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कोरोना संक्रमण की सुनामी और मोदी सरकार के लिए उभरती अभूतपूर्व चुनोतियाँ

भारत असाधारण परिस्थितियों का शिकार है। कोविड 19-20 ( कोरोना) संक्रमण की दूसरी लहर ने देश को हिलाकर रख दिया है।  अनगिनत कोरोना संक्रमित मरीनो की बाढ़ में हमारा स्वास्थ्य ढाँचा बिखर गया है और जनता त्राहिमाम कर रही है। एक ही झटके में व्यवस्था व राजनेताओ का विद्रुप चेहरा जनता के सामने आ गया। हमारी राज्य सरकारें भी कोरोना संक्रमित होकर मरणासन्न हैं और भाजपा नीत केंद्र सरकार “ चुनावी हैंगओवर” की शिकार होकर दिग्भ्रमित। इस कारण केंद्र सरकार पंद्रह दिन की देरी से ‘ऐक्शन मोड’ में आ पायी मगर तब तक कोविड के डबल म्यूटेंट संक्रमण की तूफ़ानी रफ़्तार ने बवाल मचा दिया। चारों ओर बीमारों और लाशों के ढेर लगते जा रहे हैं और केंद्र व राज्य सरकारें हर मोर्चे पर असफल सिद्ध होती जा रही हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश के 146 जिलों में संक्रमण की स्थिति नियंत्रण से बाहर है। एक महीने पहले ऐसे ज़िले बमुश्किल 20 -30 रहे होंगे और अगले एक महीने में प्रत्येक ज़िले में स्थिति नियंत्रण के बाहर हो सकती है। जिसका सामना करना किसी भी सरकार के बूते से बाहर की बात है।  इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च का दावा है कि यूरोप , अमेरिका , दक्षिण अफ़्रीका व ब्राज़ील की दूसरी लहर का अध्ययन कर उसने काफ़ी समय पूर्व ही सरकार को देश में दूसरी लहर आने व उसका सामना करने की तैयारी की चेतावनी दे दी थी मगर सरकार ने कुछ नहीं किया और नतीजा सामने है। मात्र 500 केस होने पर पूरे देश में   “अक्यूट लॉकडाउन” लगाने वाली मोदी सरकार ने इस बार लॉकडाउन को “ अंतिम विकल्प” माना है जो बड़े आश्चर्य ब नीतिगत उलटबाँसी का प्रमाण है। महामारी ऐक्ट की आड़ में पिछले एक वर्ष में मोदी सरकार ने जिस तेज़ी से नीतिगत परिवर्तनों को लागू किया वह अभूतपूर्व है । यह खेल यह भी स्पष्ट करता है कि “ कोरोना संक्रमण” एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय साज़िश का परिणाम है जिसमें अकेला चीन नहीं कई और ताक़तें भी शामिल हैं और भारत सरकार व सभी राजनीतिक दल अंदरखाने इस खेल को समझते भी है और मौन समर्थन भी रखते हैं। हो सकता है यह हमारे राजनीतिक दलो की मजबूरी भी हो क्योंकि दुनिया की अर्थव्यवस्था और वेश्विक संगठनों पर ताकतवर देशी व बहुराष्ट्रीय कंपनियों का क़ब्ज़ा है और  वहाँ भारत एक सीमा से अधिक अपनी बात मनवा नहीं सकता। इन ताक़तों ने अपने अपने वर्चस्व व हितों की लड़ाई के बीच दुनिया में जैविक युद्ध छेड़ दिया है। जैविक युद्ध की आड़ में किए जा रहे द्रुतगामी बदलावों ने विश्व की राजनीति और शक्ति समीकरणों को तोड़ मरोड़ कर रख दिया है। लगभग हर देश बार बार लगातार जैविक हमले (कोरोना वायरस) का शिकार हो रहा है और पहली, दूसरी, तीसरी , चौथी और पाँचवी लहर से घिरा हुआ है। ये लहरें तब तक चलती रहेंगी जब तक वह देश व उसके लोग नयी तकनीक, प्राद्योगिकी व व्यवस्थाओं के अनुरूप स्वयं को ढाल नहीं लेते।यह नई विश्व व्यवस्था के आकार लेने का भी समय है। निश्चित ही यह कार्य कुछ महीनों में नहीं होने वाला  बल्कि कुछ वर्ष तो लेगा ही । यानि अगले कुछ वर्षों तक दुनिया के हर देश व क्षेत्र में व्यापक अनिश्चितता, तबाही, उतार-चढ़ाव, बदलाव व राजनीतिक उठापठक होना निश्चित है। दुनिया की महाशक्ति व पुलिसमेन बनने को उतावला चीन इस खेल का सूत्रधार है । विचारधारा के द्वन्द से निकल चीन अब साम्यवादी नहीं बाज़रबादी हो चुका है इसलिए  उसके साथ “ वर्ल्ड इकोनोमिक फ़ोरम” , फ़ॉर्चून 500 कंपनियों का बड़ा हिस्सा और अनेक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की फ़ाउंडेशन भी जुड़ी हुई हैं। एक तरीक़े से बड़ी ताक़तों ने आधुनिकतम तकनीकी वाली सभी कंपनियों को छूट दे दो है कि वे बाज़ार पर हावी पुरानी तकनीक व खिलाड़ियों को रिप्लेस कर स्वयं को स्थापित कर लें । इस खेल में बड़ी ताक़तो के नेताओ को भी हिस्सा या शेयर मिला है और ये सब मिलकर विश्वव्यापी षड्यंत्र कर रहे हैं। विश्व का इतिहास देखा जाए तो पता लगता है कि हर सदी के बाद दुनिया में ऐसा खेल होता आया है। यह नए तरीक़े का युद्ध है और हर स्तर पर ज़ोर आज़माइश चल रही है। एक ओर अमेरिका, ब्रिटेन व फ़्रांस हैं तो दूसरी ओर चीन व रुस। G -20 के बाक़ी देश इन दोनो गुटों में बँटे हुए हैं। दोनो गुटों की कोशिश है कि उनके पक्ष में अधिक से अधिक देश आ जायें। अधिक देश मतलब ज़्यादा संसाधनों पर क़ब्ज़ा, ज़्यादा बड़ा बाज़ार, ज़्यादा हनक और लंबे समय तक दुनिया में दबदबा। इसीलिए हर देश में पक्ष या विपक्षी दल को दोनो गुट अपने अपने पक्ष में करने में लगे हैं। चूँकि पिछले तीन दशकों से दुनिया में अमेरिकी वर्चस्व था तो उसको तोड़ने के लिए चीन ने अपने साथियों की मदद से जैविक युद्ध का सहारा लिया जिसकी शिकार इन दिनो पूरी दुनिया है।

  ऐसे में जबकि भारत में भाजपा व मोदी सरकार अमेरिकी पाले में है और सेकूलर विपक्षी दल चीन के साथ , तो यह संघर्ष गहराना स्वाभाविक भी है। इसीलिय भाजपा आरोप भी लगाती है कि कोरोना संक्रमण विपक्ष शासित राज्यों में ज़्यादा यही से फैलता है व वहीं से पूरे देश में फैलता है। भाजपा देश में चलाए जा रहे सीएए व किसान आंदोलन को भी चीन व उसके पिट्ठू पाकिस्तान के इशारे पर विपक्षी दलो का खेल मानती है।
  कोरोना की दूसरी लहर से उत्पन्न भीषण परिस्थितियों ने मोदी सरकार को बड़े संकट में डाल दिया है। मोदी के राजनीतिक जीवन का यह सबसे बड़ा संकट है।  जनता में व्यापक असंतोष के बीच विपक्ष एक और बड़े आंदोलन व विरोध प्रदर्शनो का सूत्रपात कर सकता है। पाँच राज्यों के चुनावों के परिणाम भी इसकी दिशा तय करेंगे और बंगाल के परिणाम इसकी दिशा तय करेंगे। किंतु यह तय है कि विपक्ष के समर्थन से आंदोलन होगा। अगर भाजपा बंगाल जीत जाती है तो यह साम्प्रदायिक स्वरूप का हो सकता है और हार जाती है तो युवाओं को भड़काकर किया जाएगा। इसके साथ ही सीमा पार से चीन व पाकिस्तान फिर विवाद व आक्रामकता बढ़ाएँगे ताकि मोदी सरकार दबाव में आकार उनके पक्ष में झुक जाए। मोदी को संघ परिवार व एनडीए का सामना भी करना होगा व पार्टी में भी उनके विरोध में गुटबाज़ी बढ़ सकती है। कुल मिलाकर भारत में आंतरिक और बाहरी दोनों ही स्तर पर मोदी सरकार के लिए आने वाले महीने बहुत ज़्यादा चुनोतीपूर्ण रहेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे इन झंझावतो का सामना किस प्रकार कर पाएँगे और किस प्रकार अमेरिका उनका समर्थन करता है। स्पष्ट है कि देश की जनता के लिए आने वाला समय और कष्टप्रद रहने वाला है। यह कड़वा सत्य भी है कि राजनीति और कूटनीति की बुनियाद ही क्रूरता और अपरिमित रक्त पर खड़ी होती है और समवेदना और मानवीयता के तत्व इसमें हाथी के दाँत जैसे होते हैं।
अनुज अग्रवाल
संपादक, डायलॉग इंडिया

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