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परमात्मा के ज्ञान में ही सारा ज्ञान समाहित है!

मानव सभ्यता के नव निर्माण के लिए आते हैं दिव्य अवतार:-

यह पृथ्वी करोड़ों वर्ष पुरानी है। इस पृथ्वी का जीवन करोड़ों वर्ष का है क्योंकि जब से सूरज का जीवन है तब से मनुष्य का जीवन है। भारत की सभ्यता सबसे पुरानी है। आज मनुष्य का जीवन बहुत ही सुनियोजित एवं वैज्ञानिक ढंग से चल रहा है। यहाँ पर जो प्रथम मानव उत्पन्न हुआ वो बिठूर में गंगा जी के घाट के पास उत्पन्न हुआ। बिठूर में गंगा जी के पास एक छड़ी लगी हुई है जो कि यह इंगित करती है कि मनु और शतरूपा यही पर उत्पन्न हुए थे। मनुष्य चाहे पहले कंदराओं में रहता हो चाहे कृषि युग में रहता हो या किसी अन्य युग में सभी युगों में कोई न कोई मार्गदर्शक मानव सभ्यता का नव निर्माण करने के लिए आये।

भारत का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है:-

भारत का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है। पूरी दुनिया से लोग भारत की सभ्यता एवं संस्कृति को जानने के लिए विदेशों से आते रहते हैं। कई बार ऐसे देशों के लिए लोग भारत की संस्कृति एवं सभ्यता को जानने के लिए यहाँ आते हैं जिन देशों ने बहुत ज्यादा उन्नति की है। जिनके पास बहुत ज्यादा संपदा है। जिनके रहने, खाने-पीने आदि का स्टैण्डर्ड बहुत ज्यादा ऊँचा होता है। वास्तव में सब कुछ होते हुए भी यह लोग भारत को देखने के लिए क्यों आते हैं? इनके पास तो सब कुछ है। आखिर ऐसी कौन सी बात है जिसे देखने व जानने के लिए ये लोग भारत आते रहते हैं?

देख पराई चूपड़ी मत ललचाये जी:-

कुछ समय पूर्व बनारस में एक विदेशी व्यक्ति जब यहाँ की सभ्यता एवं संस्कृति को जानने के लिए आया तो उसने वहाँ पर एक रिक्शे वाले को रिक्शे की गद्दी पर गहरी नींद में सोते हुए देखकर उसकी फोटो खीच ली। उससे किसी ने पूछा कि आप इस रिक्शे पर सोते हुए रिक्शे वाले की फोटो क्यों खीचीं? उस विदेशी व्यक्ति ने कहा ‘‘यह तो बहुत अनहोनी और अचंभित करने वाली चीज है कि वह आदमी रिक्शे की गद्दी पर भी इतनी गहरी निद्रा में सो रहा है। हमारे यहाँ तो लोग मोटे-मोटे गद्दे पर नींद की गोली खाने के बाद भी इतनी गहरी नींद में कभी भी नहीं सो पाते हैं।’’ वास्तव में अगर किसी व्यक्ति को कोई चिंता नहीं है तो उसको नींद तुरन्त आ जायेगी। रिक्शे वाला तो ‘‘रूखा-सूखा खायके, ठण्डा पानी पी। देख पराई चूपड़ी मत ललचाये जी।’’ की कहावत को सत्य करते हुए आराम से बिना किसी चिंता के सो रहा था।

निराकार तो ब्रह्म है माया है साकार:-

हमें प्रत्येक इंसान के चेहरे में भगवान का चेहरा देखना चाहिए। तुम्हें यह नहीं देखना चाहिए कि वह व्यक्ति काला है या गोरा। वह रो रहा है या हँस रहा है या तुमको घृणा की दृष्टि से देख रहा है कि प्यार की दृष्टि से देख रहा है। तुम्हें तो केवल उसके चेहरे पर भगवान का चेहरा ही देखना चाहिए। इस प्रकार मनुष्य का जीवन ही इसलिए है कि वह भगवान को जाने और भगवान को जानने के लिए भगवान के द्वारा भेजे गये दिव्य मानव को पहचानना जरूरी हैं। जिसने इन दिव्य मानव को जाना उसने परमात्मा को भी जान लिया क्योंकि परमात्मा तो निराकार है। चरन दास जी कहते हैं कि ‘‘निराकर तो ब्रह्म है माया है साकार।’’ इस प्रकार निराकार तो माया अर्थात् शरीर रूप में ही आता है। परमब्रह्म तो सनातन एवं निराकार है। वह कभी नहीं मरता। वह सदा रहता है। वह ब्रह्म है। वह अनादि है। वह अनन्त है।

हम केवल प्रभु की तरफ देखें ही नहीं वरन् उसकी तरफ चलें भी:-

प्रभु की दुनिया में सब जगह व्यवस्था है। आप देखंेगे कि सूरज नियमित रूप से निकलता है और सूर्य नियमित रूप से अपनी परिक्रमा करते हैं। जिनकी वजह से दिन और रात होते हैं। मौसम बदलते हैं। सभी काम एक सुव्यवस्थित रूप में एक धागे में पिरोकर के होता रहता है। वास्तव में हमारी चिन्ता करने वाला तो भगवान है। जिसने हमें भोजन दिया। जो हमें इस दुनिया में ले आया। माँस के एक लोथड़े को पालने के लिए उसने माँ के पास दूध दे दिया। माँ को प्यार दिया। माँ के अंदर यह भावना डाल दी कि पहले बच्चे का ध्यान रखों फिर तुम खाना खाओ। पहले बच्चे को देखो फिर तुम आराम से रहो। वास्तव में यह सब कुछ जो कराने वाला है वो तो प्रभु है। इस प्रकार मुख्य बात तो यह है कि हम प्रभु की तरफ केवल देखे ही नहीं वरन् उसकी तरफ चलें भी।

परमात्मा के ज्ञान में ही सारा ज्ञान समाहित हैं:-

हम अपनी अभिलाषायें क्यों बनाते हैं? प्रभु की अभिलाषा में ही हमारी भी अभिलाषा है। प्रभु के ज्ञान में ही हमारा भी ज्ञान है। बताते हैं कि हाथी के पैर में सबका पैर आ जाता है। हाथी के पैर में ऊँट का पैर भी आ जाता है। हाथी के पैर में शेर का भी पैर आ जाता है। हाथी के पैर में बड़े से बड़े आदमी का भी पैर आ जाता है। इसी प्रकार परमात्मा के ज्ञान में ही सारा ज्ञान समाहित है। परमात्मा ने तो हमें इस दुनिया में अपने को जानने के लिए उत्पन्न किया है। मुझे अपने को केवल इतना जानना है कि कि ‘‘मैं आत्मा हूँ।’’ आत्मा होने के नाते मैं परमात्मा का अंश या चिन्ह हूँ। इस प्रकार जो परमात्मा का गुण है वही परमात्मा का अंश होने के नाते हमारा भी गुण है इसलिए और हमें परमात्मा के गुणों पर चलते हुए ही परमात्मा द्वारा बताये गये सभी कार्यों को पूरा करना है।

– डाॅ. (श्रीमती) भारती गाँधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापिका-निदेशिका,

सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

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