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संसार के प्रत्येक बालक को गुणात्मक शिक्षा मिलनी चाहिए

            सरकारी बजट में विभिन्न क्षेत्रों का व्यापक ध्यान रखा जाता है फिर भी बजट में शिक्षा व्यवस्था का खास ध्यान रखा जाना चाहिए। प्रायः अधिकांश देशों में शिक्षा का बजट रक्षा से कम होता है, यदि शिक्षा का बजट रक्षा से ज्यादा हो और सही ढंग से इसका प्रयोग हो तो रक्षा की तो जरूरत ही न पड़े। बजट ऐसा हो कि जिससे प्रत्येक युवा को नौकरी या व्यापार शुरू करने में दौड़-भाग न करनी पड़े, क्योंकि इससे व्यक्ति का मनोबल क्षीण होता है। शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है जिसके द्वारा सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। युद्ध के विचार सबसे पहले मानव के मस्तिष्क में पैदा होते हैं। मानव के मस्तिष्क में शान्ति के विचार डालने होंगे। शान्ति के विचार देने के सबसे श्रेष्ठ अवस्था बचपन है। आज संसार में जो भी मारामारी हो रही है उसके लिए आज की शिक्षा दोषी है। सारे विश्व के प्रत्येक बालक को बाल्यावस्था से शान्ति की शिक्षा मिलनी चाहिए।

            स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए अलग कार्यक्रम शुरू करने चाहिए। इसके लिए अलग से बजटीय प्रावधान किए जा सकते हैं। इस वर्ष भारत के शिक्षा बजट में करीब दस फीसदी बढ़ोतरी होने का अनुमान है। पिछली बार सिर्फ पांच फीसदी बढ़ा था। सरकार का यह कदम शिक्षा में गुणात्मकता को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण है। यदि शिक्षा की गुणवत्ता सुधारनी हैं, तो शिक्षकों की गुणवत्ता सुधारनी होगी। उनके प्रशिक्षण के अवसर बढ़ाने होंगे। शिक्षकों को बच्चों का लार्निंग लेविल सुधारने की जवाबदेही स्वेच्छा से स्वीकार करनी चाहिए। शिक्षा को नौकरी की तरह नहीं लिया जाना चाहिए क्यांेकि एक शिक्षक के हाथ में बालक के भविष्य को संवारने का बहुत बड़ा दायित्व होता है। शिक्षक एवं अभिभावक मिलकर बालक को उसकी रूचि के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर पहुंचा सकते हैं। हमारे नीति निर्माताओं को भी नीतियां बनाते समय शिक्षा के महत्व का समझना होगा।

            नर्सरी दाखिले से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने सरकारी स्कूलों की हालत पर चिंता जताई। अदालत ने दिल्ली सरकार से सवाल किया कि क्या सरकार में काम करने वाले अधिकारी (नौकरशाह) अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजना चाहेंगे। न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि सरकार निजी स्कूलों पर अधिकार जमाने के बजाय सरकारी स्कूलों की हालत सुधारे, जिससे कि अभिभावक अपने बच्चों का इन स्कूलों में दाखिला कराएं। हमें इस दिशा में विकसित देशों के सरकारी स्कूलों की गुणावत्ता से प्रेरणा लेनी चाहिए। सरकारी स्कूलों के टीचर्स को सरकारी खजाने से अच्छा वेतन दिया जा रहा है अब उन्हें निजी स्कूलों से गुणावत्ता की प्रतिस्पर्धा करने की चुनौती को स्वीकारना चाहिए।

            प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम के द्वारा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा देने वाले छात्रों को तनाव मुक्त रहने की सलाह दी। उन्हें ‘स्माइल मोर, स्कोर मोर’ का मंत्र देने के साथ ही अभिभावकों से परिवार में उत्सव जैसा माहौल बनाने को कहा। उन्होंने कहा कि पूरा परिवार एक टीम के रूप में इस उत्सव को सफल करने के लिए अपनी भूमिका निभाए। जो खुशी का मौका मानेगा वो पाएगा और जो दबाव मानेगा वो पछताएगा। सचिन ने कहा कि तैयारी सबसे लिए अहम है। चाहे कोई छात्र हो या खिलाड़ी। ध्यान केन्द्रित करने से चुनौती कम होती है।

            केंद्रीय मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि सरकार भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आइआइएम) के बाद अब दूसरे उच्च शिक्षण संस्थानों को भी ज्यादा से ज्यादा स्वायत्तता देने की कोशिश में है। साथ ही उन्होंने भरोसा जताया है कि आइआइएम बिल संसद में बहुत जल्द पास हो जाएगा। यह शिक्षण संस्थानों को प्रोत्साहित करने का अच्छा प्रयास है।

            उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक ने लखनऊ में आयोजित एक सम्मेलन में कहा कि हमारी बेटियाँ सुर और संगीत में भी सरताज हैं। संगीत के क्षेत्र में भाषा का महत्व होता है मगर, मेरा मानना है कि सुर का महत्व होता है उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम सभी जगहों पर सुर एक होता है। संगीत का नहीं लेकिन, मुझे जीवन का अनुभव है। जीवन में सफलता पानी हो तो कड़ी मेहनत जरूरी है। आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ो। असफलता मिलने पर भी न रूको बल्कि असफलता का विश्लेषण कर आगे बढ़ो, सफलता निश्चित ही मिलेगी। बच्चों की संगीत, कला तथा खेल की प्रतिभा को बचपन से ही पहचानकर पूरे मनोयोग से निखारने के अवसर प्रदान किये जाने चाहिए।

            बच्चों को बाल्यावस्था से ही परिवार के बनाये नियमों, स्कूल के बनाये नियमों तथा समाज के कानूनों का पालन सीखना चाहिए। देश के कानूनों स्वतः पालन करना ही सबसे बड़ा देश प्रेम है। हमारे गणतंत्र में सामाजिक, आर्थिक समानता पर जोर दिया गया है। यह सपना तभी सच होगा जब हम अपने विचारों से जातिगत ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी का भेद मिटाने की पहल करेंगे। शिक्षा के प्रसार के जरिए यह लक्ष्य हासिल करने का हमारा संकल्प होना चाहिए।

            शिक्षा के द्वारा शिक्षा, धर्म तथा न्याय व कानून के प्रति सकारात्मक, मानवीय तथा विश्वव्यापी दृष्टिकोण बच्चों में बाल्यावस्था से ही विकसित किया जा सकता है। विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। सबसे सर्वोत्तम सेवा बच्चों की शिक्षा है। शिक्षा वह सबसे शक्तिशाली औजार है जिसके द्वारा सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। शिक्षा के द्वारा बच्चों को बताया जाना चाहिए कि ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है। साथ ही बच्चों को सभी विषयों को शत प्रतिशत ज्ञान देने के साथ ही साथ उनमें नैतिक तथा चारित्रिक गुणों को विकसित करके पूर्णतया गुणात्मक व्यक्ति बनाना चाहिए।

 

           

 

प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक

 

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