दवा-प्रतिरोधक टीबी: क्या नवीनतम जाँच-इलाज सभी जरूरतमंदों तक पहुँच रहे हैं?
बॉबी रमाकांत – सीएनएस
दवा-प्रतिरोधक टीबी संबंधित जांच और इलाज में जो शोध पिछले दशक में हुए हैं वह निसंदेह सराहनीय हैं। पर क्या हम इन नवीनतम पक्की जाँच से हर दवा-प्रतिरोधक टीबी से ग्रसित व्यक्ति को चिन्हित कर पा रहे हैं? क्या हम हर जरूरतमंद की नवीनतम बेहतर उपचार से इलाज कर पा रहे हैं?
विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक टीबी रिपोर्ट के अनुसार, लगभग पाँच लाख में से डेढ़ लाख लोगों की हम जाँच कर पाए और इलाज प्रदान कर सके। यदि हम हर रोगी तक जाँच-इलाज बिना-विलम्ब नहीं पहुँचाएँगे तो 2025 तक भारत में और 2030 तक दुनिया में टीबी उन्मूलन कैसे कर पाएँगे?
वैज्ञानिक शोध को यदि देखें तो पाएँगे कि अब दवा प्रतिरोधक टीबी के इलाज की अवधि 2 साल से घट कर 6 माह होना सम्भव है। नवीनतम इलाज उतने विषाक्त नहीं और सफल इलाज की सम्भावना भी 58% से बढ़ कर 90% हो जाती है, मृत्यु का ख़तरा बहुत कम होता है। परंतु यदि यह नवीनतम इलाज, दवा-प्रतिरोधक टीबी के हर रोगी तक नहीं पहुँचेंगे तो न सिर्फ़ जन-स्वास्थ्य की पराजय है बल्कि मानवाधिकार की भी।
दवा-प्रतिरोधक टीबी के बारे में जानें
२०२२ वर्ल्ड टीबी डे पर जारी हुआ “द डोस पाडकास्ट” की संचालिका और सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) की संस्थापिका शोभा शुक्ला ने कहा कि जब टीबी कीटाणु (बैक्टीरिया) किसी दवा से प्रतिरोधक हो जाता है तो वह दवा उसको मार नहीं पाती। ऐसी दवा-प्रतिरोधक टीबी के इलाज के लिए अन्य दवा का उपयोग किया जाता है जिससे वह कीटाणु प्रतिरोधक नहीं है। पर दवाएँ सीमित हैं इसीलिए दवा प्रतिरोधक टीबी का इलाज मुश्किल, लम्बा (२ साल तक या अधिक अवधि का), और जटिल हो जाता है, और इलाज के परिणाम भी अपेक्षानुसार नहीं रहते। दवाओं की विषाक्तता, उनसे हुई विकृतियाँ, आदि अनेक ऐसी चुनौतियां हैं जो दवा प्रतिरोधक टीबी के इलाज को अधिक कठिन बना देती हैं। पर अच्छा समाचार यह है कि अब दवा प्रतिरोधक टीबी के इलाज के लिए नए उपचार हैं जो 6-9 माह अवधि के हैं, सफलता की सम्भावना 90% है (पहले 58% से कम थी), विषाक्तता कम है। हमारे समक्ष चुनौती यह है कि नयी जाँच विधि और नए बेहतर उपचार हर जरूरतमंद तक नहीं पहुँच रहे हैं।
२०२२ वर्ल्ड टीबी डे पर वैश्विक स्टॉप टीबी पार्ट्नर्शिप के “वर्किंग ग्रूप ओफ़ न्यू टीबी ड्रग्स” ने “द डोस पॉडकास्ट” का पांचवा एपिसोड जारी किया जिसमें दुनिया के 2 प्रख्यात टीबी वैज्ञानिकों ने भाग लिया और सीएनएस की शोभा शुक्ला ने इस सत्र का संचालन किया।
अमरीका की कैलीफ़ोरनिया विश्वविद्यालय के डॉ गुस्टावो वेल्सकुएज ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम वैश्विक टीबी रिपोर्ट के अनुसार, दवा-प्रतिरोधक टीबी की सफलता 58% रही है जो बहुत कम है। अनेक देशों या स्थानों पर, इलाज की सफलता दर अत्याधिक कम रही है। 2012 में दवा प्रतिरोधक टीबी की सफलता दर 50% के आसपास थी। पर अब वैज्ञानिक शोध ने यह साबित कर दिया है कि दवा प्रतिरोधक टीबी के इलाज की सफलता 90% तक हो सकती है। यह दो महत्वपूर्ण शोध हैं निक्स-टीबी और जी-निक्स।
दवा प्रतिरोधक टीबी के इलाज की सफलता दर 90%
निक्स-टीबी शोध की प्रमुख शोधकर्ता और दक्षिण अफ़्रीका की विशेषज्ञ डॉ फ्रांसेस्का कोनरेडी ने कहा कि निक्स-टीबी शोध ने यह सिद्ध किया है कि बीपीएएल दवाओं (बीडाक्विलिन, प्रीटोमानिड और लिनोजोलिड/ Bedaquiline, Pretomanid, Linezolid) से दवा प्रतिरोधक टीबी के इलाज करने पर सफलता दर 90% तक रहता है। डॉ फ्रांचेस्का दक्षिण अफ़्रीका में कार्यरत रही हैं जहां पहले दवा प्रतिरोधक टीबी के इलाज की सफलता 40% तक रही है।
डॉ फ्रांसेस्का ने बताया कि निक्स-टीबी शोध के नतीजे यकीनन अत्यंत हौसला वर्धक रहे हैं पर एक क़ीमत भी चुकानी पड़ी है। बीपीएएल दवाओं (बिडाक्वीलीन, प्रीटोमानिड और लिनेजोलिड) में लिनोजोलिड एक पुरानी दवा है जिसकी विशक्ता एक चिंता का विषय है। लिनेजोलिड की अधिक मात्रा होने के कारण परिधीय तंत्रिकाविकृति की रिपोर्ट आयी। 2 रोगियों को नेत्र में तंत्रिकाविकृति हुई तो कुछ के बोन मैरो में सप्रेशन के कारण हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो गया।
निक्स-टीबी शोध के बाद हुआ जीनिक्स शोध
इसीलिए एक नए शोध, जी-निक्स शोध, किया गया कि क्या 90% इलाज की सफलता के साथ-साथ अधिक सुरक्षित और कम विषाक्त इलाज मुमकिन है? इस जी-निक्स शोध में 4 समूह थे जिनमें दवा-प्रतिरोधक टीबी के रोगियों का इलाज बीपीएएल दवाओं (बिडाक्वीलीन, प्रीटोमानिड और लिनोजोलिड) से किया गया – पर इन 4 समूह में लिनेजोलिड की मात्रा और अवधि दोनों में भिन्नता थी।
– पहले समूह में लिनेजोलिड 1200 मिग्र, 6 माह तक लेना था
– दूसरे समूह में लिनेजोलिड 1200 मिग्र, 2 माह तक लेना था
– तीसरे समूह में लिनेजोलिड 600 मिग्र, 6 माह तक लेना था
– चौथे समूह में लिनेजोलिड 600 मिग्र, 2 माह तक लेना था
डॉ फ़्रानसेसका ने बताया कि जी-निक्स शोध ने यह साबित किया है कि निक्स-टीबी शोध के नतीजे सही थे – 90% सफल इलाज सम्भव रहा। चारों समूह में 90% इलाज सफलता दर रही। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जैसे-जैसे लिनोजोलिड दवा की मात्रा और अवधि कम हुई वैसे-वैसे विशक्ता भी कम हुई पर इलाज सफलता दर 90% ही रही।
जी-निक्स शोध को यूरोपीय देशों और दक्षिण अफ्रीका में किया गया था और सभी शोध-क्षेत्र में सफलता दर 90% रहा।
डॉ फ्रांसेस्का ने कहा कि उनके अधिकांश दवा-प्रतिरोधक टीबी के रोगी अत्यंत कमजोर आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि से आते हैं। इसीलिए जितना जल्दी उनका सफल इलाज हो और वह पुन: अपने समुदाय और रोज़गार पर वापस जा सकें उतना श्रेष्ठतम रहेगा।
