मार्च के दूसरे सप्ताह में, देश भर की राज्य सरकारों ने कोरोनवायरस के प्रसार को रोकने के लिए एक उपाय के रूप में स्कूलों और कॉलेजों को अस्थायी रूप से बंद करना शुरू कर दिया था। आज दो महीने के बाद भी कोई निश्चितता नहीं है कि स्कूल फिर से कब खुलेंगे। स्पष्ट है कि वर्तमान शैक्षिक सत्र पारंपरिक रूप से स्थापित मानदंडों के आधार पर पूरा नहीं किया जा सकता है तब नीति नियंताओं ने इसके दूरगामी असर का अनुमान लगा लिया था और वैकल्पिक मॉडल पर काफी पहले कार्य करना प्रारंभ कर दिया था। आज अध्ययन एवं अध्यापन के डिजिटल स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई है। कक्षा में आमने-सामने के संप्रेषण का स्थान इंटरनेट, मोबाइल, लैपटॉप आदि पर आभासी कक्षाओं ने ले ली है।
जूम, सिसको वेब एक्स, गूगल क्लासरूम, टीसीएस आयन डिजिटल क्लासरूम आदि ने लोकप्रियता के आधार पर शिक्षा जगत में अपना-अपना स्थान बनाना प्रारंभ कर दिया है। शिक्षा क्षेत्र के लिए यह महत्वपूर्ण समय है। स्कूल बंद होने से न केवल सीखने की निरंतरता पर अल्पकालिक प्रभाव पड़ेगा, बल्कि इसके दूरगामी परिणाम भी होंगे। शिक्षण और मूल्यांकन के तरीकों सहित स्कूली शिक्षा की संरचना पहले से ही ऐसी रही है कि कुछ ही निजी स्कूल ऑनलाइन शिक्षण विधियों को अपना सकते थे। दूसरी ओर, कम आय वाले निजी और सरकारी स्कूलों ने ने ई-लर्निंग तक पहुंच नहीं होने के लिए पूरी तरह से बंद कर दिया है।
स्कूल और विश्वविद्यालय बंद होने से न केवल भारत में 285 मिलियन से अधिक युवा शिक्षार्थियों के लिए सीखने की निरंतरता पर अल्पकालिक प्रभाव पड़ेगा, बल्कि इसके दूरगामी आर्थिक और सामाजिक परिणाम भी सामने आएंगे। महामारी ने उच्च शिक्षा क्षेत्र को भी बाधित किया है, जो देश के आर्थिक भविष्य का महत्वपूर्ण निर्धारक है। बड़ी संख्या में भारतीय छात्र चीन के बाद विदेशों में विश्वविद्यालयों में दाखिला लेते हैं, विशेष रूप से महामारी ग्रस्त अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और चीन में। ऐसे छात्रों को अब इन देशों में जाने से रोक दिया गया है। यदि स्थिति बनी रहती है तो अंतरराष्ट्रीय उच्च शिक्षा की मांग में गिरावट लाजिम है।
शिक्षा पर प्रभाव से ड्रॉपआउट दरों और सीखने के परिणामों के संदर्भ में नुकसान होने की संभावना है, बच्चों को घर से सीखने के अवसर कम मिलते हैं। इसके अलावा, स्कूलों को बंद करने से माता-पिता के लिए अलग जिम्मेवारी बढ़ेगी कि वो घर पर रह सकें और बच्चों की देखभाल कर सकें। इससे उत्पादकता भी प्रभावित होती है, मजदूरी में हानि होती है, फलस्वरूप अर्थव्यवस्था पूरी तरह प्रभावित होती है। बड़ी संख्या में स्वास्थ्य देखभाल करने वाली पेशेवर महिलाएं हैं। स्कूल के बंद होने के कारण घर पर उनके बच्चों की उपस्थिति से उनका काम बाधित हो सकता है, जिससे स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित प्रणालियों पर अनायास तनाव पैदा हो सकता है।
ऑनलाइन शिक्षा के लिए गुणवत्ता तंत्र और गुणवत्ता बेंचमार्क स्थापित करना भी महत्वपूर्ण है। कई ई-लर्निंग मंच एक ही विषय पर कई पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं। इसलिए, विभिन्न ई-लर्निंग प्लेटफार्मों में पाठ्यक्रमों की गुणवत्ता भिन्न हो सकती है। तकनीक का असमय फेल होना जैसे इंटरनेट की स्पीड, कनेक्टिविटी की समस्या, लॉक डाउन के समय में कोई साथ उपस्थित होकर सिखाने एवं बताने वाला नहीं होने से भी ऑनलाइन ट्यूटोरियल की सहायता से ही सीखने की मजबूरी, घर में जो साधन है उन्हीं की सहायता से लेक्चर तैयार करना उसे रिकॉर्ड करना, नोट्स बनाना उनकी डिजिटल कॉपी तैयार करना, स्टडी मटेरियल खोजना एवं पाठ्यक्रम के अनुरूप उसे विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड करना, छात्र-छात्राओं से संवाद करना आदि अनेकों नई प्रकार की चुनौतियां शिक्षा समुदाय के समक्ष हैं प्रौद्योगिकी का डेमोक्रेटाइजेशन अब एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसमें इंटरनेट कनेक्टिविटी, टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर, ऑनलाइन सिस्टम की क्षमता, लैपटॉप / डेस्कटॉप की उपलब्धता, सॉफ्टवेयर, शैक्षिक उपकरण, ऑनलाइन मूल्यांकन उपकरण आदि शामिल हैं।
इस क्षेत्र की क्षति दुनिया भर में हर क्षेत्र की क्षति के समान है, यह संभव है कि कुछ सावधानीपूर्वक योजना के साथ, हम इस लंबे समय तक बंद के दीर्घकालिक परिणामों को सीमित करने में सक्षम हो सकते हैं। इन सबके वास्तविकता होने के लिए, नीति निर्माताओं, अधिकारियों, छात्रों और विशेष रूप से शिक्षाविदों के दिमाग में विचार प्रक्रिया में भारी बदलाव की आवश्यकता है। संकाय चयन को धीरे-धीरे प्रौद्योगिकी के साथ और प्रौद्योगिकी अपनाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। ये सब शुरू करने के लिए, ग्रीन ज़ोन में जिलों को अगले कुछ दिनों में और अधिक विश्लेषण करने के बाद स्कूल खोलने की अनुमति दी जानी चाहिए।
बिजली की आपूर्ति, शिक्षकों और छात्रों के डिजिटल कौशल, और इंटरनेट कनेक्टिविटी के आधार पर डिजिटल लर्निंग, उच्च और निम्न प्रौद्योगिकी समाधान आदि की संभावना तलाशना, दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों में शामिल करना,शिक्षकों के साथ-साथ छात्रों को भी डिजिटलाइजेशन के लिए सहायता प्रदान करना हमारे लिए कुछ अहम मुद्दे है
इसके साथ सख्त सामाजिक दूर करने के उपायों को लागू किया जाना चाहिए, और छात्रों की संख्या को सीमित करने के लिए, कक्षाएं दो चार घंटे की पाली या विषम नियम में चल सकती हैं इसके अतिरिक्त, शिक्षा क्षेत्र के लिए एक वित्तीय प्रोत्साहन विकसित करने की आवश्यकता है जो मुख्य रूप से कम लागत वाले निजी सहायता प्राप्त और गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को लक्षित करके बनाया जाये। स्पष्ट रूप से, एक विकासशील देश के रूप में भारत के पास असीमित संसाधन नहीं हैं, शिक्षा सहित कुछ मुख्य क्षेत्रों को अंतिम प्राथमिकता के रूप में नहीं छोड़ा जा सकता है।
डिजिटल शिक्षा को पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था के पूरक के रूप में अपनाने का मॉडल तो स्वीकार्य रूप में हमारे समक्ष आ चुका है किंतु समग्र शिक्षा व्यवस्था जैसे प्रवेश, पढ़ाई, परीक्षा एवं मूल्यांकन डिजिटल माध्यम से पूरा करना अभी भी एक बड़ी चुनौती है। वास्तव में यही वह तत्व है जो पारंपरिक शिक्षा मॉडल को दूरस्थ शिक्षा मॉडल एवं पत्राचार शिक्षा मॉडल से पृथक करती है।
डिजिटल शिक्षा के संभावित दोषों से बचने की भी आवश्यकता है। पाठ्यक्रमों का प्रयोगात्मक एवं अनुप्रयुक्त ज्ञान का हिस्सा पूर्णतः छोड़ना उचित नहीं है जो डिजिटल किचन के माध्यम से प्रभावी ढंग से कराया जाना संभव नहीं है। सिर्फ कंटेंट डिलीवरी, प्रश्न बैंक एवं नोट्स का प्रेषण करना मात्र ही अध्यापन की इति श्री समझ लेना ठीक नहीं होगा। स्टूडेंट्स फ्रेंडली प्रणाली को अपनाकर परस्पर संप्रेषण का अवसर भी प्रदान करने की चुनौती डिजिटल शिक्षा प्रणाली में व्यवहारिक रूप में दिखाई पड़ती है। इन प्रश्नों के उत्तर खोजना अभी भी शेष है।
इस समय सामान्य परीक्षा प्रणाली एवं नई कक्षा में प्रोन्नत किए जाने के नियमों में शिथिलता प्रदान किए जाने की आवश्यकता प्रतीत होती है। ऐसे तमाम अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर भविष्य के गर्त में छुपे हैं जिनका उत्तर मिलना अभी शेष है। विशेष परिस्थितियां सदैव ही अति विशिष्ट निर्णयों की मांग करती रही हैं। व्यापक छात्र हित में आने वाले समय में हम कुछ ऐसे ही निर्णयों के साक्षी बनेंगे।
— डॉo सत्यवान सौरभ,
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी,