जनरल बिपिन रावत ने जून 2017 में ये बयान तब दिया था जब वो आर्मी चीफ थे. बिपिन रावत के इस बयान का मतलब था कि भारतीय सेना चीन, पाकिस्तान और आतंकवाद से एक साथ निपटने में सक्षम है. रावत ने ये बयान इसलिए दिया था क्योंकि उन्होंने कहा था कि अगर चीन के साथ संघर्ष की नौबत आई तो पाकिस्तान इसका फायदा उठाने की कोशिश कर सकता है.
बिपिन रावत के इस बयान पर चीन और पाकिस्तान दोनों भड़क गए थे. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपे एक संपादकीय में उस वक्त लिखा गया था कि रावत का बयान दिखाता है कि भारतीय सेना में कितना अहंकार भरा है. रावत का ये बयान इसलिए भी अहम था क्योंकि उस वक्त डोकलाम में भारत और चीन की सेना के बीच गतिरोध चल रहा था.
डोकलाम में गतिरोध के काफी पहले बिपिन रावत ने इस ओर ध्यान दिलाया था कि चीन से निपटने के लिए सेना के मॉडर्नाइजेशन की सख्त जरूरत है. जनरल बिपिन रावत अक्सर कहा करते थे कि सेना को आधुनिक बनाने की जरूरत है और काफी हद तक वो इसमें सफल भी हुए थे. तभी तो उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुख जताते हुए कहा, ‘जनरल बिपिन रावत एक उत्कृष्ट सैनिक थे. एक सच्चे देशभक्त जिन्होंने हमारे सशस्त्र बलों और सुरक्षा तंत्र के आधुनिकीकरण में अहम योगदान दिया. उनके निधन से मुझे गहरा दुख पहुंचा है.’
ये कुछ बातें हैं जो बताती हैं कि बिपिन रावत ढाई मोर्चे की लड़ाई और सेना की आधुनिकता को कितना जोर देते थे. तमिलनाडु के कुन्नूर में बुधवार को हुए प्लेन क्रैश में बिपिन रावत का निधन हो गया. देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ रहे बिपिन रावत देश के दुश्मनों को करारा जवाब देना बखूबी जानते थे.
उनके निधन पर पूर्व सेना प्रमुख जनरल जेजे सिंह ने कहा कि जनरल बिपिन रावत को एक ऐसे सैन्य नेता के तौर पर याद किया जाएगा जिन्होंने सेना के आधुनिकीकरण और तीनों सेनाओं की बीच तालमेल बैठाने का रोडमैप तैयार किया. उन्होंने कहा, ‘मैं उनके काम के लिए उन्हें सलाम करता हूं. उन्हें हमारी सेना के उत्कृष्ट नेताओं में से एक के रूप में हमेशा याद किया जाएगा.’ उन्होंने ये भी कहा कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के रूप में उन्हें कड़े फैसले लेने थे और उन्होंने तीनों सेनाओं के बीच तालमेल बैठाने की कोशिश में बहुत अच्छा काम किया. जनरल जेजे सिंह ने ये भी कहा कि सेना में आधुनिकीकरण जारी रहेगा, क्योंकि उन्होंने उसका रोडमैप पहले ही तैयार कर दिया है.
वहीं, नवंबर 1994 से सितंबर 1997 तक सेना प्रमुख जनरल (रिटायर्ड) शंकर रॉयचौधरी ने न्यूज एजेंसी से कहा कि वो एक सैन्य परिवार से थे और उन्होंने तीनों को साथ लाने के लिए अच्छा काम किया है. शंकर रॉयचौधरी ने कुछ समय के लिए जनरल रावत के पिता लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) एलएस रावत के साथ भी काम किया था. उन्होंने याद करते हुए कहा कि बिपिन रावत बेहद अच्छे कैडेट थे और उन्होंने हमारी उम्मीदों को सही ठहराया.
रणनीति में आक्रामक रहते थे बिपिन रावत
2017 में जनरल बिपिन रावत को उस वक्त आलोचनाओं का सामना करना पड़ा जब उन्होंने मेजर लीतुल गोगोई को सम्मानित किया. मेजर लीतुल गोगोई वो जवान थे जिन्होंने पत्थरबाजी कर रहे एक युवक को अपनी जीप के आगे बांधकर ढाल की तरह इस्तेमाल किया था. अपने इस फैसले का बचाव करते हुए जनरल बिपिन रावत ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘कश्मीर में हमारी सेना जिस तरह के डर्टी वॉर का सामना कर रही है, उससे निपटने के लिए इनोवेटिव तरीके ही जरूरी हैं.’
उन्होंने कहा था, ‘लोग हम पर पत्थर और पेट्रोल बम फेंक रहे हैं. ऐसे में अगर मेरे जवान मुझसे पूछते हैं- सर क्या किया जाए? तो क्या आर्मी चीफ के तौर पर अपनी टीम से ये कहूंगा- इंतजार करो और मर जाओ. मैं तिरंगा लगे अच्छे कॉफिन लाया हूं. तुम्हारे पार्थिव शरीर सम्मान के साथ घर पहुंचाए जाएंगे. याद रखिए, मुझे अपनी टीम का मनोबल ऊंचा रखना है. वो बेहद मुश्किल हालात में काम कर रहे हैं.’
सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक में रही भूमिका
स्पष्टवादी और निडर माने जाने वाले 63 साल के जनरल बिपिन रावत जब 2016 से 2019 के बीच सेना प्रमुख थे तब उन्होंने सीमा पार आतंकवाद और जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद से निपटने के लिए खुली छूट की नीति का पुरजोर समर्थन किया था.
उरी हमले के बाद सितंबर 2016 में जब भारतीय सेना ने सीमा पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक की, तब बिपिन रावत सेना के उप सेना प्रमुख थे. बताया जाता है कि इस फैसले में बिपिन रावत की भी अहम भूमिका थी. इसके बाद फरवरी 2019 में पुलवामा हमला हुआ तो वायुसेना ने एलओसी पार कर बालाकोट में एयर स्ट्राइक की. उस वक्त बिपिन रावत सेना प्रमुख थे.
थिएटर कमांड पर काम कर रहे थे बिपिन रावत
बदलाव लाने के लिए जाने जाते रहे बिपिन रावत जो सबसे बड़ा बदलाव जो वो लाने वाले थे, वो अगले साल तक थिएटर कमांड बनाना. यानी भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए तीनों सेनाओं को एक छाते के नीचे लाना. चार नए थिएटर कमांड बनाने पर बिपिन रावत काम कर रहे थे. रावत जिस थिएटर प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे, वो प्रोजेक्ट चीन और पाकिस्तान से आने वाले खतरों से निपटने में अहम रोल अदा करेगा. दरअसल थिएटर कमांड्स का सबसे सही इस्तेमाल युद्ध के दौरान तब होता है, जब भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए तीनों सेना प्रमुखों के बीच तालमेल होती है. थिएटर कमांड्स से बनी रणनीतियों के अनुसार दुश्मन पर अचूक वार करना आसान हो जाता है. तीनों सेनाओं के संसाधनों और हथियारों का इस्तेमाल एक साथ किया जा सकता है.
ऐसा रहा है बिपिन रावत का सफर
16 मार्च 1958 को उत्तराखंड के पौड़ी में बिपिन रावत का जन्म हुआ. वो सैन्य परिवार से ही थे. उनके पिता लक्ष्मण सिंह रावत लेफ्टिनेंट जनरल रहे थे. बिपिन रावत ने देहरादून के कैंब्रियन हॉल स्कूल और शिमला के सेंट एडवर्ड स्कूल से पढ़ाई की. उन्होंने वेलिंगटन के डिफेंस सर्विसेस स्टाफ कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. 16 दिसंबर 1978 को रावत 11 गोरखा राइफल्स की 5वीं बटालियन में तैनात हुए. कर्नल के रूप में उन्होंने एलएसी के पास पूर्वी सेक्टर में उन्होंने 5वीं बटालियन की कमान संभाली.
बाद में रावत प्रमोट कर ब्रिगेडियर बनाए गए. उन्होंने सोपोर में राष्ट्रीय राइफल्स के 5 सेक्टर की कमान संभाली. इसके बाद उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मिशन के तहत कांगो में एक मल्टीनेशनल ब्रिगेड की कमान संभाली.
1 जनवरी 2016 को जनरल बिपिन रावत दक्षिणी कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ नियुक्त हुए. दिसंबर 2016 में वो सेना प्रमुख बने. 2019 में बिपिन रावत देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बने