इसीलिए दवा प्रतिरोधक टीबी के 6 माह अवधि का इलाज, जिसमें सिर्फ़ मौखिक लेने वाली दवाएँ हैं (एक भी इंजेक्शन नहीं है) और सफलता दर भी 90% है, पहले के इलाज जिसमें 2 साल तक लग जाते थे उससे कहीं बेहतर है और सब जगह उपलब्ध होना चाहिए।
जी-निक्स शोध ने यह भी सिद्ध किया कि यदि व्यक्ति दवा-प्रतिरोधक टीबी के साथ-साथ एचआईवी से भी सह-संक्रमित है तो भी बीपीएएल दवाओं से इलाज उतना ही सफल रहता है।
इसीलिए अमेरिका के एफ़डीए ने दवा प्रतिरोधक टीबी से ग्रसित लोगों के इलाज के लिए बीपीएएल दवाओं को पारित किया है और २०२० की विश्व स्वास्थ्य संगठन गाइडलाइन्स भी इसका समर्थन करती हैं।
डॉ गुस्टावो वेल्सकुएज ने कहा कि लिनोजोलिड दवा की विशक्ता एक चुनौती बनी हुई है। शोधकर्ता, चिकित्सक एवं स्वास्थ्य कर्मी को निगरानी रखनी होगी और देखभाल करनी होगी जिससे कि लिनेजोलिड वाले इलाज को ले रहे लोगों को कम-से-कम कष्ट हो। जी-निक्स शोध ने यह सिद्ध किया है कि लिनोजोलिड की मात्रा कम करने से विशक्ता भी कम होती है पर इलाज सफलता दर ९०% ही रहती है। इसी तरह से और शोध के ज़रिए कम-से-कम विशक्ता वाली दवाएँ उपयोग में रहनी चाहिएँ।
जब तक सबकी जाँच नहीं होगी तब तक हर जरूरतमंद को दवा कैसे देंगे?
यह ज़मीनी हक़ीक़त है कि दवा प्रतिरोधक टीबी की जाँच अभी भी सबको नसीब नहीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक टीबी रिपोर्ट के अनुसार, 5 लाख लोग हर साल दवा प्रतिरोधक टीबी से ग्रसित होते हैं परंतु एक-तिहाई से भी कम लोगों को जाँच-इलाज मिल पाता है। जो जाँच मिल रही है वह हर जगह नवीनतम जाँच नहीं है, कई जगह रिपोर्ट आने में 6-8 सप्ताह तक लग जाते हैं।
भारत के हर ज़िले में अब ऐसी जाँच उपलब्ध है (जीन एक्सपर्ट) जिससे 100 मिनट में यह पता चलता है कि टीबी है कि नहीं, और रिफैम्पिसिन दवा से टीबी-कीटाणु प्रतिरोधक है कि नहीं। पर अन्य दवाएँ जैसे कि बीडाक्विलिन से कीटाणु प्रतिरोधक है या नहीं, यह पता करने के लिए फ़िलहाल कोई ऐसी मॉडर्न जाँच नहीं – बल्कि पुरानी वाली जाँच हैं जिसके इस्तेमाल से रिपोर्ट आने में 6-8 हफ़्ते लगते हैं।
यह बहुत ज़रूरी है कि नवीनतम जाँच जैसे कि जीन एक्स्पर्ट, एक्स्पर्ट अल्ट्रा, एक्स्पर्ट एक्सडीआर, आदि सबको हर जगह उपलब्ध हो जिससे कि हर रोगी को यह तुरंत पक्का पता चल सके कि उसको टीबी है कि नहीं, और यदि टीबी है तो कौन सी दवाएँ उस पर असरदार रहेंगी (और कौन से दवाओं से उसका टीबी-बैक्टीरिया प्रतिरोधक है)।
जब तक हर दवा प्रतिरोधक टीबी से ग्रसित व्यक्ति को पक्की जाँच नहीं मिलेगी तब तक उसको नवीनतम इलाज कैसे मिलेगा? टीबी उन्मूलन कैसे सम्भव है? दवा प्रतिरोधक टीबी का संक्रमण फैलना कैसे थमेगा?
बिडाक्वीलीन से भी टीबी बैक्टीरिया हुआ प्रतिरोधक
एक लम्बे इंतेज़ार और लम्बे वैज्ञानिक शोध के पश्चात हमें टीबी की नयी दवाएँ मिली हैं। यदि इनसे टीबी बैक्टीरिया प्रतिरोधक हो गया तो इलाज के विकल्प फिर कम हो जाएँगे। टीबी दवाओं का समझदारी से सही इस्तेमाल करना अत्यंत ज़रूरी है जिससे कि दवा के दुरुपयोग से कोई दवा प्रतिरोधकता न उत्पन्न हो।
डॉ फ्रांसेस्का ने बताया कि दक्षिण अफ्रीका में उनके कार्यक्रम में जिसके तहत बीपीएएल दवाएँ जरूरतमंद लोगों को दी जाती हैं, उसमें वर्तमान में 70 मरीज़ लाभार्थी हैं जिनमें से 2 रोगियों को बीडाक्विलिन से प्रतिरोधकता हो चुकी है। वर्तमान में बीडाक्विलिन प्रतिरोधकता जाँचने के लिए पुरानी वाली जांच इस्तेमाल होती हैं जिसकी रिपोर्ट आने में 6-8 हफ़्ते लगते हैं।
दक्षिण अफ़्रीका के डॉ नाज़िर इस्माइल ने एक शोध प्रकाशित किया है जिसके अनुसार, जो रोगी रिफैम्पिसिन दवा से प्रतिरोधक थे उनमें से 2% बीडाक्विलिन से भी प्रतिरोधक निकले।
एमडीआर-टीबी, एक्सडीआर-टीबी, प्री-एक्सडीआर-टीबी क्या है?
– एमडीआर-टीबी: जब टीबी बैक्टीरिया सबसे प्रभावकारी २ टीबी दवाओं से प्रतिरोधक हो जाए – आइसोनियाज़िड और रिफ़ैमपिसिन।
– एक्सडीआर-टीबी: जब टीबी बैक्टीरिया, आइसोनियाज़िड और रिफैम्पिसिन के साथ-साथ फलूरोकुईनोलोन और इंजेक्शन-वाली दवाओं से भी प्रतिरोधक हो
– प्री-एक्सडीआर-टीबी: जब टीबी बैक्टीरिया, आइसोनियाज़िड और रिफ़ैमपिसिन के साथ-साथ फलूरोकुईनोलोन या इंजेक्शन-वाली दवाओं से भी प्रतिरोधक हो
२०२१ जनवरी में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक्सडीआर-टीबी और प्री-एक्सडीआर-टीबी की परिभाषा में परिवर्तन किया क्योंकि इंजेक्शन-वाली दवाएँ इतनी प्राथमिकता नहीं रह गयी हैं और बेहतर खाने वाली गोलियां आ गयी हैं। अब एक्सडीआर-टीबी उसे कहते हैं जब टीबी बैक्टिरिया, आइसोनियाज़िड और रिफ़ैमपिसिन के साथ-साथ फलूरोकुईनोलोन और एक अन्य दवा-समूह या दवा (बीडाक्विलिन या लिनेजोलिड) से प्रतिरोधक हो। प्री-एक्सडीआर-टीबी अब उसे कहते हैं जब टीबी बैक्टिरिया, आइसोनियाज़िड और रिफ़ैमपिसिन के साथ-साथ फलूरोकुईनोलोन से भी प्रतिरोधक हो।