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भारतीय खगोलविदों ने सौर-मंडल से बाहर के ग्रहों को सटीक रूप से समझने के लिए कार्यप्रणाली विकसित की

भारतीय खगोलविदों ने एक ऐसी कार्य प्रणाली विकसित की है जो पृथ्वी के वायुमंडल से हो रहे संदूषण और उपकरणीय प्रभावों तथा अन्य कारकों के कारण होने वाली गड़बड़ी को कम करके हमारे सौर-मंडल से बाहर के ग्रहों (एक्सोप्लैनेट्) से मिलने वाले डेटा की सटीकता को बढ़ा सकता है। इस प्रणाली को क्रिटिकल नॉइज़ ट्रीटमेंट एल्गोरिथम कहा जाता है और यह बेहतर सटीकता के साथ एक्सोप्लैनेट्स के पर्यावरण का अध्ययन करने में मदद कर सकती  है।

अत्यधिक सटीकता के साथ हमारे सौर-मंडल से बाहर के ग्रहों (एक्सोप्लैनेट्स) के भौतिक गुणों की समझ उन ग्रहों का पता लगाने में मदद कर सकती है जो पृथ्वी के समान हो सकते हैं और इसलिए भविष्य में रहने योग्य हो सकते हैं। इस उद्देश्य के साथ ही भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बैंगलोर में खगोलविदों का एक समूह भारत में उपलब्ध भू-सतह पर  आधारित ऑप्टिकल दूरबीनों और अंतरिक्ष दूरबीन “ट्रांजिटिंग एक्सोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट” या टीईएसएस द्वारा प्राप्त आंकड़ों का उपयोग कर रहा है।

भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के प्रो. सुजान सेनगुप्ता और उनकी पीएच.डी. छात्र अरित्रा चक्रवर्ती और सुमन साहा भारतीय खगोलीय वेधशाला, हनले में हिमालयन चंद्र टेलीस्कोप और वैनु बप्पू वेधशाला, कवलूर में जगदीश चंद्र भट्टाचार्य टेलीस्कोप का उपयोग हमारे सौर-मंडल से बाहर के ग्रहों (एक्सोप्लैनेट्स) के संकेत प्राप्त करने के लिए कर रहे हैं। फोटोमेट्रिक ट्रांजिट विधि के बाद उन्होंने अब ग्रह युक्त कई सितारों से फोटोमेट्रिक डेटा प्राप्त कर लिए हैं।

हालांकि विभिन्न स्रोतों के कारण उत्पन्न शोर से पारगमन संकेत बहुत अधिक प्रभावित होते हैं और जो ग्रहों के भौतिक मापदंडों का सटीक अनुमान लगाने में एक चुनौती भी बनते हैं। प्रो. सेनगुप्ता की अगुआई वाली टीम ने एक महत्वपूर्ण शोर उपचार एल्गोरिदम विकसित किया है जो जमीन और अंतरिक्ष-आधारित दोनों दूरबीनों द्वारा पता लगाए गए पारगमन संकेतों का पहले से कहीं बेहतर सटीकता के साथ वांच्छित परिष्करण कर सकता है ।

हाल ही में, साहा और सेनगुप्ता ने टीईएसएस (ट्रांजिटिंग एक्सोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट)  अंतरिक्ष दूरबीन (स्पेस टेलीस्कोप) के डेटा का गंभीर विश्लेषण करके इस एल्गोरिथम की प्रभावशीलता का प्रदर्शन किया है तथा उपकरणीय (इंस्ट्रूमेंटल) शोर को कम करने के साथ ही  मेजबान सितारों की परिवर्तनशीलता और स्पंदन से उत्पन्न होने वाली गड़बड़ी को भी कम किया है तथा सटीक रूप से कुछ एक्सोप्लैनेट्स के भौतिक मापदंडों का अनुमान लगाया है। यह कार्य अमेरिकन एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी (एएएस) द्वारा एक सहकर्मी की समीक्षा की गई वैज्ञानिक पत्रिका द एस्ट्रोनॉमिकल जर्नल में प्रकाशित किया गया है ।

चित्र-1 : वेणु बप्पू वेधशाला, कवलूर, तमिलनाडु में 1.3-मीटर वर्ग जगदीश चंद्र भट्टाचार्य टेलीस्कोप का उपयोग करके प्राप्त एक्सोप्लैनेट डब्ल्यूएएसपी -43 बी से प्राप्त संकेत

चित्र 2 : भारतीय खगोलीय वेधशाला, हानले, लद्दाख में 2-मीटर वर्ग हिमालयन चंद्र टेलीस्कोप का उपयोग करके प्राप्त किए गए एक्सोप्लैनेट एचएटी –पी -54 बी से प्राप्त संकेत

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चित्र 3 : नासा द्वारा प्रक्षेपित और संचालित  अंतरिक्ष दूरबीन ( स्पेस टेलीस्कोप  ) टीईएसएस द्वारा प्राप्त एक्सोप्लैनेट केईएलटी -7 बी से प्राप्त संकेत

प्रकाशन लिंक: https://doi.org/10.3847/1538-3881/ac294d

अधिक जानकारी के लिए प्रो. सुजान सेनगुप्ता (sujan@iiap.res.in) और सुमन साहा  (suman.saha@iiap.res.in ) से संपर्क किया जा सकता है ।

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