*रजनीश कपूर
राज्य सभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का एक
विडीओ काफ़ी चर्चा में था। प्रश्न के उत्तर में मंत्री जी ने ऐसे कई दावे कर दिए जो यदि समय पर सच हुए
तो हर भारतीय का सीना फूला नहीं समाएगा। परंतु सवाल उठता है कि अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए
नेताओं द्वारा किए गए ऐसे वादों और दावों में कहीं निर्माण की गुणवत्ता के साथ समझौता तो नहीं हो
रहा?
पिछले दिनों हुई वर्षा के कारण हिमाचल प्रदेश व अन्य पहाड़ी राज्यों में हुए भूस्खलन की खबरें आपने
ज़रूर पढ़ी होंगी। आए दिन ऐसी दुर्घटनाओं में जान-माल का काफ़ी नुक़सान होता है। पहाड़ों पर होने
वाली इन दुर्घटनाओं को कुदरत का क़हर कह कर पल्ला झाड़ लिया जाता है। लेकिन सत्य इसके विपरीत
है। प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ हमें बहुत महंगी पड़ रही है, इस बात के सैंकड़ों उदाहरण मिल जाएँगे। ऐसी
दुर्घटनाओं के पीछे बहुत सारे निहित स्वार्थ कार्य करते हैं जिनमें राजनेता, अफ़सर और निर्माण कम्पनियाँ
प्रमुख होती हैं। क्योंकि ऐसे आत्मघाती ‘विकास’ के पीछे केवल आर्थिक मुनाफ़ा ही सर्वोच्च प्राथमिकता
होता है।
ये मुनाफ़ा करने वाले लोग नेताओं से बड़े-बड़े ऐलान तो ज़रूर करवा देते हैं, लेकिन इन ऐलानों के पीछे
छिपे अपने स्वार्थ को कभी सामने नहीं आने देते। इन भ्रष्ट अफ़सरों और निर्माण कम्पनियों का भांडा तब
फूटता है जब लोकार्पण के कुछ ही दिनों बाद अरबों रुपए की लागत से बने राजमार्ग या एक्सप्रेस-वे
गुणवत्ता की कमी के चलते या तो धँस जाते हैं या बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि ऐसी
धांधली केवल सड़क मार्गों पर ही होती है। ऐसा भी देखने को मिला है जब रेल की पटरियाँ भी धँस गई
और रेल दुर्घटना हुई।
मिसाल के तौर पर दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र जैसे बड़े-बड़े राज्यों से वर्षा के दिनों में सड़कों के धँस जाने
के कई मामले हाल ही में सामने आए हैं। ग़ौरतलब है कि ये परियोजनाएँ किसी और लक्ष्य को ध्यान में रख
कर बनाई जाती हैं। सड़क के बनने में ठेका किसे मिले पहले उसकी योजना बनाई जाती है। जितनी महंगी
परियोजना होती है उतनी जल्दी उसे मंज़ूरी मिलती है। फिर उसमें उतना ही ज़्यादा कमीशन बनता है।
यह कोई नयी बात नहीं है सदा से यही चला आ रहा है और आजतक कुछ भी नहीं बदला हालाँकि
पारदर्शिता के दावे बहुत किए गये।
सड़क बनने के बाद यदि किन्ही कारणों से सड़क पर कोई टूट-फूट होती है तो उसकी मरम्मत की ठेकेदारी
पर भी ठीक वैसा ही होता है जैसा सड़क के बनने पर हुआ था। दोनों ही स्थितियों में धनलक्ष्मी की अहम
भूमिका होती है। परंतु कुछ काम ऐसे होते हैं जिनमें आर्थिक लाभ के बजाए जनहित को महत्व देना बेहतर
होता है।
नितिन गड़करी हों या भविष्य में आने वाले मंत्री, इन सबको जनहित के कार्यों में जनता के हित को ही
महत्व देना चाहिए। ये आम मतदाता की अपेक्षा रहती है। गडकरी ने राज्य सभा में कहा कि 2024 से
पहले देश की सड़कों को अमेरिका जैसा कर दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस साल दिसंबर तक
दिल्ली से कई शहर 2 घंटे की दूरी पर होंगे। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि, “दिल्ली से मेरठ
चालीस मिनट में आते हैं। मेरठ के लोगों ने बताया कि हम कनॉट प्लेस जाते हैं और आइसक्रीम खाते हैं
और वापस मेरठ आ जाते हैं।” यह बात अगर सच है तो तारीफ़ के काबिल है। पिछले वर्ष मेरा राजस्थान
के जैसलमेर जाना हुआ। वहाँ भारत माला परियोजना के तहत बनी नई सड़कों पर चलते हुए इस बात का
यक़ीन नहीं हो रहा था कि हम भारत में हैं। ऐसा ही कुछ अनुभव तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद की नई
बनी रिंग रोड पर भी हुआ जहां गाड़ियाँ हवा से बातें कर रही थीं।
नितिन गडकरी ने आने वाले कुछ महीनों में बनने वाले राजमार्गों की लिस्ट गिनाते हुए कहा कि “दिल्ली
से दो घंटों की दूरी तय करने वाले शहर होंगे जयपुर, हरिद्वार और देहरादून। दिल्ली से अमृतसर की दूरी
4 घंटे में और दिल्ली से मुंबई की दूरी 12 घंटे में इसी साल दिसंबर से पहले हम संभव कर देंगे।” उन्होंने ये
भी कहा कि दक्षिण भारत में भी यह काम चल रहा है।चेन्नई से बेंगलुरू की दूरी भी 2 घंटे में तय हो
जाएगी।
नितिन गड़करी के बारे में यह कहा जाता है कि वो एक कर्मठ नेता हैं, जो लक्ष्य कि पूर्ति के लिए गुणवत्ता
से समझौता नहीं करते। पिछले दिनों गड़करी का एक निरीक्षण सुर्ख़ियों में था जहां वे निर्माणाधीन दिल्ली
मुंबई एक्सप्रेसवे के निरीक्षण के लिए रतलाम पहुँचे। उस हिस्से का स्पीड टेस्ट करने के लिए अपनी गाड़ी
को 150 तेज़ गति से चलवाया। इस स्पीड टेस्ट से वे काफ़ी संतुष्ट नज़र आए। ग़ौरतलब है कि अन्य नेताओं
की तरह वे चाहते तो वे भी हेलीकाप्टर से निरीक्षण कर लौट सकते थे। परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया।
स्पीड टेस्ट कर उन्होंने एक मिसाल क़ायम की जो भविष्य में आने वाले सड़क एवं राजमार्ग मंत्रियों के
लिए उपयोगी होगी। इतना ही नहीं सड़क या राजमार्ग बनाने वाली कम्पनी को भी इस बात का डर
रहेगा कि उनके द्वारा बनाई गई सड़क के किसी भी हिस्से पर ऐसा स्पीड टेस्ट हो सकता है।
अभी भी सुधार की गुंजाइश है। लक्ष्य पूर्ति के साथ गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाए। यह तो आने वाला
समय ही बताएगा कि इन घोषणाओं के चलते किए गए ये दावे गुणवत्ता के पैमाने पर कितने खरे उतरते
हैं? चूँकि ऐसी योजनाओं में भ्रष्टाचार तों अपने पाँव पसारता ही है? ऐसे में जनहित का दावा करने वाले
नेता क्या वास्तव में जनहित करे पाएँगे?