रुश्दी पर हमला, किताब का जवाब किताब से दिया जाये
अथवा
भारत को क्यों चाहते हैं रुश्दी
आर.के. सिन्हा
अगर आप कभी हिमाचल प्रदेश के बेहद खूबसूरत शहर सोलन में घूमने के लिये जायें तो आपको वहां कोई स्थानीय शख्स बता ही देगा कि यहां पर मशहूर लेखक सलमान रुश्दी का भी बंगला है। इसे उनके पिता अनीस अहमद ने बनवाया था। उसे लेने के लिये “सेटेनिक वर्सेज” तथा “मिडनाइट चिल्ड्रन” जैसी बहुचर्चित कृतियों के लेखक सलमान रुश्दी ने कानूनी जंग लड़ी थी और अंत में विजयी भी रहे थे। सलमान रुश्दी को हम मोटा-मोटी एक प्रख्यात लेखक के तौर पर ही जानते हैं। वैसे वे भारतीय मूल के लेखक हैं जो इंग्लैंड-अमेरिका में रहते हैं। उनके पिता दिल्ली वाले थे और रुश्दी का जन्म मुंबई में हुआ था। इसलिये उन पर हाल ही में न्यूयार्क में हुये जानलेवा हमले को किसी भी सच्चे भारतीय द्वारा नजरअंदाज करना मुश्किल है।
अफसोस तो यह है कि हमारे यहां हमले को लेकर न तो सेक्युलर ब्रिगेड ने कोई तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और न ही मुस्लिम समाज ने। सलमान रश्दी पर न्यूयॉर्क में चाकू से आक्रमण हुआ है। सलमान रुश्दी एक कार्यक्रम में मंच पर बैठे थे कि एक आतंकी ने उनपर चाकू से हमला कर दिया। गर्दन पर 10 से 15 बार वार किया गया । उन्हें एयरलिफ्ट कर तत्काल अस्पताल पहुंचाया गया है। आक्रमण करने वाले को भी गिरफ्तार किया गया है। विदित हो कि सेटेनिक वर्सेज किताब को लेकर कुछ इस्लामिक कट्टरपंथी लंबे समय से रुश्दी को मारने के फ़िराक़ में थे। लंबे समय तक वह ब्रिटेन में अंडरग्राउंड रहे। अब वह साहित्यिक कार्यक्रमों में जाने लगे थे, मगर कट्टरपंथियों को यह नहीं पसंद आया। इसीलिए तो कट्टरपंथियों को इंसानियत का दुश्मन कहा जाता है ।
किसी लेखक से सहमति-असहमति अपनी जगह है I लेकिन, उस पर हमला करना कायरता का सबसे घटिया प्रदर्शन है। कट्टरपंथ हर धर्म का दुश्मन है और ऐसी कायरता का प्रेरक बनता है। सलमान रुश्दी का हमलावर पेशेवर गुंडे से कम नहीं हैं। दुनिया मध्यकाल से आगे बढ़ चुकी है और हर धर्म को अपने भीतर आलोचना सहने की ताक़त तो विकसित करनी ही होगी। सलमान रुश्दी पर हमले ने एक बार फिर सेटेनिक वर्सेज के बारे में दुनिया की दिलचस्पी जगा दी है। भारत में यह किताब प्रतिबंधित है, इसलिए अमेजोन जैसी ऑनलाइन शॉपिंग साइटों पर भी यह नहीं मिलती। लेकिन कुछ साइटों पर इसका पीडीएफ़ संस्करण उपलब्ध है। जिस व्यक्ति ने सलमान रुश्दी पर हमला किया है, वह ख़ुद को बड़ा हीरो और अल्लाह और इस्लाम का बड़ा सेवक समझ रहा होगा। सोच रहा होगा, मरने पर उसे जन्नत मिलेगी। लेकिन हक़ीकत यह है कि ऐसा करके वह सेटेनिक वर्सेज को और ज़्यादा लोकप्रिय बना रहा है और नई पीढ़ी के लोगों तक पहुँचा रहा है और अपने धर्म के बारे में नकारात्मक राय फैला रहा है। ऐसे जाहिलों की बर्बादी में ही सभी धर्मों के नागरिकों और दुनिया का भला है।
सलमान रुश्दी आज के दिन ब्रिटिश नागरिक हैं। जब वहां इनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए तो ब्रिटिश समाज ने ये कहकर इन लोगो की निंदा की और कहा कि आप यहां हमारी मिलों- कारखानों में काम करने आते है, तो काम कीजिए। आपका कोई मतलब नहीं हमारे कानूनों के बारे में उंगलियां उठाने का, न हमारे खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने का। ये देश हमारा है यहां हमारे कानून चलेंगे। पश्चिम आज भी अपनी उसी पॉलिसी पर खड़ा है अभिव्यक्ति के मामले में वो कभी पाबंदी नहीं लगाता। भारत पाकिस्तान या खाड़ी के देश इनसे अलग हैं। खासकर भारत पाकिस्तान के मुसलमान ही सबसे ज्यादा इस्लाम का झंडा उठाते हैं। यहां भी और बाहर के मुल्कों में भी।
देखिए मुसलमानो को हर देश के कल्चर को समझना होगा I आप हर जगह अपनी मनमानी नहीं कर सकते। किताब का जवाब किताब ही होना चाहिए, बंदूक की गोली या चाकू की धार नहीं। सलमान रुश्दी ने एक बार सही कहा था कि ‘इस्लाम का हिंसक रूप भी इस्लाम ही है जो पिछले वर्षों के दौरान बहुत ही ताकतवर बनकर उभरा है।‘ रुश्दी अपनी बेबाक राय के लिए हमेशा से ही कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे हैं और उनके उपन्यास से नाराज ईरान ने उनके सिर कलम करने का फतवा तक जारी कर दिया था। ईरान के शासक अयतुल्ला खोमैनी ने रुश्दी का सिर काटकर लाने वालों को भारी इनाम देने का ऐलान कर दिया था। अगर रुश्दी की राय से इतर बात हो तो माना जा सकता है कि आतंकवाद और इस्लाम का कोई संबंध हो ही नहीं सकता। जो मुसलमान इस्लाम का नाम लेकर कभी और कहीं भी आतंकवादी घटना में लिप्त होते हैं, दरअसल वे मुसलमान नहीं हैं। उनका इस्लाम से हरगिज कोई संबंध नहीं हो सकता। पर यह भी सच है कि पेशावर में बड़ी संख्या में स्कूली बच्चों का कत्लेआम करने वाले अपने को मुसलमान ही बता रहे थे। मुंबई में साल 2008 में पाकिस्तान से आए आतंकियों की अंधाधुंध गोलियों से देश दहल गया था। कितने ही निर्दोष लोग मार डाले गये थे। उस कत्लेआम को अंजाम भी तो मुसलमानों ने ही दिया था। केन्या के वेस्टगेट मॉल में साल 2014 में बीसियों लोगों को मारने वाले अल-शबाब के आतंकवादी भी मुसलमान ही थे। हालांकि, यह सुनने में बहुत ही अच्छा लगता है कि किसी भी आतंकी वारदात में शामिल होने वाला शख्स सिर्फ इन्सानियत का दुश्मन है।
भारत में तो सलमान रुश्दी पर हमले की हर इंसान को निंदा करनी चाहिये। वे भले ही सारी दुनिया में मशहूर हों, पर वे अपने को भारत से जोड़कर ही देखते हैं। सलमान रूश्दी पिछले कई बरसों से अपने परिवार के दिल्ली के घर को लेने की कोशिश कर रहे हैं। उनके पिता का राजधानी के फ्लैग स्टाफ रोड पर बंगला है। सलमान रुश्दी के पिता अनीस अहमद दिल्ली के मशहूर वकील थे। उन्होंने सन 1946 फ्लैग स्टाफ रोड का बंगला खरीदा था। कहते हैं, अनीस अहमद 1960 के दशक में लंदन चले गए। वे देश के बंटवारे के समय भी पाकिस्तान नहीं गए थे। लंदन से कभी-कभार ही दिल्ली आते। वे 1970 में दिल्ली आए। तब उन्होंने अपना बंगला स्वाधीनता सेनानी और कारोबारी भीखूराम जैन को रेंट पर दे दिया।
भीखू राम जैन ने 4 फ्लैग स्टाफ रोड के बंगले को तुरंत किराए पर ले लिया। इस डील के चंदेक दिनों के बाद अनीस अहमद फिर से भीखूराम जैन से मिले। उन्होंने जैन से अपने बंगले को खरीदने की पेशकश की। 1980 में चांदनी चौक से लोकसभा के लिए चुने गए भीखूऱाम जैन अनीस अहमद के बंगले को खरीदने के लिए राजी हो गए। तय हुआ कि वे 3. 75 लाख रुपए में बंगला खरीद लेंगें। उन्होंने 50 हजार रुपए बयाना अनीस अहमद को दे दिया। शेष रकम 15 महीने में दी जानी थी। अनीस अहमद बयाना लेकर एक बार जो लंदन गए तो वे फिर कभी नहीं लौटे। वहां पर ही उनकी 1984 में मृत्यु हो गई। भीखूऱाम जैन बताते थे कि उन्होंने अनीस अहमद को बार-बार भारत बुलाया ताकि डील को अंतिम रूप दिया जा सके। पर वे नहीं आए। ताजा स्थिति यह है कि 4 फ्लैग स्टाफ रोड के बंगले के स्वामित्व को लेकर विवाद जारी है। अब भीखूराम जैन तथा अनीस अहमद गुजरे हुए भी एक जमाना हो गया। बहरहाल, 4 फ्लैग स्टाफ रोड बंगले के मालिकाना हक के लिए आधी सदी से केस चल रहा है। जैन साहब के बाद उनके पुत्र नरेन केस को लड रहे हैं । वे सलमान रुश्दी पर हुए हमले से आहत हैं। बहरहाल, इतना तो तय है कि सलमान रुश्दी भारत को चाहते हैं। इसलिये ही वे यहां की अपनी अचल संपत्तियों को वापस लेने की कोशिशें कर रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)