इलेक्ट्रोल बॉन्ड से अडानी अम्बानी का नाम गायब है बस इसी से राहुल सहित पूरे विपक्ष के मुंह पर जूता पड़ गया है-
अच्छा डोनेशन हर पार्टी प्राप्त करती है-
जो पार्टी सत्ता में रहती है वह अधिक पाती है, और जो विपक्ष में है उसे कम मिलता है —
और यह कोई गुप्त रहस्य नहीं बल्कि राजनीति का आदिकालीन सुस्थापित सत्य है,जिस इंडीविजुअल या कंपनी का जिस पार्टी को सपोर्ट करने का मन हुआ उसने उसे इलेक्टोरल बाँड्स के माध्यम से पैसा दिया-
यहाँ प्रश्न यह है कि मेरी धनसंपदा सिर्फ मेरी है – मैं जिसे मर्जी उसे दूँ. . . इसमे अनुचित क्या है-?
कि कोई इसे “स्कैम” कहने की मूर्खतापूर्ण हेकड़ी दिखाये-???
लेकिन युवराज न केवल इसे स्कैम कह रहा हैं, बल्कि खुलेआम उन उद्योगपतियों / उद्योग-समूहों को धमका भी रहा हैं कि जिस दिन हम पॉवर में आ गये उस दिन तुम्हारा जीना हराम कर देंगे- और धमकी देने की क्या वजह है? वजह है खुद को कम और भाजपा को अधिक डोनेशन मिलने से उपजी कुंठाजनित प्रतिशोध की भावना, और यह भय — कि भाजपा को यदि इसी तरह भर भर के फाइनैंशियल सपोर्ट मिलता चला गया तो वह कांग्रेस को हमेशा के लिये भारतीय पॉलिटिकल एरेना से बाहर धकेल कर उस सिंहासन पर स्थाई रूप से नियंत्रण हासिल कर सकती है जो दशकों तक नेहरू-गांधी खानदान की निजी जागीर रहा है-
कांग्रेस और विशेषतः गांधी परिवार का यह मानना है कि जिस तरह छत्ते की लाखों मधुमक्खियाँ बस एकमात्र रानी मक्खी के लिये छत्ते का निर्माण करती हैं और रातदिन परिश्रम करके उसके लिये शहद बनाती हैं –
उसी तरह इस देश मे उद्योग चलाने वाले हर इंड्रस्टलिस्ट की वेल्थ के सबसे मोटे भाग पर गांधी-परिवार का जन्मसिद्ध नैसर्गिक अधिकार है, और वह किसी अन्य दल या नेता के साथ इसे साझा नहीं कर सकता, ऐसा करना “राजपरिवार” से द्रोह माना जायेगा, और इसके लिये ऐसा लेजेंड्री दंड दिया जायेगा कि आपका अरबों-खरबों का कारोबारी एंपायर फुटपाथ पर आ जायेगा-
आज तक गांधी-परिवार का बनाया यह अलिखित संविधान परदे के पीछे ही चलता था, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि मोदी से पार न पा सकने की हताशा में क्रोध से पागल हो रहा दुर्योधन अर्थव्यवस्था के भारी पहिये को घुमाने वाले उद्योगजगत को आज सार्वजनिक रूप से किसी सड़कछाप गुंडे की तरह हाथ मे चाकू उठाये धमका रहा है-
जब कोई इलाकाई शोहदा हद से अधिक सरहंग हो जाता है और असलहे के दम पर धमका कर बाजार के दुकानदारों से आये दिन इस हद तक रंगदारी वसूल करने लगता है कि उनके लिये चैन से व्यापार करना दूभर हो जाये, तो वह दुकानदार क्या करते हैं, मालूम है-?
वह किसी स्थानीय नेता या मंत्री से मिल कर उसे एकमुश्त चढ़ावा चढ़ा देते हैं,फिर दो-चार दिन में इलाके के पुलिस कप्तान को मंत्री जी का फोन आता है, और फिर हफ्ते दस दिन के भीतर ही कहीं उस गुंडे का एनकाउंटर होने की न्यूज आती है-
पुलिस को हफ्ता पहुँचा कर खुद को फैंटम और पुलिस को अपना जेबी खिलौना समझते आये गुंडे को एकबारगी यकीन नही होता कि आज वही पुलिस उसे वीराने में लाकर ठोंक कैसे सकती है, लेकिन अफसोस, गुंडे को जब यह गणित समझ आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और उसके पास बच निकलने का कोई मौका नहीं रहता उस दिन –
रियल लाइफ में ऐसे कई गुंडों का अंत इसी दारुण तरीके से हुआ, और फिर दुकानदारों के साथ साथ पूरे इलाके ने राहत की साँस ली-
भगवान ना करे पर मुझे डर है कि उद्योगपतियों के साथ सीधी गुंडई पर उतर आये दुर्योधन का भी कुछ ऐसा ही अंजाम न हो जाये. . . आखिर पानी अब नाक के ऊपर जाता दिख रहा है, और हाँ, आप एनकाउंटर को यहाँ लिटरल अर्थों मे पकड़ के ना चलें। एनकाउंटर / असैसीनैशन फिजिकल ही नहीं — पॉलिटिकल भी हो सकता है,चल रहे दर्जनों केसेज में से किसी एक में भी दस साल की सजा हो गयी न, तो उसी दिन दुर्योधन, दुःशला (जिज्जी) और जयद्रथ (जीजू) के राजनीतिक जीवन का अंत और भारत से कांग्रेस का स्थाई सफाया हो जायेगा- यह मेरा कथन सनद रहे-!