क्या नयी शब्द नियमावली बदलेगी सदन का माहौल?
मृत्युंजय दीक्षित
वर्ष- 2022 में संसद का मानसून सत्र एक नई कहानी लिखने जा रहा है क्योंकि इस बार सांसदों के लिए एक पुस्तिका जारी की गयी है जिसके अनुसार कम से कम 60 शब्दों के बोलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
विगत कई वर्षों से जब भी संसद कोई सत्र आहूत किया जाता है तो इसका कोई भी दिन बिना हंगामे और शोरगुल के नहीं बीतता है। इसी हंगामे और शोरगुल के बीच माननीय सांसद गण सदन कि मर्यादा को भूलकर असंसदीय शब्दावली का उपयोग करते जिन्हें बाद में सदन की कार्यवाही के रिकार्ड से बाहर किया जाता है।
लेकिन इस बार संभवतः दृश्य अलग होगा क्योंकि अब नये नियमों के अनुसार लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान सदस्य चर्चा में हिस्सा लेते हुए जुमलाजीवी, बालबुद्धि, जयचंद, कोविड स्प्रेडर और स्नूपगेट जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं कर पाएंगे। लोकसभा सचिवालय ने दोहरा चरित्र, निकम्मा, नौटंकी, ढिंढोरा पीटना ओर बाहरी सरकार को भी असंसदीय शब्दों की सूची में शामिल किया है। सांसद अब तानाशाह जैसे शब्द भी नहीं बोल सकेंगे। इसके अलावा ब्लडशेड, अशेम्ड, चीटेड, चमचा, चमचागीरी, चेला, चाइल्डनेस , कावर्ड, क्रिमिनल, क्रोकोडाइल टीयर्स, डिस्प्रेस, डंकी, आइवाश , फ्रिंज , हूलिगनिज्म, मिसलेड, लार्ड, अनटू ,गद्दार, गिरगिट, गून्स, घड़ियाली आंसू ,अपमान, असत्य, अहंकार ,काला दिन, काला बाजारी, दादागिरि, बेचारा ,बाबकट, लालीपाप, विश्वासघात, संवेदनहीन, फूलिश, पिटटू, सेक्सुअल हरेसमेंट, माफिया, रबिश , स्नेक, चार्मर, टाउट, ट्रेटर जैसे शब्दों को असंसदीय घोषित किया गया है।
अभी हाल ही में कृषि कानून विरोधी आंदोलन व सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान विरोधी दलों के सांसदां ने मर्यादा के बाहर जाकर जमकर हंगामा किया था । वे दोनों सदनों में सभापति के आसन तक आ जाते थे जिसके कारण कई दिनों तक संसद की कार्यवाही ठप रही थी। यह नये नियम सांसदों का आचरण सुधारने के लिए बनाये गये हैं लेकिन आज देश के सभी विरोधी दलों ने इस नई नियमावली का विरोध करना प्रारंभ कर दिया है।
तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने अपने ट्वीट में कहा है कि, “संसद में अपनी बात रखते हुए अब हमें इन मूल शब्दों शर्मिंदा, धोखा, भ्रष्ट अक्षम दिखावा जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जएगी।” टीएमसी नेता का कहना है कि, ”वह इन शब्दों का इस्तेमाल करेंगे। सरकार चाहे तो उन्हें निलंबित कर सकती है। वह लोकतंत्र के लिए लड़ेंगे।“ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि सरकार की आलोचना करने वाले शब्दों को असंसदीय घोषित कर दिया गया है। उनका कहना है कि इस पर एक समिति बने और विचार करे हो सकता है कांग्रेस पार्टी इस पुनर्विचार करने के लिए भी कह सकती है।
वहीं कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंधवी ने कहा, जब आप अपनी आलोचना में यदि क्रिएटिव नहीं हो सकते तो संसद का औचित्य क्या है ? उन्होंने कहा कि जुमलाजीवी को जुमलाजीवी नहीं बोलेंगे तो क्या बोलेंगे ? शब्दों पर प्रतिबंध लगाना अवांछित है। जिन शब्दों को असंसदीय घोषित किया गया है इसमें राजस्थान विधानसभा में असंसदीय घोषित कुछ शब्दों को भी रखा गया है जिसमें कांव कांव करना, तलवे चाटना, तड़ीपार, तुर्रम खां तथा झारखंड विधनसभा में असंसदीय घोषित कई घाट का पानी पीना , ठेंगा दिखाना आदि शामिल हैं।
सचिवालय द्वारा तैयार पुस्तिका सांसदों को एक दूसरे के प्रति सम्मान देने के लिए तैयार की गयी है। सूची में जिन शब्दों को षामिल किया गया है उन सभी शब्दों का देश के विरोधी दल व सभी नेतागण सरकार का विरोध करने के लिए बहुतायत में प्रयोग कर रहे हैं। संसद में भी इन शब्दों का बहुत ही आक्रामक तरीके से प्रयोग किया जा रहा था और जिसके कारण संसद की कार्यवाही बार- बार ठप हो रही थी। जिसके कारण संचिवालय ने यह नयी पुस्तिका जारी की है लेकिन विपक्ष अब अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इन शब्दों के प्रयोग पर भी अड़ गया है।
सभी विरोधी दलों के नेताओं ने इन शब्दों का आगामी मानसून सत्र में जमकर प्रयोग करने की घोषणा कर दी है और यह बात भी साफ हो गयी है कि आगामी दिनो में संसद के दोनों सदनों में विभिन्न मुद्दों पर जमकर हंगामा होने जा रहा है। विपक्ष की हंगामे की लिस्ट तैयार हो चुकी है जिसमें नेशनल हेराल्ड मामले में गांधी परिवार से पूछताछ , अग्निपथ योजना व उसके विरोध में उपजी हिंसा, नुपूर शर्मा विवाद, महंगाई, बेरोजगारी और श्रीलंका के हालात , नये अशोक स्तम्भ को लेकर भी दोनों सदनों में भारी हंगामा तय माना जा रहा है। देश के विरोधी दल महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन को लेकर भी बहस और हंगामा करने के मूड में दिखाई पड़ रहे हैं।
संसद के हंगामे को ध्यान में रखते हुए सचिवालय ने यह पुस्तिका जारी की है लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी के दीवाने राजनैतिक दलों ने इस पुस्तिका का ही प्रबल विरोध प्रारंभ कर दिया है और अपने इरादे जगजाहिर कर दिए हैं। विरोधी दल इन नये नियमों को भी तानाशाही प्रवृत्ति और अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोटना ही बतायेंगे।
लोकसभा सचिवालय ने असंसदीय शब्द शीर्षक के तहत दोनों सदनों, राज्य विधानसभाओं और 2020 में राष्ट्रमंडल देशों की संसद में असंसदीय घोषित शब्दों से ही यह नया संकलन तैयार किया गया है। हालांकि शब्दों को कार्यवाही से हटाने का अंतिम अधिकार राज्यसभा के सभापति और लोकसभा के स्पीकर को होगा लेकिन विपक्ष जिसे केवल हंगामा और तथाकथित राजनैतिक विरोध करने की लत लग गयी हो वह नहीं सुधरेगा।
प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित