रूस.यूक्रेन युद्ध के भारत पर परिणाम
विनीत नारायण
पूरी दुनिया यूक्रेन रूस के युद्ध को लेकर बेचैन है। भारत की बड़ी चिंता उन विद्यार्थियों को लेकर है जो यूक्रेन में अभी फँसे हुए हैं। जो विद्यार्थी जोखिम उठा करए तकलीफ़ सहकरए भूखे प्यासे रह कर यूक्रेन की सीमाओं को पार कर पा रहे हैंए उन्हें ही भारत लाने का काम भारत सरकार कर रही है। पर जो युद्धग्रस्त यूक्रेन के शहरों में फँसे हैंए ख़ासकर वो जो सीमा से कई सौ किलोमीटर दूर हैंए उनकी हालात बहुत नाज़ुक है। वे बार.बार सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें जल्दी से जल्दी वहाँ से सुरक्षित निकाला जाए अन्यथा वे ज़िंदा नहीं बचेंगे। चूँकि इस युद्ध में भारत रूस के साथ खड़ा हैए इसलिए यूक्रेन की सेना और नागरिक भारतीयों से नाराज़ है और मदद करना तो दूर छात्रों को यातनाएँ दे रहे हैं। ऐसा उन विद्यार्थियों के वायरल होते विडीयो में देखा जा रहा है। इसके साथ ही इस युद्ध से जो दूसरी बड़ी चुनौती है उसके भी दीर्घगामी परिणाम हम भारतवासियों को भुगतने पड़ सकते हैं।
सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो॰ अरुण कुमार ने भारत की अर्थव्यवस्था पर इस युद्ध के परिणामों को लेकर अध्ययन किया है। प्रो॰ कुमार के अनुसार वैश्वीकरण के कारण किसी भी जंग का दुनिया के हर हिस्से पर असर पड़ता है। फिर वह युद्ध चाहे खाड़ी के देशों में हो या अफ्रीका में। परंतु रूस और यूक्रेन की जंग इन सबसे अलग है। यह युद्ध नहीं बल्कि विश्व की दो महाशक्तियों के बीच टकराव है। इस युद्ध में एक ओर रूस की सेना हैए जबकि दूसरी ओर अमेरिका व नाटो द्वारा परोक्ष रूप से समर्थित यूक्रेन की सेना। दो ख़ेमे बन चुके हैंए जिनकी तनातनी भारत पर भी असर छोड़ सकती है।
यूक्रेन और रूस के बीच होने वाला यह युद्ध तात्कालिक तौर पर वैश्विक कारोबारए पूंजी प्रवाहए वित्तीय बाजार और तकनीकी पहुंच को भी प्रभावित करेगा। इस युद्ध में भले ही रूस ने हमला बोला हैए लेकिन उस पर प्रतिबंध भी लागू हो गया है। आमतौर पर जिस देश पर प्रतिबंध लगाया जाता हैए उसके साथ होने वाले व्यापार को रोकने की कोशिश भी होती है। फिलहालए दुनिया भर में रूस गैस और तेल का बहुत बड़ा आपूर्तिकर्ता है। अभी इन उत्पादों के कारोबार भले ही प्रतिबंधित नहीं किए गए हैंए लेकिन मुमकिन है कि जल्द ही इनके व्यापार पर भी रोक लगाई जा सकती है। जाहिर हैए इसके बाद इनके दाम बढ़ सकते हैं।
दूसरी ओरए यूक्रेन गेहूं और खाद्य तेलों के बड़े निर्यातकों में से एक है। भारत भी वहां से लगभग 1ण्5 बिलियन डॉलर का सूरजमुखी तेल हर साल मंगाता है। ऐसे मेंए भारत में इन वस्तुओं के आयात प्रभावित होने से खाद्य उत्पादों पर भी असर पड़ेगा। यानीए यह युद्ध ऊर्जाए धातु और खाद्य उत्पादों के वैश्विक कारोबार को काफ़ी हद तक प्रभावित कर सकता है।
प्रो॰ कुमार के अनुसारए रूस पर प्रतिबंध लगने से वहाँ की पूंजी का प्रवाह भी बाधित होगा। यह वित्तीय बाजारों को प्रभावित करेगा। जब बाजार में अनिश्चितता का दौर आता हैए तो बिक्री शुरू हो जाती है। विदेशी निवेशक अपनी पूंजी वापस निकालने लगते हैं। इससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई और विदेशी संस्थागत निवेश यानी एफआईआई का आना भी कम हो जाता है। जंग के हालात में सभी देश अपने.अपने निवेशकों को अपने.अपने मुल्क में ही निवेश करने की सलाह देते हैं। ऐसा इसलिए होता है जिससे उनकी अर्थव्यवस्था मजबूत बनी रहे। इस बार भी ऐसा हो सकता है। तकनीक भी इन सबसे अछूती नहीं रह जाती है। चूंकि युद्ध में आधुनिक तकनीक की जरूरत बढ़ जाती हैए इसलिए बाकी क्षेत्रों के लिए उसकी उपलब्धता कम हो जाती है। एक क्षेत्र ऐसा है जहां युद्ध फ़ायदा कराता है और वो है सैन्य साजो.सामान से जुड़े उद्योग। युद्ध के समय उनकी खरीद.बिक्री व उत्पादन में बढ़ोतरी तो होती ही है।
सोचने वाली बात यह है कि यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि यूक्रेन और रूस का युद्ध कितने समय तक चलता है। विशेषज्ञों का अनुमान यही है कि यह जंग लंबी नहीं चलने वाली। रूस 1979.89 में हुई अफगानिस्तान वाली गलती को शायद ही दोहराना पसंद करेगा। इसलिए दोनों देशों के बीच बातचीत की मेज सजने की भी खबर भी आ रही है। मगर इतना तो तय है कि हाल.फिलहाल में जंग भले ही खत्म हो जाए परंतु युद्ध उपरांत शीतयुद्ध थमने वाला नहीं। इस बार 1950 के दशक जैसा दृश्य नहीं होगा। उस समय सोवियत संघ ;वामपंथद्ध और पश्चिम ;पूंजीवादद्ध की वैचारिक लड़ाई थी। अब तो रूस और चीन जैसे देश भी पूंजीवादी व्यवस्था अपना चुके हैं। इसलिए यह वैचारिक लड़ाई नहींए वर्चस्व की लड़ाई है। इससे दुनिया दो हिस्सों में बंट सकती हैए जिनमें आपस में ही कारोबार करने की परंपरा जोर पकड़ सकती है।
अगर ऐसा होता है तो आपस में पूंजी प्रवाह बढ़ेगा और वैश्विक आपूर्ति शृंखला भी प्रभावित होगी। इसी कारण हमें भारत में महंगाई का सामना भी करना पड़ सकता है। इसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि इस युद्ध से दुनिया भर में मंदी और महंगाई बढ़ सकती है। रूस की कंपनियों पर प्रतिबंध लग जाने से वैश्विक कारोबार प्रभावित होगा। हालांकिए पश्चिमी देश इस कोशिश में हैं कि वे पेट्रो उत्पादों का अपना उत्पादन बढ़ा दें और ओपेक देशों से भी ऐसा करने की गुजारिश की जा सकती है। फिर भीए पेट्रो उत्पादों की घरेलू कीमतें बढ़ना तय है। इनकी क़ीमत बढ़ते ही अन्य चीजों के दामों में भी तेज़ी आएगी।
अभी चूंकि बाजार में बहुत ज्यादा पूंजी नहीं हैए इसलिए माना जा रहा है कि पहले की तुलना में महंगाई ज्यादा असर डाल सकती है। आयात बढ़ने और निर्यात कम होने से भी भुगतान.संतुलन बिगड़ जाएगा। इस अनिश्चितता के दौर में सोने की मांग भी बढ़ सकती हैए जिससे इसका आयात भी बढ़ सकता है। इन सबसे रुपया कमजोर होगा और स्थानीय बाजार में इसकी कीमत बढ़ सकती है। यानीए दो.तीन रास्तों से महंगाई हमारे सामने आने वाली है।
प्रो॰ कुमार का मानना है कि यूक्रेन.रूस युद्ध दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर कुछ अन्य असर भी हो सकते है। जैसेए दुनिया भर के देशों का बजट बिगड़ सकता है। सभी देश अपनी सेना पर ज्यादा खर्च करने लगेंगे। इससे वास्तविक विकास तुलनात्मक रूप से कम हो जाएगा और राजस्व में भी भारी कमी आएगी। महंगाई से कर वसूली बढ़ती जरूर हैए लेकिन इनसे राजस्व घाटा बढ़ता जाता हैए जिसके बाद सरकारें सामाजिक क्षेत्रों से अपने हाथ खींचने लगती हैं। इससे स्वाभाविक तौर पर देश की गरीब जनता प्रभावित होती है। भारत शायद ही इसका अपवाद होगा। मुमकिन है कि वैश्वीकरण की अवधारणा से भी अब सरकारें पीछे हटने लगेंए जिसका नुकसान विशेषकर भारत जैसे विकासशील देशों को होगा।