बुलडोज़र और बेबसी
’रजनीश कपूर
दिल्ली की जहांगीर पुरी हो या देश का कोई भी शहरए आज बुलडोज़र के आतंक से सहमा हुआ है। हनुमान जयंती को हुई घटना के बाद जहांगीर पुरी में भी बुलडोज़र चले। वहाँ के लोग उसे प्रशासन द्वारा की गई साम्प्रदायिक कार्यवाही कह रहे हैं। प्रशासन इसे अतिक्रमण हटाने के क़ानून की सामान्य कार्यवाही बता रही है। प्रशासन की मानें तो बुलडोज़र केवल ग़ैर क़ानूनी दुकानों और लोगों द्वारा किए गए अतिक्रमण पर ही चला है।
कई टीवी चैनल इस पूरे घटनाक्रम को काफ़ी मुस्तैदी से दिखा रहे है। वहाँ एक ओर तो जिनका मकान या दुकान गिराया गया उनका पक्ष सामने रखा जा रहा है। वही दूसरी ओर सरकारी तंत्र का भी पक्ष सामने रखा जा रहा है। जहांगीर पुरी के निवासियों की मानें तो उन्हें इस कार्यवाही के लिए एक भी नोटिस नहीं दिया गया। प्रशासन के अनुसारए हर एक दुकान या मकान को पर्याप्त नोटिस भेजा गया और उसके बाद ही यह कार्यवाही कि गई। परंतु इस कार्यवाही का जहांगीर पूरी में हुए दंगे के बाद होना शायद यह संकेत नहीं दे रहा।
गौरतलब है कि अक्सर अतिक्रमण और अवैध निर्माण हटाने पर प्रशासन को काफ़ी विरोध का सामना करना पड़ता है। परंतु सोचने वाली बात यह है कि कहीं भी किसी प्रकार का अतिक्रमण या अवैध निर्माण रातों रात नहीं हो जाता। प्रशासन के अधिकारीए फिर वो चाहे नगर निगम के हों या स्थानीय पुलिस केए बिना उनके संज्ञान के ऐसा नहीं हो सकता। दरअसल अवैध निर्माण हों या अतिक्रमणए यदि उन्हें होते समय ही रोक दिया जाए तो ऐसी नौबत नहीं आती। परंतु भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी पहले रिश्वत की मोटी रक़म लेकर न सिर्फ़ ऐसा होने देते हैं बल्कि उच्च अधिकारियों या अदालत के दबाव में कार्यवाही का नाटक करते समय भी अच्छी ख़ासी रक़म ले लेते हैं।
लेकिन जहांगीर पुरी में जो हुआ वहाँ एक बात गौर करने लायक़ है। जिस समय अतिक्रमण और अवैध निर्माण गिराए जाने की कार्यवाही शुरू ही हुई थीए उसके चंद मिनटों में ही सुप्रीम कोर्ट ने वहाँ यथास्थिति बनाए रखते हुए इस पर रोक लगा दी। इस रोक की खबर मीडिया के माध्यम से तुरंत फैल गई। परंतु प्रशासन के अधिकारियों ने बुलडोज़र को नहीं रोका। उनका कहना थाए जब तक लिखित आदेश नहीं मिलेगा तब तक कुछ नहीं रुकेगा।
जहांगीर पुरी में हो रही कार्यवाही के चलते किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना न हो इसलिए वहाँ पर्याप्त मात्रा में पुलिस बल भी तैनात था। दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी मौक़े पर मौजूद थे। जब पत्रकारों ने पुलिस के अधिकारियों से पूछा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ऐसा क्यों हो रहा हैघ् तो उनका जवाब था कि वो केवल नगर निगम के अधिकारियों को सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं। कार्यवाही रोकने या शुरू करने में उनका कोई हस्तक्षेप नहीं है। परंतु जब बुलडोज़र थमा नहीं तो वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने यह बात सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में दोबारा लाई। कोर्ट ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए उसे तुरंत रोकने के आदेश दिए। फ़िलहाल वहाँ बुलडोज़र रुक गए हैं। परंतु बुलडोज़र पर राजनीति नहीं थमी।
यहाँ ये सवाल उठता है कि ऐसी कार्यवाहियों में बुलडोज़र का क़हर केवल मकान या दुकान मालिक पर ही क्यों चलता हैघ् क्या वे सारे अधिकारी या नेता जिनके अधीन यह इलाक़ा आता है वो दोषी नहीं हैं जिन्होंने ऐसे अवैध निर्माण या अतिक्रमण होने दिएघ् उन पर कोई गाज क्यों नहीं गिरतीघ् होना तो ऐसे चाहिए कि जिन.जिन अधिकारियों के कार्यकाल में ऐसे निर्माण या अतिक्रमण हुए हैं उनसे भी जवाब माँग जाए और उन पर भी उचित कार्यवाही हो। पुलिस की जिम्मेदारी कानून व्यवस्था बनाने के साथ ही शहर की सूरत बिगाड़ रहे अवैध निर्माण और अतिक्रमण की सूचना सम्बंधित नगर निगम को देकर उसे रुकवाने की भी होती है। सभी पुलिसकर्मियों को इस बात का पूरा ज्ञान है कि अवैध निर्माण रुकवाने में उनकी क्या भूमिका होती हैए परंतु वे इसे गम्भीरता से नहीं लेते। इसलिए अवैध निर्माण और अतिक्रमण रातों रात पनपते रहते हैं। अगर सभी एजेंसियाँ अपना काम सही समय पर ज़िम्मेदारी से करें तो ऐसी स्थित कभी भी उत्पन्न ना हो और बुलडोज़र की कार्यवाही के समय अधिकारी भी बेबस न हों।
’लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं।