Shadow

‘आप’ को क्या तकलीफ गांधी जी से

आप’ को क्या तकलीफ गांधी जी से
अथवा
केजरीवाल यह तो जानें बापू के कितने करीब थे भगत सिंह और बाबा साहेब
आर.के. सिन्हा

पंजाब और दिल्ली सरकारों के दफ्तरों से गांधी जी के चित्र हटा दिए गए हैं। उनका स्थान ले लिया है भगत सिंह और डॉ.भीमराव अंबेडकर के चित्रों ने। दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकारें हैं। आखिर क्यों दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को और पंजाब में भगवंत मान को यह जरूरी लगा कि वे अपने-अपने राज्यो में गांधी जी के चित्र हटवाएं देंक्या गांधी जी का चित्र हटाना ज़रूरी था? ‘आप’ के इस कदम से संकेत यह जाता है कि वह भगत सिंह और बाबा साहेब को गांधी जी के सामने खड़ा करना चाहती है। हालांकि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। ये तीनों ही पूरे देश के लिये आदरणीय हैं। इन सबका देश ह्रदय से आदर सम्मान करता है। गांधी जी का नाम लेकर हुए अन्ना आंदोलन से निकली ‘आप’  ने ऐसा क्यों कियायह जवाब उन्हें देना तो चाहिए ही ।

यह समझा जाए कि गांधी जी हिंसा के साथ नहीं थे और भगत सिंह बापू की अहिंसा के साथ नहीं थे। इसका यह मतलब नहीं कि वे लोग अंग्रेजों के मुखबिर थे या एक-दूसरे के शत्रु थे। गांधी जी वैचारिक स्तर पर भगत सिंह के साथ न होते हुए फांसी की सजा  मुक्ति दिलवाना चाहते थे। दिल्ली के सुभाष पार्क (पहले एडवर्ड पार्क) में 7 मार्च1931 को गांधी जी ने एक बड़ी सभा को संबोधित किया था। वह सभा इसलिए खास थी ताकि गोरी सरकार पर भगत सिंह और उनके दोनों साथियों राजगुरु और सुखदेव को फांसी के फंदे से बचा लिया जाए। गांधी जी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा था “ मैं किसी भी स्थिति मेंकिसी को फांसी की सजा देने को स्वीकार नहीं कर सकता हूं। मैं यह सोच भी नहीं सकता हूं कि भगत सिंह जैसे वीर पुरुष को फांसी हो।” महात्मा गांधी उन दिनों दिल्ली में ही थे। वे उस दौरान ब्रिटिश वायसराय लार्ड इरविन से भगत सिंह को फांसी के फंदे से मुक्ति दिलाने के लिए मिल रहे थे। दिल्ली यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग से जुड़े हुए डॉ. चंदर पाल सिंह ने भगत सिंह पर लिखी अपनी किताब में बताया है कि “ गांधी जी ने 19 मार्च,1931 को लार्ड इरविन से भेंटकर उनसे भगत सिंह और उनके साथियों को जीवनदान देने की अपील की थी। उन्हें लग रहा था कि लार्ड इरविनभगत सिंह को राहत देना नहीं चाहते। संभवत: इसलिए ही गांधी जी ने अपने प्रयत्न तेज कर दिए थे।” यह अलग बात है कि भगत सिंहसुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च1931 को फांसी दे दी गई । गांधीजी अपनी किताब ‘स्वराज‘ में लिखते हैं, “ भगत सिंह की बहादुरी के लिए हमारे मन में सम्मान उभरता है। लेकिन, मुझे ऐसा तरीका चाहिए जिसमें खुद को न्योछावर करते हुए आप दूसरों को नुकसान न पहुंचाएं। लोग फांसी पर चढ़ने को तैयार हो जाएं। ” इन साक्ष्यों के आलोक में समझा जाना चाहिए कि गांधी जी के मन में भगत सिंह को लेकर सम्मान का भाव था। वे भी मानते थे कि भगत सिंह देश के सच्चे सपूत हैं। दरअसल दोनों का लक्ष्य तो भारत को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाना ही तो था। हांदोनों के रास्ते भिन्न अवश्य थे। पर ‘आप’ तो गांधी जी के चित्र सरकारी दफ्तरों से इस तरह से हटा रही है मानो उन्होंने देश के साथ कोई अहित किया हो। आखिर ‘आप’ के नेता बताएं तो सही कि उन्हें गांधी जी से तकलीफ क्या है? ‘आप’ ने सरकारी दफ्तरों में भगत सिंह के साथ बाबा साहेब के चित्र भी लगाए हैं। बहुत अच्छी बात है। पर किस कीमत परगांधी जी के चित्र हटाकर। इसका क्या मतलब है। आम आदमी पार्टी के नेता संविधान के महत्व पर लगातार  अपने विचार रखते हैं। जरा वे बता दें कि बाबा साहेब को संविधान सभा का अध्यक्ष किसकी सिफारिफ पर बनाया गया था29 अगस्त,1947 को बाबा साहेब  के नेतृत्व में स्वतंत्र भारत का नया संविधान बनाने के लिए एक कमेटी गठित की गई थी। बाबा साहेब देश के नए संविधान को तैयार करने के अहम कार्य में जुट जाते हैं। इसकी बैठकें मौजूदा संसद भवन में होती हैं। पर इससे पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु और सरदार पटेल संवैधानिक मामलों के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान सर गऊर जैनिंग्स को भी देश के संविधान को अंतिम रूप देने के लिए आमंत्रित करने पर विचार कर रहे थे। इसी सिलसिले में ये दोनों एक बार गांधी जी से मिले। उनकी इस बिन्दु पर बापू से बात हुई। तब बापू ने उन्हें सलाह दी थी कि बाबा साहेब सरीखे विधि और संवैधानिक मामलों के उद्भट विद्वान की मौजूदगी में किसी विदेशी को देश के संविधान को तैयार करने की जिम्मेदारी देना सही नहीं  होगा। तब  बाबा साहेब को संविधान सभा से जुड़ने का प्रस्ताव दिया गया। जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया था। इससे स्पष्ट है कि गांधी जी के मन में बाबा साहेब के प्रति सम्मान का भाव था। वे बाबा साहेब की विद्वता को स्वीकार करते थे। बाबा साहेब भी जानते थे कि उन्हें इतनी अहम दायित्व गांधी जी की  सिफारिश पर ही मिला है।

