Shadow

तो क्या आधी दुनिया को मिला पाया बोर्ड रूम में वाजिब हक

तो क्या आधी दुनिया को मिला पाया बोर्ड रूम में वाजिब हक
पिछली 8 मार्च को विश्व महिला दिवस के मौके पर आधी दुनिया के अपने हिस्से के आसमान को छूने को लेकर तमाम तरह की बातें सामने आईं। इन्हें देख-पढ़कर सुखद अनुभूति हुई। पर यह पक्ष शायद ठीक से सामने नहीं आया कि आधी दुनिया कॉरपोरेट संसार में भी शिखर के पदों पर पहुंच रही है। सरकारी क्षेत्र के उपक्रम हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड(एचपीसीएल) में निशि वासुदेवा की अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक तथा ऑयल एंड नैचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) में अलका मित्तल का अंतरिम चेयरमैन और प्रबंध निदेशक नियुक्त किया जाना इस तरफ इशारा कर रहा है कि अब महिलाओं को विशाल सरकारी नवरत्न कहे जाने वाले प्रतिष्ठित उपक्रमों के सबसे ऊंचे पायदान पर काम करने का मौका मिल रहा है। यह पहली बार हुआ है कि किसी महिला को देश की सबसे बड़ी तेल और गैस उत्पादक कंपनी का प्रमुख बनाया गया है। जान लें कि यह एक सामान्य घटना नहीं है।  अर्थशास्त्र में पोस्ट ग्रैजुएट और कॉमर्स में डॉक्टरेट की डिग्री पाने वाली अलका मित्तल 27 नवंबर
, 2018 को ओएनजीसी के निदेशक मंडल में शामिल होने वाली पहली महिला बनी थीं। हालांकि यह भी स्वीकार करना ही होगा कि अभी महिला पेशेवरों को कॉरपोरेट संसार में अपना वाजिब हिस्सा लेने के लिए मेहनत और संघर्ष करते रहना होगा।  एक ताजा जानकारी के अनुसार, बॉम्बे शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों के बोर्ड में अब भी सिर्फ 18 फीसद ही महिलाएं हैं। इस आंकड़े से साफ है कि अभी कम से कम सूचीबद्ध कंपनियों में महिला निदेशकों की संख्या 45-50 फीसद  होने में भी अभी वक्त लगेगा। पर कुछ साल पहले तक यह भी किसने सोचा था कि सूचीबद्ध कंपनियों में 18 फीसद तक महिलाएं निदेशक बन जाएंगी।

बेशक, महिलाएं लगातार कॉरपोरेट जगत में कदम तो बढ़ा ही रही हैं। आप किसी भी छोटी-बड़ी कंपनी के दफ्तर में जाकर देख लें। वहां पर आपको महिला पेशेवरों की ठीक-ठाक तादाद नजर आ जाएगी। इस बीच, माधवी पुरी बुच ने कुछ समय पहले भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) की प्रमुख का पदभार संभाल लिया है। सेबी की चेयरपर्सन बनने वाली बुच पहली महिला हैं। साथ ही वह पिछले कुछ वर्षों में इस पद पर आने वाली पहली गैर-नौकरशाह है। सरकार ने उन्हें सेबी प्रमुख पद पर तीन साल की अवधि के लिए नियुक्त किया है। यह मानना होगा कि कॉरपोरेट भारत में औरतों के लिए हाल-फिलहाल तक कोई बहुत स्पेस नहीं था। इन्हें टाइपिस्ट-क्लर्क या प्राइवेट सेक्रेटरी जैसे पदों तक के लायक ही समझा जाता था। टाटा समूह भारत की कॉरपोरेट दुनिया को एक तरह से दिशा देता रहा है। इसकी राष्ट्र निर्माण में भी शानदार भूमिका रही है। लेकिन, इस समूह के प्रेरणा पुरुष जे.आर.डी.टाटा के दौर में भी यहां पर समूह की किसी कंपनी की कमान किसी महिला पेशेवर को नहीं मिली। इसी तरह से शायद ही किसी महिला को  समूह की किसी कंपनी के बोर्ड में जगह मिली। जे.आर.डी टाटा के दौर में अजित केरकर ( ताज होटल), एफ.सी. सहगल (टीसीएस), प्रख्यात विधिवेत्ता ननी पालकीवाला (एसीसी सीमेंट), रूसी मोदी (टाटा स्टील) ही टाटा समूह के अहम चेहरे रहे। इस उदाहरण को देने का मकसद यह है कि जब टाटा समूह में महिलाओं को कायदे का हक नहीं मिला था तो बाकी की तो बात ही छोड़ दीजिए। देश में सन 1991 के बाद आर्थिक उदारीकरण की जो बयार बहने लगी तो उसने कॉरपोरेट संसार का चेहरा बदलना चालू कर दिया। उसके बाद धीरे-धीरे आधी दुनिया आंत्रप्यूनर  भी बनने लगीं और उन्हें दिग्गज कंपनियों में अहम पद भी हासिल होने लगे। ये सब इसलिए हुआ क्योंकि अवसरों की सुनामी सी आ गई। इन अवसरों को दोनों हाथों से पकड़ने में आधी दुनिया पीछे  नहीं रहीं। इधर ब्यूटी स्टार्टअप नायका की फाउंडर फाल्गुनी नायर का जिक्र करना समीचिन रहेगा। वो भारत की सबसे अमीर सेल्फमेड महिला अरबपति बन गई हैं। कुछ समय पहले नायर की कंपनी नायका की शानदार लिस्टिंग हुई। शेयर बाजार ने इस आईपीओ का दिल खोलकर स्वागत किया था। नायका की आधी मल्कियत नायर के पास है। फर्म के शेयरों में 89 फीसद तक की वृद्धि के बाद अब नायर की नेटवर्थ लगभग 6.5 अरब हो गई है। यह स्टॉक एक्सचेंज में प्रवेश करने वाली भारत की पहली महिला-नेतृत्व वाली कंपनी है।

 इस बीच, एक राय यह भी है कि हमारे यहां भले ही कॉरपोरेट जगत में बहुत सी महिलाएं अहम पदों को सुशोभित कर रही हैं, पर वे कंपनियों के बोर्ड रूम में भी उस अनुपात नहीं हैं। बहरहाल, भारतीय स्टेट बैंक में  अरुंधति भट्टाचार्य, शिखा शर्मा (एक्सिस बैंक), चंदा कोछड़ (आईसीआईसीआई बैंक) का मैनेजिंग डायरेक्टर होना मील का पत्थर माना जा सकता है। इन सबका देश के चोटी के बैंकों का हेड बनने से बहुत ठोस संदेश गया था। पर यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि आईसीआईसीआई बैंक  की पूर्व एमडी और सीईओ चंदा कोचर पर अपने पद के दुरुपयोग के तमाम गंभीर आरोप भी लगे। उन्हें जेल भी जाना पड़ा। फिलहाल वो जमानत पर हैं। चंदा कोचर पर नियमों को ताक पर रखकर लोन देने के आरोप हैं।

अगर आप गुजरे दौर को देखेंगे तो समझ आ जाएगा कि सूचीबद्ध कंपनियों के बोर्ड रूम में महिलाओं के दरवाजे बंद ही रखे जाते रहे हैं। यह बेहद लचर मानसिकता थी। जो समाज नारी को देवी के रूप में पूजनीय मानता हो वहां पर औऱतों को बोर्ड रूम से दूर रखा जाना शर्मनाक था। महिलाओं की मेरिट की अनदेखी होती रही। यह सच है। एक वह भी समय था जब हमारे यहां कंपनियों के प्रमोटर अपनी पत्नियों, बेटियों, बहुओं वगैरह को ही बोर्ड रूम में रख कर सोचते थे कि उन्होंने बहुत बड़ी क्रांति कर दी है। इतना भर करके इन्हें लगता था कि इन्होंने महिलाओं को उनका हक दे दिया है।

 बहरहाल, अब स्थितियां बहुत सकारात्मक हो चुकी हैं। आधी दुनिया को कॉरपोरेट जगत में हरेक पद मिल रहा है।  एक बात साफ  लगती है कि जैसे –जैसे हमारे यहां महिलाएं आंत्रप्यूनर  बनेंगी तो बोर्ड रूम में उनकी संख्या में भी बढ़ोत्तरी होती रहेगी।

आर.के. सिन्हा
(
लेखक वरिष्ठ संपादकस्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *