औरत की ज़िंदगी नर्क कर दी वो इंसान खुद अरसे से निजी जीवन में दूसरों की धार्मिक भावनाएं आहत कर रहा था। क्या एक पत्रकार, बौद्धिक चिंतक या एक इंसान के नाते भी इससे बड़ा दोगलापन कुछ और हो सकता है?
मैं फिर कहूंगा कि मेरी नज़र में जब तक बात बहुत कड़वी न, माहौल खराब करने की कोई गंभीर कोशिश न हो तब तक किसी की भी इस तरह गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। लेकिन हर इंसान को ये समझना चाहिए कि भावनाएं आहत करने की जिस तरह की छूट मैं अपने लिए चाहता हूं वैसी ही छूट क्या मैं दूसरे को भी देने के लिए तैयार हूं?
आहत भावनाओं का दोगलापन
और एक आखिरी सवाल उन लोगों से जो मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी को लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बता रहे हैं। मै उनसे पूछना चाहता हूं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता क्या सबके लिए है या इस पर सिर्फ खास विचारधारा के लोगों का आरक्षण है।
जिन लोगों ने जुबैर की गिरफ्तारी के बाद एक दिन में दर्जनों ट्वीट कर दिए वो तब कहां थे जब महाराष्ट्र में केतकी चितले नाम की लड़की को शरद पवार पर फेसबुक पोस्ट लिखने के लिए 41 दिनों तक जेल में डाल दिया गया था? वहां तो मामला धार्मिक भावनाएं आहत करने का भी नहीं, राजनीतिक आलोचना करने का था।
इसी तरह निखिल भामरे नाम के एक 22 साल के छात्र को ऐसी पोस्ट के लिए एक महीने तक जेल में डाल दिया गया। इसी कारण वो छात्र अपनी परीक्षा तक नहीं दे पाया। वो भी उस पोस्ट के लिए जिसमें उसने किसी नेता का नाम तक नहीं लिया था लेकिन फिर भी नेता के शार्गिद आहत हो गए। उन्होंने सिर्फ उस पोस्ट के लिए अलग-अलग थानों में उसके खिलाफ 6 मामले दर्ज करा दिए। आप तानाशाही की बात करते हैं, सरकारी गुंडागर्दी का फ्लेवर पूछ रहे थे। ये होती है तानाशाही, ये होती है अभिव्यक्ति की हत्या। वो भी प्वाइंट ब्लैंक!
जुबैर समर्थकों से पूछा जा सकता है कि इन घटनाओं पर चुप रहकर या जानबूझकर नज़रअंदाज़ करते हुए आप जुबैर के मामले में कुछ बोलने का नैतिक हक कैसे पा सकते हैं? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ऐसे आंसू कैसे बहा सकते हैं जिसे देखकर मगरमच्छ भी हीनता का शिकार हो जाए।
और अगर आप रोते हैं, तो आप उतने ही ढोंगी है जितना धार्मिक भावनाओं को आहत करते हए ‘इसने हमारी धार्मिक भावनाएं आहत कर दीं’ बोलने वाला मोहम्मद जुबैर है। इसलिए हम कह सकते हैं कि जुबैर की गिरफ्तारी शायद गलत हो लेकिन मोहम्मद जुबैर उससे भी ज़्यादा गलत था। और उसके हमदर्द बनकर लोकतंत्र की हत्या का रोना रोने वाले उससे भी बड़े मक्कार हैं।
Neeraj Badhwar

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