देखिए पढ़े-लिखे लोगों के बीच में किसी विषय पर मतभेद हो सकते हैं। इसका यह मतलब नहीं होता कि वे एक-दूसरे के शत्रु हो गए। यह सच है कि गांधी जी और बाबा साहेब के बीच  कम्यूनल अवार्ड’ में दलितों को पृथक निर्वाचन का स्वतन्त्र राजनीतिक अधिकार मिलने के सवाल पर तीखे मतभेद थे। यह अवार्ड दलितों को पृथक निर्वाचन के रूप में प्रांतीय विधानसभाओं और केन्द्रीय एसेम्बली के लिए अपने नुमाइंदे चुनने का अधिकार देता था। गांधी जी इस अवार्ड का विरोध कर रहे थे। उन्होंने इसके विरोध में 20 सितम्बर1932 से आमरण अनशन चालू कर दिया। वे मानते थे कि इससे दलित हिन्दू समाज से अलग हो जायेंगे जिससे हिन्दू समाज बंट जाएगा। पर, बाबा साहेब अवार्ड के पक्ष में थे। पर अंत में गांधी की राय को सबको मानना पड़ा। 30 जनवरी,1948 को गांधी जी की हत्या कर दी जाती  है।  गांधी जी की हत्या का समाचार सुनकर बाबा साहेब  अवाक रह गए। वे पांचेक मिनट तक सामान्य नहीं हो पाते। फिर कुछ संभलते हुए बाबा साहब ने कहा कि बापू का इतना हिंसक अंत नहीं होना चाहिए था”, ये जानकारी डॉ. अंबेडकर की दिनचर्या’ किताब से मिलती है।

अब ‘आप’ के नेता स्वयं देख समझ लें कि गांधी जी, भगत सिंह और डॉ. अम्बेडकर कितने करीब या दूर थे।

(लेखक  वरिष्ठ संपादकस्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *