हमारे देष में एक बहुत ही पुरानी कहावत प्रचलित है। “उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ठ चाकरी भीख निदान।” कहने का अर्थ यह है कि सबसे अच्छा कार्य या बेहतर पेशा तो खेती ही है और दूसरे दर्ज पर व्यापार है। नौकरी को तो कहा गया है कि वह तो निकृष्ठ है, जो भीख मांगने के समान है। लेकिन, 70 वर्षों में विदेशों की नकल करके हमारे कर्णधारों ने देश की स्थिति को बदल दिया है। अब तो निकृष्ठ नौकरी को ही सबसे बढ़िया पेशा माना जा रहा है, और उसके ही बाद व्यापार भी है। सबसे निकृष्ठ आज अन्नदाताओं का कार्य कृषि बन गया है। यह स्थिति जो सत्तर सालों में उल्टी हो गयी है उसको वापस पटरी पर लाने के लिए ही “आत्मनिर्भर भारत योजना” के तहत प्रधानमंत्री मोदी जी ने किसानों, पशुपालकों और मछली पालकों के लिए एक लाख करोड़ रूपये का पैकेज कल घोषित किया। वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सितामरण जी ने अपने प्रेस कांफ्रेस में कल इसकी विस्तृत जानकारी दी, जिससे कि अब ऐसा लग रहा है कि किसानों के भाग्य सत्तर वर्षों के बाद अब फिरने वाले हैं। किसानों के सामने हाल के वर्षों में जो सबसे बड़ी समस्या देखने को आ रही थी, वह दो किस्म की थी। पहली समस्या यह थी कि इंदिरा गांधी के जमाने में देश भर में कृषि उत्पादन बाजार समितियों का गठन किया गया था। ये बाजार समितियां अच्छी नीयत से ही गठित की गयी होंगी, लेकिन, अब तो यह भ्रष्टाचार का अड्डा बन कर रह गया है। अब यह सभी किसानों के लिए कानूनन ध्याता बना दी गई थी कि वे अपने कृषि उत्पादों को कृषि उत्पादन बाजार समितियों के मंडी में ही बेंचें । यहां खरीदने- बेचने का काम तो कम होता था । लेकिन, रसीद काटने का काम और घूसखोरी का काम धड़ल्ले से जारी था।
तो इस प्रकार से ये कृषि उत्पादन बाजार समितियां भ्रष्टाचार का बड़ा अड्डा बन गयी थी । क्योंकि, यह संभव है ही नहीं कि एक इलाके में या एक अनुमंडल में किसान जो भी उत्पादन कर रहे हैं वह सारा का सारा वहीं बिक जायेगा। मूलतः यह एक गलत योजना थी । लेकिन, चली आ रही थी पिछले पचास वर्षों से। होता यह था कि किसान रसीद भी कटवाते थे और फिर वहां के अधिकारियों को घूस भी देते थे, ताकि वे अपना माल अच्छी कीमत पर जहां बिक सकता है वहां जाकर बेंचें । इससे तो किसानों को उत्पाद बेचने के पहले ही नुकसान हो जाता था।
रांची से जायें डाल्टेनगंज की रोड पर तो मांडर से चान्हों तक या यों कहें कि कुडू तक पचास किलोमीटर रोड पर सुबह-सुबह सैकड़ों ट्रक लगे मिलेंगे और गरीब आदिवासी किसान खुद बोरियों को लादकर सड़क किनारे लाकर अपने फल और सब्जियां बेचते मिलेंगे। जो टमाटर आपको महानगरों में 50 रूपये किलो मिलेंगा, वे बेचारे गरीब छोटे किसान 25 पैसे या 50 पैसे किलो के भाव बेचकर इन ट्रकवालों को दे देंगे जो कि उसे सीधे कलकत्ता के बाजार में ले जाकर महंगे भाव बेच देंगे। अब बाजार समितियों से रसीद कटवाना या पदाधिकारियों को घूस देना इन व्यापारियों का काम रह गया है। एक तरह से किसान भी खुश थे कि उन्हें बाजार समितियों तक जाना नहीं पड़ा । वे घर से सड़क किनारे आये और उनका सामान भले ही औने-पौने भाव ही सही बिक तो गया। लेकिन, कभी-कभी ऐसा भी होता था कि एक सब्जी मान लें मूली, टमाटर, गाजर, पालक या भिंडी या साग एक दो दिन में सड़ने वाला कुछ भी है यदि बाजार में ज्यादा आ गया, तो इन चीजों का भाव इतना गिर जाता था कि किसान यह समझता था कि अब इसे बेंचे ही नहीं। घर वापस ले जाने में दिक्कत भी होती थी। तो ये गरीब किसान सड़कों पर ही लावारिस छोड़ कर चले जाते थे। सुबह 6 बजे से 10 बजे तक तो ट्रकों की भीड़ लगी रहती थी। सब्जियों को बेचने -खरीदने की गहमागहमी रहती थी। दोपहर के बाद बेकार लावारिस पशु सड़कों के किनारे खड़े होकर अलग-अलग तरह की सब्जियां खाते मिलते । ये दयनीय स्थिति हो जाती थी गरीब किसानों की दलालों और कृषि मंडियों के अत्याचार और घूसखोरी की वजह से ।
इसी प्रकार बिहार के समस्तीपुर में तम्बाकू की बड़ी खेती होता है। पूरे देश को तम्बाकू की सप्लाई यहाँ से होती हैं । यह तो संभव है ही नहीं कि उत्पादित तम्बाकू की खपत समस्तीपुर में ही हो जायेगी। यहां पर भी इसी प्रकार का भ्रष्टाचार है। मखाना एक बहुत अच्छा उत्पाद है उत्तर बिहार का। इसका उत्पादन बिहार के दरभंगा और मधुबनी जिला के इलाकों में होता है। लेकिन, सारे मखाना उत्पादक किसान जानते हैं कि कृषि उत्पादन बाजार समितियों में जाने का मतलब यही है कि उसका उचित भाव मिलेगा नहीं । तो कोई पटना, कोई कोलकत्ता तो कोई दिल्ली आदि जगहों में भेजने का प्रयास करते रहते हैं। पर वे इसमें सक्षम भी नहीं है । उसका यह परिणाम निकलता है कि वे फिर दलाल या व्यापारी के चक्कर में पड़ जाते हैं। क्योंकि ये छोटे-छोटे उत्पादक हैं। अब किसी ने 10 क्विंटल तो किसी ने 20 क्विंटल अपने पोखरे में मखाना का उत्पादन किया। वे 10 क्विंटल या 20 क्विंटल मखाना भाड़े के ट्रक में कहीं लेकर जा नहीं सकते । वे कृषि बाजार समितियों में जाने की बजाय यह करते हैं कि वे धडल्ले से अपना उत्पाद दलालों को दे देते हैं जिससे बड़े पैमाने पर कालाबाजारी होने लगती है। दलालों का नाजायज तालमेल कृषि बाजार समितियों से होता है और वे रसीद कटवाने और अधिकारियों को घूस देने का काम करने में निपुण हैं । अब यह कृषि उत्पाद को एक जगह से देश में कहीं भी ले जाकर बेचने की सुविधा किसानों को मिली है वह न केवल सराहनयी है बल्कि, अप्रत्याशित और अद्भुत है। इससे किसानों को अपने उत्पाद की लागत मिल पायेगा और उचित मुनाफा भी होगा।
दूसरा बड़ा विभाग जो किसानों में खौफ पैदा करता था वह था सप्लाई विभाग। आवश्यक उत्पाद अधिनियम 1955 के अन्तर्गत किसानों को कुछ अन्न रखने में तो छूट थी, लेकिन, कुछ अन्नों में छूट नहीं थी। तेल, तेलहन, दाल, प्याज और आलू तो वे रख हीं नहीं सकते थे । यह तो बड़ी ज्यादती थी। अब किसान चावल गेहूं तो रखेगा और बाकी चीजों को रखकर जब अच्छा बाजार भाव मिले उस समय वह बेच ही नहीं सकता था। यानि तुंरत उगाओं और तुरंत मंडी में जाकर बेच दो इससे किसानों को बहुत परेशानी होती थी। उन्हें लगता था कि तेलहन, दाल के उत्पादन से कोई फायदा नहीं है । क्योंकि, इसी एक्ट का इंस्पेक्टर कभी भी आकर परेशान कर सकता है। अब सरकार ने घोषणा की है कि किसानों के जितने भी उत्पाद हैं चाहे मक्का, गेहूं, चावल या किसी भी प्रकार का दाल, तेलहन हो इस एक्ट से बाहर रहेगा। यह एक बहुत बड़ी सुविधा किसानों को मिली है जिसके कारण किसानों के ऊपर सप्लाई इंस्पेक्टरों के अत्याचार समाप्त करने में मदद मिलेगी। कई बार मुझे तो आश्चर्य यह होता है कि किसानों के इस देश में किसानों के बारे में, उसके हित में सोचने में इतनी देर क्यों लग गयी । 70 साल क्यों लग गये। लेकिन, चलिये देर आये दुरूस्त आये। यही माना जाये कि यह श्रेय मोदी जी को ही मिलना था, इसीलिये ऐसा हुआ।
सरकार ने कल जो घोशणा की उसमें इस बात को स्वीकार किया कि किसानों को उसके लागत का सही मूल्य नहीं मिल रहा है I उसका मुख्य कारण यह है कि कटनी के बाद फसल की प्रोसेसिंग, उसकी सुरक्षा, उसका संरक्षण और कोल्ड चेन मैनेजमेंट यानि छोटो कोटे कोल्डस्टोरेज के नहीं होने की बजह से किसानों को सही मुनाफा नहीं मिल रहा है। इसी के लिए मुख्य रूप से यह एक लाख करोड का पैकेज सरकार ने घोषित किया ताकि आत्म निर्भर भारत के अभियान की ओर तेजी से आगे बढ़ा जा सके।
एक लाख करोड रूपये का पैकेज जो सरकार ने घोषित किया इससे पूरे देश में कृषि से संबंधित ऐसी मौलिक ढांचागत सुविधाऐं विकसित की जायेगी जिससे कृषि उत्पादक समितियों के माध्यम से, किसानों के उत्पादक संघो के माध्यम से और कृषि क्षेत्र में काम कर रहे उद्यमियों के माध्यम से कृषि के क्षेत्र में मूलभूत ढांचागत सुविधाओं का विकास कर कृषि को ज्यादा से जयादा समृद्ध बनाने की कोशिश की जायेगी । यह कोशिश रहेगी कि जहां उत्पाद होता हो उसके नजदीकी इलाके में ही ये सुविधाएं बनायी जायें, ताकि पूरे देष के किसानों को अपने-अपने क्षेत्रों में ही इसका तत्काल लाभ मिल सके।
प्रधानमंत्री ने पिछले सप्ताह राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में भी यह कहा था कि हमें “लोकल” को प्रोत्साहित करना होगा और “लोकल” के लिए “भोकल” होना होगा, यानि लोकल उत्पादों के समर्थन में आवाज उठानी होगी। और जब “लोकल” के लिए पूरा समाज “भोकल” होगा तो उसी से हमारे “लोकल” को “ग्लोबल” बनाने का रास्ता खुलेगा । क्योंकि, आज जितने भी बड़े बड़े अन्तरराष्ट्रीय ब्रांड हैं, वे सभी भी कभी न कभी एक छोटे से लोकल उद्यमी ने शुरू किया था । लेकिन, वहां की सरकारों ने और वहां के समाज ने उनका समर्थन करके उनको प्रोत्साहित करके उन्हें ग्लोबल बना दिया। तो इस कार्य के लिए 10 हजार करोड़ की राशि उनके लिये होगी जो छोटे उद्यमी हैं, जिनको माइक्रो फूड एंटरप्राइजेज या सूक्ष्म खाद्यान्न उधमी कहा जाता है । कोई मखाना तैयार करता है, तो कोई सत्तू बना रहा है, कोई बेसन तैयार कर रहा है, कोई मशाला कूट रहा है, ऐसे सभी उधमियों के लिए 10 हजार करोड रूपये की व्यवस्था की गयी है । इससे लाखों लोगों को रोजगार भी मिलेगा और देश भर में छोटे-छोटे हजारों लोकल उद्यमी खडे होंगे । सरकार की योजना के मुताबिक दो लाख माइक्रो फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट यानि खाद्यान उत्पाद उद्यमी इससे लाभांवित होंगे और 2 लाख उधमियों को जब अपने कार्य विस्तार के लिये 10 हजार करोड रूपये का ऋण जो सस्ते ब्याज दर पर मिलेगा वह भी बिना गारंटी के, तो निश्चित रूप से हरेक उद्यमी पांच सात दस लोगों को अपने यहां रोजगार देगा और जिससे लाखों की संख्या में स्थानीय रोजगार पैदा भी होगें जिससे मजदूरों का पलायन भी रुकेगा या कम होगा ।
सरकार की इस योजना में कहा गया है कि इस योजना के लिए अलग-अलग राज्यों को अलग-अलग उत्पादों के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा जैसे कि उत्तर प्रदेष में आम, बिहार में लीची और मखाना, जम्मू कश्मीर में केसर और पूर्वोत्तर के राज्यों में बांसों के नव अंकुरों से बनने वाले बहुत तरह के उत्पाद, तो आंध प्रदेश में मिर्च। इस तरह के अलग अलग राज्यों के लिये अलग अलग उत्पादों का चयन और वहां पर उनका प्रोत्साहन इस योजना के तहत किया जायेगा। एक और बड़ी घोशणा जो की गयी है वह 20 हजार करोड़ रूपये की योजना है, जो कि मछुआरों के लिए है। मछली पालन के लिए 20 हजार करोड रूपये जिससे कि समुद्र के तटवर्ती इलाकों के मछुआरों को इससे बहुत बड़ा फायदा होगा। वे तरह तरह के छोटी-बड़ी नौकायें खरीद पाएंगे जिसपर सरकार 11 हजार करोड खर्च करेगी । उच्च छोटे-मोटे द्वीपों को मछली उत्पादन द्वीप के रूप में घोषित किया जायेगा। 11 हजार करोड़ रूपये इसमें खर्च होंगे और 9 हजार करोड़ रूपया के लिए फिसिंग हार्वड यानि कि मछुआरों के लिए छोटे-छोटे बंदगाहों को बनाने में खर्च होंगें जहां से वे जा सकेंगे मछली मारने के लिए । उनके मछलियों के लिए कोल्डस्टोरेज की व्यवस्था भी मछुआरे बंदरगाह पर ही होगी । इससे सरकार को उम्मीद है कि देष में सत्तर लाख टन मछली का उत्पादन अगले पांच वर्षों में होना संभव हो पायेगा जिससे कि बहुत बड़ा निर्यात का बाजार खुलेगा। मछली उत्पादन से लगभग पच्चपन लाख लोगों को रोजगार मिलेगा । अभी जो मछली का निर्यात का मार्केट एक लाख करोड का है वह सीधे दुगुना होकर दो लाख करोड़ का प्रति वर्श का हो जायेगा।
एक बहुत बड़ी घोषणा की गयी कि पशुपालकों के लिए भी लगभग 13 हजार 3 सौ 43 करोड रूपये की योजना है जिससे शतप्रतिशत वैक्सीन भैंसों, गायों, भेड़ों, बकरियों, सुअरों के लिए कराने की व्यवस्था होगी जिसकी संख्या आज के दिन देशभर में लगभग 53 करोड आंकी गयी है । इन पशुओं में पैरों से लेकर मुंह तक के अलग-अलग तरह की बीमारियां होती हैं जिससे वे ग्रसित हो कर मर जाते हैं । इन 53 करोड जानवरों में अब तक मात्र डेढ करोड जानवरों को ही अभी तक वैक्सीन दिया जाता है। क्योंकि पशुपालक किसान गरीब होते हैं जो वैक्सीन में खर्च नहीं कर सकते हैं अब सरकार इसका खर्च वहन करेगी और सारा वैक्सीन सरकार द्वारा कराया जायेगा जो बहुत बड़ी राहत है पशुपालकों के लिए।
एक बड़ी घोषणा जो कल हुई वह 15 हजार करोड रूपये के पशुपालन इन्फ्रास्टचर डेभलपमेंट फंड के रूप में की गयी। यह कहा गया कि अनेकों ऐसे इलाकें हैं जहां भी दुग्ध उत्पादन की बहुत बडी संभावनाएं हैं और जहां डेयरी के क्षेत्र में निजी उद्यमी भी निवेश करना चाहते हैं। लेकिन, ऐसे क्षेत्रों में जब तक कि डेयरी प्रोडक्ट की प्रोसेसिंग और उसके मूल्य में वैल्यू ऐडिसन और कैटल फिड के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं किये जायेंगे तो यह संभव नहीं हो सकेगा। इसी के लिए यह 15 हजार करोड रूपये का पशुपालन ढांचागत निर्माण योजना की यह घोषणा की गयी है।
भारत में ऐसे तो हर्बल पौधों की बहुतायत है, जो कि चिकित्सा में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं । इसके लिए नेषनल प्लांटस बोर्ड को दस लाख हेक्टेयर भूमि में जो जैविक औषधीय पौधों को विकसित करने के लिए कहा गया है जिसपर दो वर्शो में चार हजार करोड़ रूपये खर्च होगा इससे किसानों को लगभग पांच हजार करोड रूपये का अतिरिक्त आय मिलेगा और नेशनल मेडिकल प्लांट बोर्ड को गंगा के कछार के इलाकों में भी इन जैविक औषधीय पौधों को विकसति करने के लिए कहा गया है।
कल की घोषणा में मधुमक्खी पालन के विकास के लिए पांच सौ करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है। मधुमक्खी पालन एक ऐसा कार्य है जो कि छोटे-छोटे किसान भी कर सकतें हैं । महिलायें भी कर सकती हैं और मधुमक्खी पालन से उस इलाके के दो से तीन कि0 मी0 के क्षेत्र में जो पौधों में परागण की क्रिया में वृद्धि होती है उसकी बजह से 15 से 25 प्रतिशत तक फसल उत्पादन में वृद्धि हो जाती हैं । इसके लिए ऐसी योजना है कि मधुमक्खी पालन के विकास केन्द्र जगह-जगह बनें । मधु का संकलन, उसका प्रस्करण, उसकी सही मार्केटिंग और तरह-तरह के उपायों से उसमें वैल्यू एडिशन यानि मूल्य वृद्धि उपाय जिससे किसानों को फायदा हो सके। इससे भी लाखों लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है।
फल और सब्जी उत्पादन करने वाले किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उनका उत्पाद जब तैयार होता तो उसे एक दिन में ही बाजार में जाना जरूरी होता था या उसे कोल्डस्टोरेज में संरक्षित किया जाना जरुरी चाहिए। यह नहीं हो पाता था। चाहे वह पपीता हो, तजबुजा, खरबूजा हो कोई भी ऐसी सब्जी हो जो सड़ गल सकती थी, उसके संरक्षण का कोई इंतजाम नहीं था । सरकार का भी इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं था। एक योजना टॉप की थी यानि टोमैटो, ओनियन और पोटैटो, यानि मात्र प्याज, टमाटर और आलू के लिए योजना थी । लेकिन, अब टॉप से टोटल की योजना बनी है, यानि कि हर प्रकार के इस प्रकार के उत्पाद जो सड़-गल सकते है उसके संरक्षण के लिए पांच सौ करोड की योजना सरकार ने बनायी है। यह एक सराहनीय कदम है। इससे किसानों को ऐसे फसलों के उत्पादन में प्रोत्साहन मिलेगा जिन्हें क्रॉप या नगदी फसल कहा जाता है। ऐसे फसलों के उत्पादन से किसान हिचकते थे कि अगर बाजार नहीं मिला समय से, तो उसका क्या होगा। लेकिन अब टॉप टू टोटल योजना से पांच सौ करोड रूपये खर्च करके सरकार जगह-जगह कोल्डस्टोरेज बनवायेगी या बनवाने वाले को प्रोत्साहित करेगी जिससे उसका लाभ किसानों को ही मिलेगा।
इस प्रकार की विविध योजनाओं के माध्यम से एक लाख करोड रूपये किसानों के हित में सरकार ने घोषित किये हैं। अब तो अलग-अलग मंत्रालय इसकी विस्तृत योजनायें बनायेगीं । रिजर्व बैंक भी अलग ऋण के सम्बन्ध में गाईलाइन तैयार करेगा, जिससे कि यह तय किया जा सके कि किस योजना के अंतर्गत बैंकों को कितनी ऋण राशि देनी है । उसका ब्याज का दर क्या होगा। ऋण वसूली की अवधि क्या होगी। कितने दिनों में उसकी वसूली होगी। ये सारी स्कीमें अभी बनकर आयेगी । मोदी सरकार की यह पहल स्वागत योग्य है और ऐसा लगता है कि हम धीरे-धीरे “उत्तम खेती मध्यम वान” की दिशा में आगे बढ़ेगे।
आर. के. सिन्हा
(लेखक वरिष्ठ संपादक,स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)