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मुलायम नहीं थे समाजवादी – रामेश्वर मिश्र पंकज

मुलायम नहीं थे समाजवादी – रामेश्वर मिश्र पंकज

मुलायम सिंह यादव नहीं रहे ।वह मुझ से 6 वर्ष बड़े थे।परन्तु वे समाजवाद से जुड़े नहीं थे।यह मैं बल देकर कह रहा हूँ।क्योंकि युवावस्था में मैं समाजवादी था और डॉ लोहिया जी का स्नेहभाजन था ।जॉर्ज फ़र्नान्डिस, राजनारायण जी मधु लिमए जी सभी से मेरा घनिष्ठ संबंध था ।

समाजवादी लोगों में रामसेवक यादव एक बहुत ही तेजस्वी और अत्यंत प्रतिभाशाली नेता थे ।उनकी स्मरण शक्ति और उनका वक्तृत्वकौशल भी अनूठा था ।
वैसा कोई वक्ता समाजवादी आंदोलन में दूसरा नहीं हुआ।
1967 में जब डॉ लोहिया और रामसेवक यादव आदि के प्रयास से गैर कांग्रेस वाद की हवा चली ,तब रामसेवक जी ने मुलायम सिंह को खड़ा किया और वह पहली बार विधायक बने ।तब तक वे समाजवाद के विचार से पूर्ण तरह अपरिचित थे और रामसेवक जी के विनम्र सेवक के रूप में ही थे। गैर कांग्रेस वाद की हवा का लाभ उन्हें मिला ।परंतु अपने संरक्षक रामसेवक यादव की पार्टी उंन्होने बहुत जल्दी छोड़ दी और जल्दी ही वे चरण सिंह के साथ होलिए।
1977 में जब जनता पार्टी की सरकार आई तो उत्तर प्रदेश में जनता सरकार बनी। वह उस में मंत्री रहे और कांग्रेस की सरकार में भी मंत्री रहे ।वे चौधरी चरण सिंह के लोक दल से जुड़े रहे ।
संपूर्ण क्रांति आंदोलन में वस्तुतः उनकी कोई भी भूमिका नहीं थी।
निश्चय ही आपातकाल में उन्हें जेल जाना पड़ा परंतु इसका कारण चौधरी चरण सिंह के सहायक होना था। न कि जयप्रकाश नारायण जी से और उनके आंदोलन से कोई संबंध होना ।

जयप्रकाश नारायण जी से मुलायम सिंह यादव का संबंध लगभग नहीं था और डॉक्टर लोहिया से भी उनका कोई निकट का संबंध नहीं था ।
केवल रामसेवक यादव के कारण ही वे कुछ समय समाजवादी बने ।परंतु शीघ्र ही चौधरी चरण सिंह के सहायक बन गए ।समाजवादी पार्टी इसके बहुत बाद 1992 में जाकर बनाई ।
चरण सिंह की पार्टी लोकदल का विभाजन होने के बाद उन्होंने एक मोर्चा बनाया था। बाद में चंद्रशेखर जी के जनता दल से जुड़े परंतु उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बने रहने के लिए उन्होंने कांग्रेस पार्टी का सहारा लिया ।
जब कांग्रेस के सहयोग से मुख्यमंत्री थे उस समय ही उन्होंने अयोध्या में कारसेवकों पर 1990 में गोली चलवाई। उत्तराखंड के आंदोलनकारियों पर उन्होंने मुजफ्फरनगर में 1994 में गोलियां चलाई और बहुजन समाजवादी पार्टी की नेता मायावती से भी अत्यंत घृणित व्यवहार उनके लोगों ने किया।
इन्होंने 1992 में जो समाजवादी पार्टी बनाई थी ,वह केवल नाम से समाजवादी थी ।वह एक जातिवादी दल है और उस पार्टी का डॉक्टर लोहिया या रामसेवक यादव के विचारों से कोई भी संबंध नहीं और ना ही चौधरी चरण सिंह के विचारों से उसका कोई संबंध है।

इस प्रकार मुलायम सिंह यादव की राजनीति को किसी भी प्रकार की वैचारिक राजनीति कहना स्वयं को छलना और झूठ बोलना है।
उनका विचारों से कोई संबंध नहीं ।
किसी तरह पद प्राप्त करने की राजनीति उनकी रही है।

किस तरह नाम के जरिए या किसी अन्य पहचान के जरिए लोग रिश्ते बनाते हैं यह देखना हो तो समाजवादियों ने मुलायम सिंह यादव से अपने को जो एकाकार किया वह उसका सबसे रोचक और दयनीय दृष्टांत है।
समाजवाद से मुलायम सिंह यादव का कोई लेना देना नहीं था परंतु समाजवादी केवल इसलिए उन्हें अपना कहने लगे कि वह शब्द 1992 में उन्होंने अपनी पार्टी को दिया था ।
जसवंत नगर से संसपा के चुनाव चिन्ह पर जीते अवश्य थे पर वह रामसेवक यादव के कहने पर ।न कि किसी विचार के कारण ।
इसके बाद वे लगातार 1969 से 1989 तक 20वर्षों तक चौधरी चरण सिंह के शिष्य रहे। और समाजवाद से उनका विरोध का रिश्ता था ।
1989 में वे चंद्रशेखर जी के निकट आए और जनता दल से विधायक हुए तथा मुख्यमंत्री भी ।1992 में जाकर उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाई ।

इस के बाद ही वे अपनी समाजवादी पार्टी के नेता बने जिसका लोहिया जी या राम सेवक यादव या राजनारायण किसी के भी विचार से कोई भी संबंध नहीं था ।नाम के आधार पर किसी को किसी विचार का मानने वाला कह देना विचार हीनता का ही प्रमाण है ।
लेकिन भारतीय संचार माध्यमों में यह सब बहुत होता है और राजनीति में भी चलता है ।

उनसे मेरा परिचय डॉक्टर लोहिया के निजी सहायक रह चुके श्री कमलेश शुक्ला जी ने कराया था और वह प्रेम से ही मिले थे।
परंतु तब भी उन्होंने कोई समाजवादी विचारों की बात कभी नहीं की। उसके बाद से उन्होंने 1990 में अयोध्या के निर्दोष कारसेवकों पर गोली चलाई तब से तो मेरा उनसे कोई संवाद संभव ही नहीं रहा।

इस विषय में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात याद आती है जिससे पता चलता है कि सर्वसाधारण को अयोध्या के कारसेवकों पर गोली चलाना कितना भयंकर, कितना घिनौना और कितना क्रूर कर्म लगा था ।
अगले ही दिन 31 अक्टूबर 1990 को मेरे पास दिल्ली के एक बहुत बड़े पत्रकार जो मेरे मित्र थे, आए और उन्होंने बहुत ही आत्मीय स्वर में और बहुत ही उदास स्वर में यह कहा कि इस घृणित पाप के लिए किसी भी प्रकार मुलायम सिंह यादव की हत्या होनी चाहिए।

मैंने कहा कि आपकी बात तो उचित है ।पर इसकी सामर्थ्य हममें नहीं है ।मेरे पास ऐसी कोई भी शक्ति नहीं।

इस पर उन्हें यह याद था कि 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने पर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बड़े कई कुख्यात लोगों ने चंबल के डाकुओं की तर्ज पर आत्मसमर्पण की इच्छा जताई थी और मेरे पास आए थे ताकि मैं उन्हें जनता पार्टी के नेताओं के समक्ष समर्पण के लिए ले जाऊँ।
आश्चर्य की बात है कि यह बात उन पत्रकार महोदय को याद थी और उन्होंने कहा कि आपके तो ऐसे ऐसे लोगों से संबंध है ।
मैंने कहा ,”वह बहुत पुरानी बात है।
इस बीच में केवल अध्ययन में प्रवृत्त हो गया हूं और ऐसे कोई संबंध मेरे नहीं हैं।
होते तो मैं यह अवश्य करता ,जो आप कह रहे हैं। ”
पर वे कहते रहे कि यह होना चाहिए।

यहां उद्देश्य केवल यह बताना है कि अयोध्या के निर्दोष कारसेवकों पर गोली चलाना इतना भयंकर और इतनाघृणित दुष्कर्म था किउसके लिए मुलायम सिंह को कोई भी अच्छा,सदाचारी ,धर्म निष्ठ व्यक्ति कभी क्षमा नहीं कर सकता।
जो मुझसे इस प्रकार का आग्रह कर रहे थे ,वे अत्यंत शांत स्वभाव के हैं और उन्होंने जीवन में कभी कोई हिंसा नहीं की और ना ही वे मुझे कोई हिंसक व्यक्ति मानते थे। परंतु कितने दुखी थे ,कितनी गहराई से दुखी थे, इसका यह एक प्रमाण है कि मानो,कोई भी सहारा लेकर वे यह देखना चाहते थे कि ऐसा आततायी नराधम व्यक्ति जीवित नहीं रहे।

राजनेता आपस में मिलते हैं ,मिलते रहेंगे ।
परंतु लोक मन मे कुछ बातें स्थाई रहती हैं।

अयोध्या के निर्दोष कारसेवकों पर गोली चलाने तथा उत्तराखंड की पवित्र बहनों के साथ दुराचार दुर्व्यवहार लाठी चालन और गोली चलाना मुलायम सिंह यादव के प्रति लोकमानस में बहुत गहराई तक अंकित है और जिसे कोई भी धर्मनिष्ठ, सदाचारी व्यक्ति कभी भी क्षमा नहीं कर सकता ।
नेता क्या कहते हैं और क्या करते हैं ,यह अलग बात है।
परंतु लोकमानस का प्रवाह अपने ढंग से चलता है ।

यह बताने के लिए इस घटना का उल्लेख करना मुझे उचित लगा।।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।

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